मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

समतामूलक समाज शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि

आर्थिक विसंगतियां
Advertisement

देश में असमानता कम करने की दिशा में प्राथमिकता के आधार पर काम किया जाए। ऐसा तंत्र तैयार किया जाए, जिसमें बेहतर स्वास्थ्य, अच्छी शिक्षा, यथोचित रोज़ग़ार, न्याय तथा उन्नत-उत्कृष्ट तकनीक तक देश के प्रत्येक नागरिक की पहुंच संभव हो सके।

दशकों पूर्व हमारे क्रांतिवीरों ने स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में एक ऐसे भारत की संकल्पना की थी, जो विकसित एवं आत्मनिर्भर होने के साथ समतापरक भी हो। निस्संदेह, आत्मनिर्भरता व विकास के क्षेत्र में तो पिछले सात दशकों के दौरान देश ने उल्लेखनीय प्रगति की है। स्वतंत्रता सेनानियों का स्वप्न साकार करता भारत शीघ्र ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है लेकिन सर्वांगीण विकास के निहितार्थ आर्थिक समानता पर दृष्टि डालें तो निश्चय ही प्राप्त आंकड़े उम्मीदों पर पानी फेरते नज़र आएंगे। अप्रत्याशित विकास होने के बावजूद भारत में आर्थिक असमानता आज भी एक जटिल समस्या बनी हुई है। धन व आय के असमान वितरण में ग्राम्य-शहरी विभाजन से लेकर वर्ग-लिंग आधारित विषमताएं बराबर दृष्टिगोचर होती हैं।

Advertisement

ऑक्सफैम इंटरनेशनल की रिपोर्ट ‘सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट : द इंडिया स्टोरी’ के अनुसार, भारत विश्व के सर्वाधिक असमान देशों में से एक है। भारत के 119 अरबपतियों की संपत्ति विगत दशक में लगभग दस गुना बढ़ गई, जबकि निर्धन उचित पारिश्रमिक पाने के लिए संघर्षरत हैं। रिपोर्ट के तहत, भारतवर्ष की कुल संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा, क़रीब 11.6 लाख करोड़ डॉलर शीर्ष 1 प्रतिशत अमीरों के पास है।

‘क्रेडिट सुइस वेल्थ रिपोर्ट’ तथा फोर्ब्स इंडिया के नवीनतम विश्लेषण पिछले एक दशक के दौरान भारतीय अरबपतियों की संख्या में 300 प्रतिशत से अधिक वृद्धि होने का ख़ुलासा करते हैं, जबकि 50 प्रतिशत जनता की वास्तविक आय या तो स्थिर रही अथवा घट गई।

इसी प्रकार, ‘ग्लोबल इनइक्वैलिटी रिपोर्ट’ के मुताबिक़, भारत में शीर्ष 10 प्रतिशत लोग देश की कुल आय का लगभग 57 फ़ीसदी भाग प्राप्त करते हैं, जबकि निचले 50 प्रतिशत के हिस्से मात्र 13 प्रतिशत आय आती है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अत्यधिक गरीबी में कमी आने के बावजूद धन-आय असमानता एक विचारणीय मुद्दा बना हुआ है। ग्रामीण अंचलों में बसे लोगों की औसत मासिक आय शहरी क्षेत्रों की तुलना में काफी कम है। महिलाओं को पुरुषों से कम मजदूरी मिलती है, कार्यबल में भी उन्हें कम प्रतिनिधित्व दिया जाता है। स्पष्ट शब्दों में, देश की आर्थिक विकास दर तीव्र होने के बावजूद लाभार्थियों की परिधि सिमट रही है।

