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सोयाबीन ठिकाने लगाने को बीन बजाते ट्रंप

सोयाबीन किसान जिस तरह ट्रम्प के गले की हड्डी बन गए, संभव है नवम्बर, 2026 के मिड टर्म इलेक्शन आते-आते सत्तारूढ़ रिपब्लिकन अलोकप्रिय हो जाए। तो क्या, भारतीय रणनीतिकार 3 नवम्बर, 2026 तक ट्रम्प प्रशासन के ज़रिये होने वाले कृषि-व्यापार...
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सोयाबीन किसान जिस तरह ट्रम्प के गले की हड्डी बन गए, संभव है नवम्बर, 2026 के मिड टर्म इलेक्शन आते-आते सत्तारूढ़ रिपब्लिकन अलोकप्रिय हो जाए। तो क्या, भारतीय रणनीतिकार 3 नवम्बर, 2026 तक ट्रम्प प्रशासन के ज़रिये होने वाले कृषि-व्यापार समझौते को टालते रहना चाहते हैं? ऐसा होना भी चाहिए!

आलू-प्याज़ जैसी फ़सल जब मंडी से भी कोई नहीं उठाता, किसान क्या करता है? किसान उसे ट्रैक्टर ट्राली पर लादकर मोहल्ले-मोहल्ले माइक से आवाज़ लगाता है—‘पचास रुपये के पांच किलो आलू ले लो... प्याज़ ले लो..।’ इन दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति की हालत ठीक उसी किसान की तरह हो गई है। ट्रम्प भी ‘सोयाबीन ले लो...’ की विश्वव्यापी गुहार लगा रहे हैं। ट्रम्प पर अमेरिकी सोयाबीन उत्पादकों का ज़बरदस्त दबाव है। ट्रम्प प्रशासन ने मंगलवार को घोषणा की, कि वह प्रभावित किसानों को 12 अरब डॉलर तक की आपातकालीन सहायता प्रदान करेगा। कृषि मंत्री सन्नी पर्ड्यू ने कहा कि यह योजना, यूएसडीए के कमोडिटी कार्यक्रम के माध्यम से किसानों को अस्थायी राहत प्रदान करेगी। इस बीच ट्रम्प चीन, यूरोपीय संघ और अन्य देशों के साथ दीर्घकालिक नीति पर बातचीत करेंगे।

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12 अरब डॉलर का भुगतान बिना अमेरिकी कांग्रेस की स्वीकृति के? यह भी ट्रम्प के लिए मुश्किल हालात हैं। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान, किसानों को 23 अरब डॉलर से अधिक की व्यापार सहायता देने के लिए सीसीसी का इस्तेमाल किया था। कमोडिटी क्रेडिट कॉर्पोरेशन (सीसीसी), अमेरिकी कृषि विभाग ‘यूएसडीए’ की वित्तपोषण इकाई है। यह अमेरिकी राजकोष से 30 अरब डॉलर तक उधार ले सकता है, और किसी भी शुद्ध घाटे की भरपाई बाद में यूएस कांग्रेस (संसद) की हामी से विनियोजित की जाती है। जब से ट्रम्प आये हैं, सीनेट पांच बार वित्तीय प्रस्ताव खारिज कर चुका है।

इलिनोइस विश्वविद्यालय अर्बाना-शैंपेन के एसोसिएट प्रोफेसर जोनाथन कोप्पेस ने एक मेल के ज़रिये जानकारी दी—‘इस फंड से जो पैसा निकलता है, हर साल शरद ऋतु में फिर से भर दिया जाता है, लेकिन शटडाउन के कारण इसे फिर से नहीं भरा गया है।’ अर्थात, यहां खज़ाना खाली है। ट्रंप ने बार-बार कहा है कि हमारा प्रशासन टैरिफ से होने वाली आय का इस्तेमाल किसानों की सहायता के लिए करेगा। लेकिन, किसानों को इस तरह के सीधे भुगतान की वैधानिक सीमा 35 करोड़ डॉलर है। ज़रूरत 12 अरब डॉलर की है, और ट्रम्प की क्षमता 35 करोड़ डॉलर देने भर की है। मामला, सचमुच बुरा फंसा है।

अमेरिकी सोयाबीन के सबसे बड़े विदेशी खरीदार चीन ने आखिरी बार मई, 2025 में अमेरिकी सोयाबीन खरीदी थी। सितंबर में शुरू हुए इस फसल के मौसम के लिए उसने कोई सोयाबीन नहीं खरीदी है। राष्ट्रपति ट्रम्प ने सोया किसानों को समझाया, कि हम अभी भी पेइचिंग के साथ सोयाबीन समझौते का प्रयास कर रहे हैं। वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक, ‘सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़’ के स्कॉट कैनेडी ने सोमवार को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा, कि चीन के पास ‘दुनिया भर से सोयाबीन खरीदने का ऑप्शन रहता है। चीन पर 55 प्रतिशत टैरिफ लगाना अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए विशेष रूप से अच्छा नहीं है, इसलिए मुझे लगता है कि टैरिफ के स्तर को फिर से कम करने की आवश्यकता है।’

