ट्रंप बतौर नेता शुरू हुए थे, अब कामेडियन माने जाते हैं । यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की कभी कामेडियन होते थे, अब राष्ट्रपति हो गये हैं। कामेडियन और राष्ट्रपति पदों में अदलाबदली चलती रहती है।
एक तरह से डोनाल्ड ट्रंप चुनाव हार गये। न्यूयार्क में वह जिस कैंडिडेट को चुनाव हराना चाहते थे वह जीत गया। ट्रंप को कहना पड़ा कि मैं तुम्हारा राष्ट्रपति हूं।
डॉन हो या राष्ट्रपति, अगर अपने मुंह से बताना पड़े कि मैं यह हूं तो फिर काहे के डॉन और काहे के राष्ट्रपति। डॉनगीरी तो असल वह है, जिसमें लोग एक-दूसरे को बतायें कि ये हैं डॉन।
ट्रंप अब इतना बताने लगे हैं कि सुन कोई नहीं रहा है। ट्रंप इस बात को हजार बार बता चुके हैं कि मैंने भारत-पाक युद्ध रुकवा दिया। अब पाक भी इस बयान को सीरियसली नहीं लेता। ट्रंप बतौर नेता शुरू हुए थे, अब कॉमेडियन माने जाते हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की कभी कॉमेडियन होते थे, अब राष्ट्रपति हो गये हैं। कॉमेडियन और राष्ट्रपति पदों में अदलाबदली चलती रहती है।
पाक में यह अदलाबदली सेना के जनरल पद और देश के मुखिया पद के बीच होती है। आर्मी जनरल चाहते हैं कि ताउम्र वह पाकिस्तान के बॉस बने रहें। पब्लिक क्या चाहती है, यह कोई नहीं पूछना चाहता। पब्लिक महंगे टमाटरों से परेशान है, उसे पता ही नहीं चलता कि आर्मी जनरल देश के लिए कितनी बड़ी परेशानी हैं।
खैर, बिहार में टॉस जीतकर ‘जातीय समीकरण इलेवन’ ने पहले बल्लेबाज़ी चुनी। बिहार में जातीय समीकरण का जो गुणा गणित होता है, वह किसी भी सुपर कंप्यूटर की क्षमता से बाहर की बात है। जाति, फिर उप-जाति, फिर उपजाति में और भी उप जाति।
न्यूयॉर्क में टॉस ‘इमिग्रेशन इलेवन’ ने जीता, न्यूयार्क में कुछ वर्ष पहले एक बंदा बाहर से आया और न्यूयार्क का मेयर बन गया, वह भी ट्रंप को मुंह चिढ़ाता हुआ। ट्रंप का इलाका है न्यूयार्क। वहां भी ट्रंप को नहीं सुन रहा कोई। ट्रंप का हाल कुछ कुछ क्लासिक सिंगर वाला हो गया है, क्लासिक सिंगर समझता है कि बहुत ही ऊंचा राग सुना दिया उसने। मगर आडियंस की समझ में कुछ ना आता।
बिहार में पहला ओवर ‘फ्री लैपटॉप स्पिनर’ ने डाला।
जनता ने डिफेंसिव शॉट खेला—’पहले बिजली दो, फिर लैपटॉप ऑन करेंगे।’
हर पार्टी अपना मैनिफेस्टो ऐसे पेश करती है जैसे टीम की प्लेइंग इलेवन हो– ‘हम देंगे बिजली, पानी, सड़क और फ्री वाई-फाई।’
जनता बोले – ‘पिछली बार भी यही टीम थी, मैच फिर भी हार गए थे!’
हर बार मैच होता है, लेकिन ट्रॉफी सिर्फ वादों की अलमारी में सजती है।
चुनाव से पहले नेता जी आम आदमी बन जाते हैं। धोती पहनते हैं, मिट्टी के चूल्हे पर रोटी सेंकते हैं, और गाय को चारा डालते हुए फोटो खिंचवाते हैं।
जनता बोले – अबकी बार फोटोशॉप सरकार!
हर पार्टी कहती है – ‘हम लाएंगे विकास!’ लेकिन विकास बेचारा अब तक गुमशुदा है। शायद पटना के ट्रैफिक में फंस गया है।

