ट्रंप के शांति समझौते को नकार फिर संघर्ष
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने घोषणा की थी कि उन्होंने थाईलैंड और कंबोडिया के बीच ‘ऐतिहासिक’ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करवा दिये हैं। ट्रम्प ने उसे आधार बनाकर नोबेल शांति पुरस्कार की दावेदारी ठोक दी। अब इसका मज़ाक़ बनना शुरू हो चुका है।
ट्रंप ने जिस युद्ध विराम के हवाले से नोबेल पीस प्राइज़ पाने की दावेदारी ठोकी थी, वो एक झटके में एक्सपोज़ हो गई है। युद्ध विराम इतनी जल्दी टूट जायेगा, इसकी आशा व्हाइट हॉउस को भी नहीं थी। 8 दिसंबर को फिर से हुई झड़पों के लिए दोनों पक्ष एक-दूसरे को दोषी ठहरा रहे थे। महीनाभर पहले 10 नवंबर को एक थाई सैनिक के लैंडमाइन से घायल होने के बाद से तनाव बढ़ गया था। कंबोडिया का आरोप है कि वह कई सौ किलोमीटर तक फैली एक साझा सीमा के कई विवादित हिस्सों पर थाई हमले का शिकार है। देश के रक्षा मंत्रालय के अनुसार, थाई गोलाबारी में सात कंबोडियन नागरिक मारे गए हैं और 20 अन्य घायल हुए हैं। दूसरी ओर बैंकॉक ने नोम पेन्ह पर आरोप लगाया है, कि व्हाइट हाउस द्वारा खून-खराबा रोकने की चेतावनी के बावजूद उसने बॉर्डर पार रॉकेट हमले किए।
कंबोडिया की सीमा कुल तीन देशों से मिलती है। पश्चिम और उत्तर में थाईलैंड है, तो उत्तर में लाओस स्थित है। पूर्व और दक्षिण पूर्व में वियतनाम है तो दक्षिण में कंबोडिया की सीमा थाईलैंड की खाड़ी से मिलती है। 9 नवंबर, 1953 को फ्रांस ने कंबोडिया को आजाद कर दिया। वर्ष 1863 से 1953 के कालखंड में कंबोडिया पर फ्रांस के कब्ज़े के दौरान ही थाईलैंड (जिसे उस समय सियाम कहा जाता था) के साथ कंबोडिया की सीमाएं तय की गई थीं, विशेषकर 1907 के सीमा निर्धारण में, जिससे कई विवादित क्षेत्र बने, उनमें से एक है प्रीह विहियर मंदिर, जो आज भी दोनों देशों के बीच तनाव का कारण है।
प्रीह विहियर मंदिर पर थाई-कंबोडियाई क्षेत्रीय विवाद 2008 में भड़क गया, जब थाई सरकार ने एक संयुक्त विज्ञप्ति पर सह-हस्ताक्षर किया, जिसने मंदिर को विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध करने के लिए यूनेस्को को कंबोडिया के अनुरोध का समर्थन किया। इस कदम से थाईलैंड में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए और यहां तक कि 2008 से 2011 की अवधि में दोनों देशों के बीच सशस्त्र झड़पें भी हुईं।
इस साल अक्तूबर तक थाई-कम्बोडिया के बीच फुल स्केल वॉर में 40 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई, और लगभग 40 हज़ार से अधिक लोगों को विस्थापित होना पड़ा। विवाद से निपटारे के लिए द्विपक्षीय वार्ता विफल रही। आसियान द्वारा मध्यस्थता और शांति स्थापना प्रयासों के साथ भी यही हुआ। फिर आसियान सम्मेलन के दौरान 25 अक्तूबर, 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने घोषणा की थी कि उन्होंने थाईलैंड और कंबोडिया के बीच ‘ऐतिहासिक’ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करवा दिये हैं। ट्रम्प ने उसे आधार बनाकर नोबेल शांति पुरस्कार की दावेदारी ठोक दी। अब इसका मज़ाक़ बनना शुरू हो चुका है।