चीनी राष्ट्रपति शी ने ट्रम्प को सबक सिखाने के वास्ते ब्राजील और अर्जेंटीना को सोयाबीन का ऑर्डर देना शुरू किया है। चीनी वस्तुओं पर ट्रंप के टैरिफ के जवाब में, चीन ने अप्रैल में अमेरिकी सोयाबीन पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाया, जिससे उनकी मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता और कम हो गई। चीन के अलावा, अमेरिकी सोयाबीन के शीर्ष आयातकों में मेक्सिको, यूरोपीय संघ, जापान और इंडोनेशिया शामिल हैं। अमेरिकी किसान वियतनाम से लेकर नाइजीरिया तक खरीदारों की तलाश कर रहे हैं।

पिछले महीने, आयोवा के रिपब्लिकन गवर्नर किम रेनॉल्ड्स, जो सोयाबीन की खेती पर अत्यधिक निर्भर एक अमेरिकी राज्य है, एक प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत आए थे, जिसमें आयोवा के कृषि सचिव माइक नाइग और राज्य के कृषि और व्यावसायिक नेता शामिल थे। इलिनोइस सोयाबीन का प्रमुख उत्पादक राज्य है, लेकिन आयोवा, नेब्रास्का और मिनेसोटा भी बड़े उत्पादक हैं।

ट्रंप की व्यापार टीम चाहती है, कि भारत के कृषि बाजार को अमेरिकी उत्पादों के लिए पूरी तरह से खोल दिया जाए। लेकिन, भारत में किसान वोट बैंक को ट्रम्प की ख़ुशी में आहुति देने का जोखिम बीजेपी नहीं ले सकती। इसलिए, अमेरिकी कृषि उत्पादों के लिए बाज़ार खोलने के सवाल पर मोदी सरकार कोई फैसला जल्दबाज़ी में नहीं लेना चाहती। वर्ष 2023-2024 में, भारत में लगभग 130‍.5 लाख मीट्रिक टन सोयाबीन का उत्पादन होने का अनुमान लगाया गया था, जो देश के कुल तिलहन उत्पादन का लगभग एक-तिहाई है। परिणामस्वरूप, ब्राज़ील, संयुक्त राज्य अमेरिका, अर्जेंटीना और चीन के बाद भारत, दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक देश बन गया है। फिर भी, भारत ने 2023-24 में 6.25 लाख टन सोयाबीन का आयात किया था।

भारत में, सोयाबीन उगाने वाले प्रमुख राज्य मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात और तेलंगाना हैं। सोयाबीन का सेवन दूध के विकल्प के रूप में पीने या पूरक के रूप में भी करते हैं। पौष्टिक होने के साथ-साथ, सोयाबीन के कुछ अन्य लाभ और उपयोग भी हैं। इसे परिष्कृत करके सोया तेल निकाला जाता है, और इसका उपयोग पर्यावरण के अनुकूल ईंधन, मोमबत्तियां, क्रेयॉन और इंजन लुब्रिकेंट बनाने के लिए किया जाता है।

वर्ष 2025 की शुरुआत से, भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश ने अमेरिका से 4,00,000 मीट्रिक टन से ज़्यादा सोयाबीन का आयात किया है। इसी तरह, जून, 2025 में, वियतनाम ने अमेरिकी सोयाबीन निर्यात परिषद के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जिसमें सोयाबीन, मक्का और गेहूं सहित 1‍.4 अरब डॉलर से अधिक के अमेरिकी कृषि उत्पाद खरीदने का संकल्प लिया गया। अमेरिकी सोयाबीन एसोसिएशन के एक प्रतिनिधिमंडल ने अफ्रीका में मछली के चारे में सोयाबीन के उपयोग को बढ़ावा देने और पश्चिम अफ्रीकी देश को एक प्रमुख कृषि व्यापार भागीदार के रूप में पुनः स्थापित करने के लिए अगस्त में नाइजीरिया का दौरा किया था।

35 प्रतिश्ात सोयाबीन की पैदावार वाला ब्राज़ील नंबर वन पायदान पर है। अमेरिका 28 प्रतिश्ात, अर्जेंटीना 12 प्रतिश्ात, चीन 5 प्रतिश्ात, भारत 3 प्रतिशत के आसपास हैं। लेकिन अमेरिकी किसान अब सोयाबीन की खेती का रकबा घटाने लगे हैं। यूएसडीए का अनुमान है कि विपणन वर्ष 2025-26 के लिए सोयाबीन की बुवाई 31 लाख एकड़ घटकर 84 लाख एकड़ रह जाएगी। इस कमी के बावजूद, पैदावार 50‍.7 बुशल प्रति एकड़ से बढ़कर 52.5 बुशल प्रति एकड़ होने की उम्मीद है। एक ‘बुशल’ गेहूं या सोयाबीन 27.22 किलोग्राम के बराबर होता है। सोयाबीन किसान जिस तरह ट्रम्प के गले की हड्डी बन गए, संभव है नवम्बर, 2026 के मिड टर्म इलेक्शन आते-आते सत्तारूढ़ रिपब्लिकन अलोकप्रिय हो जाए। तो क्या, भारतीय रणनीतिकार 3 नवम्बर, 2026 तक ट्रम्प प्रशासन के ज़रिये होने वाले कृषि-व्यापार समझौते को टालते रहना चाहते हैं? ऐसा होना भी चाहिए!

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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