क्षमा शर्मा
हवा न गर्म है, न ठंडी। खेतों में सरसों के फूलों की पीली चादरें लहरा रही हैं। हर पेड़-पौधा खुशी से खिलखिला रहा है। हर तरफ फूल ही फूल। पास से गुजरो तो इतनी खुशबू कि इत्र, डिओज और परफ्यूम्स भी मुकाबला न कर सकें। जो पक्षी सर्दी के डर से जल्दी से जल्दी अपने घोंसलों में छिप जाते थे, वे अब शाम तक भी दिखाई देने लगे हैं। उन्हें भी पता है कि अब अंधेरा जल्दी घिरने वाला नहीं है, इसलिए घर लौटने की भी कोई जल्दी नहीं है।
तितलियां, भौरे सब अपने–अपने कामों में लगे हैं। वे फूलों के पास जाकर अपना परिचय दे रहे हैं और उनका परिचय पूछ रहे हैं। वैसे भी बहुत से पक्षियों के प्रजनन का मौसम आ रहा है। बहुत जल्दी ही तो हम नन्हे बच्चों की आवाजें घोंसलों में सुनेंगे, फिर अपने माता-पिता के साथ उन्हें उड़ते देखेंगे। इसीलिए गौरैया घास के तिनके हवा में लेकर उड़ती नजर आ रही है। कितना मुश्किल है, हर बार एक नया घर बनाना।
पक्षी विशेषज्ञ सालिम अली के बारे में कहा जाता है कि जैसे ही वह किसी नए पक्षी को अपने आसपास देखते थे, उसका पीछा करने लगते थे। पक्षियों पर जितना काम उन्होंने किया, वह सचमुच ही अभूतपूर्व है। वसंत सचमुच एक ऐसा मौका देता है जहां पक्षी भी सर्दी के बाद जीवन के आनंद को महसूस करते हैं। यह उन्हें देखने, पहचानने का भी अच्छा अवसर होता है।
अपने गांव के जीवन में तो लोग बिना देखे ही पक्षी की आवाज सुनकर बता देते हैं कि कौन-सा पक्षी बोल रहा है और उसके बोलने का क्या अर्थ है। गर्मी के दिनों में जब कभी कोई कौआ या गौरैया जोर से पुकारती थी तो घर के लोग फौरन मिट्टी के किसी बर्तन में पानी और दाना लेकर दौड़ते थे। उन्हें पता चल जाता था कि या तो पक्षी को प्यास लगी है या फिर वह भूखा है। कोयल जब देर तक तेजी से कुहू-कुहू करती तो मां चूल्हे पर रोटी सेंकती कहती-इस बार तो खूब आम लगेंगे। गर्मी के दिनों में आंगन में सोते हुए जब कोई टिटहरी रात के वक्त जोर–जोर से शोर मचाकर गुजरती थी तो घर वाले कहते थे कि जरूर गांव में चोर घुसे हैं क्योंकि टिटहरी तो घर के हर आदमी को पहचानती है।
पक्षियों के लिए मिट्टी के बर्तन में ऐसी जगह पानी रखा जाता था जहां उस पर धूप न पड़े। गर्म न हो। दाना भी डाला जाता था। कई बार तो दाना खाने के लिए पक्षियों का मेला-सा लग जाता था।
सालों पहले छत्तीसगढ़ की एक मैना रामश्री के बारे में पढ़ा था। यह मैना पिंजरे में नहीं रहती थी। घर की पालतू थी। लेकिन घर छोड़कर नहीं जाती थी। उसकी मालकिन सवेरे-सवेरे खेतों पर काम करने जाती थी। ऐसे में घर में यदि अचानक कोई मेहमान आ जाता था तो मैना उड़ती हुई खेतों की तरफ जाती थी और मालकिन को इसकी सूचना देती थी। पिछले दिनों एक बहुत सुंदर वीडियो देखा था, जिसमें एक खूबसूरत रंगों वाला तोता जोर-जोर से घर की मालकिन को मम्मी-मम्मी कहकर पुकार रहा था और मालकिन की आवाज सुनाई दे रही थी-आती हूं, आती हूं।