अब सवाल यह है, क्या ट्रंप केवल शांति समझौता का क्रेडिट लेने की जल्दी में थे? क्या उन्हें समस्या की तह तक नहीं जाना चाहिए था? ट्रंप इसी तरह शांति स्थापना की सतही घोषणा भारत-पाकिस्तान के सन्दर्भ में करते रहे हैं। यूक्रेन-रूस के बीच शांति प्रयासों का मज़ाक़ अलग बन रहा है। ट्रंप की तथाकथित शांति स्थापना से ग़ज़ा में शांति नहीं दिख रही। विश्लेषकों का कहना है कि युद्धविराम के बाद से गाजा में इस्राइल द्वारा फलस्तीनियों की हत्या की दर धीमी हो गई है, लेकिन युद्ध जारी है। इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि गाजा में युद्ध खत्म करने के लिए अमेरिकी मध्यस्थता वाली योजना का दूसरा चरण करीब है। लेकिन मुख्य मुद्दों को अभी भी हल करने की ज़रूरत है। मतलब साफ़ है, ट्रम्प ने जहां-जहां शांति स्थापना का ढोल पीटा, वहां अशांति दोबारा भड़की है। कंबोडिया और थाईलैंड के बीच दोबारा से युद्ध छिड़ जाना ट्रम्प की विफलता का दूसरा उदाहरण है।
मलेशिया, जो अभी आसियान का चेयरमैन है, ने बीच-बचाव करने की पेशकश की थी। मगर, इस हड़बड़ी के विवाद में मलेशिया भी कम दोषी नहीं है। वह इसे डिप्लोमैटिक जीत मान रहा था, लेकिन उसने अंदर की अनसुलझी शिकायतों को नज़रअंदाज़ कर दिया। पिछली 25 अक्तूबर, 2025 को आत्ममुग्ध ट्रम्प ने सीज़फ़ायर की घोषणा के बाद, इसका पूरा क्रेडिट लिया। सोशल मीडिया पोस्ट पर ट्रंप ने कहा था, ‘मैंने थाईलैंड के एक्टिंग प्राइम मिनिस्टर और कंबोडिया के प्राइम मिनिस्टर से बात की। मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि दोनों टैरिफ धमकी के बाद शांति समझौते के लिए राजी हो गए हैं। सभी को बधाई। मैंने अपनी ट्रेड टीम को बातचीत फिर से शुरू करने का निर्देश दिया है।’ अफ़सोस, सिर्फ 42 दिन बाद ट्रम्प के तथाकथित शांति समझौते की धज्जियां उड़ गईं।
ठीक से देखा जाये, तो उन दिनों चीन की भागीदारी ज़्यादा बारीक थी। चीन ने धमकाने की बजाय डिप्लोमैटिक ऑब्ज़र्वर तैनात करते हुए क्षेत्रीय संयम और आसियान प्रक्रिया का सम्मान करने की आम अपील की। 27 जुलाई, 2025 को विदेश मंत्रालय के एक बयान में कहा गया था, ‘चीन दोनों तरफ हुए नुकसान से बहुत दुखी है और दिल से हमदर्दी दिखाता है। चीन बिना भेदभाव वाला रवैया बनाए रखेगा और सीज़फ़ायर के लिए अच्छी भूमिका निभाएगा।’ लेकिन दो दिनों की फायरिंग में जिस तरह चीनी हथियार मिले हैं, वो कुछ और कहानी की ओर इशारा कर रहे हैं।
लेकिन, क्या कम्बोडिया और थाईलैंड धर्मयुद्ध लड़ रहे हैं। नहीं। एक सच यह भी है कि कम्बोडिया और थाईलैंड का झगड़ा प्रीह विहियर में भगवान शिव के प्रति आस्था को लेकर बिल्कुल नहीं है। कंबोडिया में डांगरेक पहाड़ों की चोटी पर स्थित प्रीह विहियर यूनेस्को-सूचीबद्ध हिंदू मंदिर है, जिसे 11वीं-12वीं सदी में खमेर साम्राज्य ने भगवान शिव को समर्पित किया था। यह प्राचीन मंदिर विश्व प्रसिद्ध अंकोरवाट से लगभग 270 किलोमीटर की दूरी पर है। यह अद्भुत खमेर वास्तुकला से अधिक थाईलैंड के साथ सीमा विवाद और राष्ट्रीय स्वाभिमान के कारण सुर्खियों में है। इसका निर्माण राजा सूर्यवर्मन प्रथम और द्वितीय द्वारा किया गया था, जो खमेर साम्राज्य के स्वर्ण युग का प्रतिनिधित्व करता है। प्रसिद्ध अंकोरवाट मंदिर राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने बनवाया था, जो कि राजा का समाधि स्थल भी है। यह स्थान मूल रूप से भगवान विष्णु का मंदिर था; लेकिन कालांतर में 14वीं शताब्दी में इसे बौद्ध मंदिर में बदल दिया गया।
मगर, एक सवाल कोई भी समझदार पूछेगा, मामला चूंकि शिवमंदिर से जुड़ा है तो भारत शांति प्रयासों के लिए क्यों नहीं आगे बढ़ता? थाईलैंड और कंबोडिया के बीच मिलिट्री झड़प के बीच, भारत ने 26 जुलाई, 2025 को कहा था, ‘हम हालात पर करीब से नज़र रख रहे हैं, उम्मीद है कि यह जल्द खत्म हो जाएगा।’ भारत का लाइन ऑफ़ एक्शन अब भी बदला नहीं है!
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