वर्ष 1991 में आरम्भ हुए आर्थिक सुधारों ने निजी पूंजी, कॉर्पोरेट घरानों और वैश्विक निवेश को खुला मंच दिया किंतु इसका प्रत्यक्ष लाभ उच्च तकनीकी, पूंजी तथा शिक्षा से संबद्ध वर्ग को मिला, श्रमिक अथवा ग्रामीण वर्ग इससे अछूता ही रहा। पिछले एक दशक के दौरान बीएसई-सेंसेक्स में जबरदस्त उछाल आने से अमीरों की संपत्ति तेज़ी से बढ़ी। 50 प्रतिशत से अधिक आबादी जो आय श्रम, कृषि तथा असंगठित क्षेत्र से आती है, के संदर्भ में वेतनवृद्धि लगभग नगण्य रही। वर्ष 2019 में सरकार द्वारा कॉर्पोरेट टैक्स 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत किए जाने पर अरबपति ही लाभान्वित हो पाए, गरीब तथा मध्यम वर्ग के लिए प्रत्यक्ष सहायता योजनाएं अपर्याप्त साबित हुईं।

स्वास्थ्य, शिक्षा तथा स्वच्छता जैसी आधारभूत सुविधाओं की कमी आर्थिक असमानता बढ़ाने में प्रमुख कारण है। भारत की एक बड़ी आबादी असंगठित क्षेत्र में काम करती है, जहां आय व कार्य की स्थिति अनिश्चित होती है। शिक्षा व कौशल विकास की कमी बेहतर नौकरी व उच्च वेतनमान प्राप्त करने में बड़ी बाधा है। बढ़ती मुद्रास्फीति निर्धन वर्ग की क्रय शक्ति का ह्रास करती है। भारत में विरासत एवं संपत्ति कर लागू न होना भी आर्थिक असमानता बढ़ाता है।

वास्तव में, यह विषमता देश के सामाजिक ताने-बाने के लिए बड़ी चिंता है। समाज के अधिकतर संसाधन कुछ लोगों के हाथ चले जाएं तो बाकी जनता हाशिए पर चली जाती है। अमीर-गरीब के मध्य बढ़ती खाई वर्गीय भेद उत्पन्न करके सामाजिक सौहार्द व राष्ट्रीय एकता को ठेस पहुंचाती है। आर्थिक अस्थिरता स्थायी होने का ख़तरा भी मंडराने लगता है।

दरअसल, समस्यायों से समूल निपटान हेतु प्रभावी नीतियों की आवश्यकता है, जो न केवल धन तथा आय के समान वितरण पर केंद्रित हों बल्कि महिलाओं व हाशिये पर मौजूद समूहों के साथ होने वाला भेदभाव मिटाने में भी समर्थ हों। न्यूनतम वेतन बढ़ाकर श्रमिकों के अधिकार सुरक्षित करना, आर्थिक समर्थन प्रदान करते हुए निर्धन-वंचित वर्ग को अच्छी शिक्षा, बेहतर रोज़ग़ार मुहैया करवाना, कृषि विकास को बढ़ावा देते हुए सुदूरवर्ती गांवों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ना इत्यादि आर्थिक असमानताओं से उबरने का सर्वोत्तम उपाय बन सकते हैं। उद्यमिता को बढ़ावा देने के साथ वित्तीय साक्षरता व निवेश की शिक्षा दी जाए तो लोग अपने धन का समुचित प्रबन्धन कर पाएंगे।

देश की अर्थव्यवस्था का ढांचा सशक्त करने तथा आर्थिक विकास को मजबूत आधार प्रदान हेतु अनिवार्य है कि देश में असमानता कम करने की दिशा में प्राथमिकता के आधार पर काम किया जाए। ऐसा तंत्र तैयार किया जाए, जिसमें बेहतर स्वास्थ्य, अच्छी शिक्षा, यथोचित रोज़ग़ार, न्याय तथा उन्नत-उत्कृष्ट तकनीक तक देश के प्रत्येक नागरिक की पहुंच संभव हो सके। आर्थिक अंतर कम होने पर ही हमारे शहीदों के ख़्वाबों में बसी समतामूलक समाज की अवधारणा मूर्तरूप ले पाएगी औऱ यही होगी उनकी शहादत को सच्ची श्रद्धांजलि।

Advertisement