हमारे जीवन में पक्षियों का खासा महत्व रहा है। लोककथाओं या हमारी बहुत-सी प्राचीन कहानियों में इनकी उपस्थिति पाई जाती है। पंचतंत्र तो एक तरह से पशु-पक्षियों को ही समर्पित है।
लेकिन इन दिनों जो लोग शहरों में रहते हैं, वे पक्षियों के बारे में कम ही जानते हैं। वे न उन्हें पहचानते हैं, न ही उनकी आवाज को। कई बार कोई चिड़िया दिखाई देती है तो उसका नाम पता नहीं चलता। कई बार फोटो हो तो भी नहीं पहचान पाते।
अब राष्ट्रीय हिमालय अध्ययन मिशन ने पक्षियों का डाटा जुटाकर एक वेबसाइट बनाई है। इसमें हिमाचल और उत्तराखंड के पक्षी हैं। यहां पाए जाने वाले दो सौ प्रजातियों के पक्षियों के बारे में इसमें जानकारी जुटाई गई है। पैंतालीस सौ से अधिक पक्षियों के फोटो और आठ सौ पक्षियों की आवाजें यहां सुनी जा सकती हैं। इसमें यदि पक्षी की आवाज की आडियो रिकार्डिंग और फोटो या दोनों में से कोई एक भी अपलोड की जाए तो उस पक्षी के सम्बंध में पूरी जानकारी मिल सकती है। इसके बारे में कहा जा रहा है कि अब पक्षी की चहचहाअट ही उनका आधार कार्ड बन जाएगी। वे उसी से पहचाने जाएंगे। बाकी भारत के पक्षियों के बारे में भी ऐसी जानकारी जुटाने का प्रयास किया जाएगा।
इस योजना का एक फायदा तो यह होगा कि अब कोई भी पक्षी प्रजाति यदि विलुप्ति के कगार पर होगी तो उसके बारे में पता चल जाएगा। इसके अलावा अपने देश की पक्षी विविधता, कौन-सा पक्षी कहां पाया जाता है, उसकी आवाज कैसी है, कैसा दिखता है, उसकी आदतें क्या हैं, क्या खाता है, आदि की जानकारी मिल सकेगी। इस बहाने पक्षियों के प्रति लोगों का आकर्षण भी बढ़ेगा।
सोचिए कि कितना अच्छा होगा कि हम अपने पक्षियों के बारे में घर बैठे जान सकेंगे। फिर वसंत में जब कोई नया पक्षी दिखेगा तो उसका फोटो खींचकर, अपलोड करने से उसके बारे में सही जानकारी मिल सकेगी। पक्षियों से हमारा अनुराग नया तो नहीं है। एक क्रोंच की पुकार से आहत होकर वाल्मीकि ने रामायण लिख दी थी।
कई बार यह सोचकर हैरत होती है कि चीन जैसे देश में लोग कैसे रहते होंगे, जहां पक्षियों को खत्म कर दिया गया है। बहुत साल पहले मशहूर लेखक धर्मवीर भारती चीन गए थे। वहां के बारे में उन्होंने जैसा वर्णन किया था, उससे आंखों में आंसू आ गए थे। उन्होंने लिखा था कि चीन में चिड़ियां दिखाई नहीं देतीं। एक बार, एक स्थान से गुजर रहे थे, वहां बड़े से मैदान में उन्होंने एक गौरैया को देखा था। उस अकेली गौरैया को घेरकर बहुत से लोग पत्थर मार रहे थे। वह बेचारी बचने की कोशिश कर रही थी, मगर इतने पत्थरों से आखिर कब तक बचती। कितना अच्छा है हमारा देश। हम में से बहुत से लोग पक्षियों को बहुत चाहते हैं। वे भी हमारे अपने हैं।
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।