अमिताभ स.
‘एक अच्छे इनसान की पहचान उसके दोस्त और नौकर से होती है, जिसका जितना पुराना दोस्त होगा और जितना पुराना नौकर होगा, वह इनसान उतना ही नेक दिल और अच्छा होगा।’ कपिल शर्मा शो के एक एपिसोड में अच्छे इनसान की पहचान का ज़िक्र करते हुए जानेमाने फ़िल्मकार सलीम खान ने एक दफा कुछ यूं बताया था। मिर्जा ग़ालिब भी तो फ़रमाते हैं, ‘चलो दौलत की बात करते हैं, बताओ तुम्हारे दोस्त कितने हैं।’
कहते हैं सच्चे दोस्त मिलना दुर्लभ होता जा रहा है। दोस्ती की पहचान वक्त की कसौटी पर कसने से होती है। आज के दौर में, संतानें तक अपने बुजुर्ग माता-पिता को छोड़ती दिखती हैं, जब उन्हें सहारे की सबसे ज़्यादा जरूरत होती है। फिर दोस्त क्या है। विचारक सैम्यूल बटलर ने लिखा है-‘दोस्त पैसे की तरह है। बनता जल्दी है, टिकता मुश्किल है।’ ख़ुशहाली के दौरान दोस्त घेर लेते हैं और बुरे दिन आते ही छंटने लगते हैं।
गुरु अंगद का मानना है कि खोखले भाव से दोस्ती पानी में रेखा खींचने जैसी है। ऐसी दोस्तियां क्षणभंगुर होती हैं, पल भर में चटक जाती हैं और अर्थहीन भी होती हैं। इसीलिए सयाने बताते हैं कि मित्रता करने में जल्दबाजी न करें। लेकिन जब दोस्ती करें तो उसे मजबूती से निभाएं और उस पर अटल रहें। एक दोस्त ने दूसरे दोस्त से पूछा-दोस्त का मतलब क्या होता है। दोस्त ने मुस्कुराकर कहा-पगले एक दोस्त ही तो है, जिसका कोई मतलब नहीं होता। जहां मतलब होता है, वहां कोई दोस्त नहीं होता।
दोस्ती का उसूल है—मैत्री भावना में ज़्यादा चाह मत रखिए, वरना आपको निराशा हाथ लगेगी। लेकिन अपने दोस्तों को उदास या निराश मत कीजिए। दोस्ती में गिले-शिकवों की कोई जगह नहीं होती। सवाल यह कतई नहीं है कि जब आप कठिनाई में हैं तो आपके दोस्त आपकी मदद के लिए दौड़े आएं। उनका मददगार बनना या न बनना तर्कहीन है। यह उनका फ़ैसला है। आपको जताने या राज़ी करने की जरूरत भी नहीं है। न ही मन में गिले पालने हैं। ओशो समझाते हैं—‘मत पूछो कि आपका असली दोस्त कौन है? बल्कि पूछो कि क्या मैं असली दोस्त हूं।’ दूसरों की गारंटी लेना नामुमकिन है,लेकिन स्वयं की तो ले ही सकते हैं।
और फिर, जीवन दोस्त बनाने के लिए है, दुश्मन नहीं। जब दोस्त बनाकर काम हो सकता है तो दुश्मन क्यों बनाए जाएं। इसलिए जितना हो सके, दोस्ती का दामन थाम कर आगे बढ़ते जाएं। दोस्ती का कायदा है कि पीछे से छुरा नहीं भोंकते। साहित्यकार ऑस्कर वाइल्ड लिखते हैं, ‘सच्चे दोस्त सामने से छुरा मार सकते हैं।’ उधर अंग्रेज़ी साहित्यकार वर्जीनिया वूल्फ तो इस हद तक कहते हैं, ‘मैंने सभी दोस्त खो दिए। कुछ की मृत्यु हो गई तो अन्य मुझे सड़क पार कराने के काबिल नहीं थे।’ इस पर ओशो अपनी किताब ‘ओशो फ्रेगनेंस’ में लिखते हैं, ‘दोस्ती में तुम धोखा खा लो लेकिन धोखा मत देना। क्योंकि धोखा खाने से कुछ नहीं खोता, बल्कि धोखा देने से सब कुछ खो जाता है।’
दर्शन कहता है कि हर इनसान को खुद से, दोस्तों से, परिवार से, आस-पड़ोस से और समाज से ईमानदार होना चाहिए। और अगर कोई दोस्ती लायक न मिले तो ईश्वरीय दोस्ती में ही रम जाएं। एक दफा छोटे कारोबारी ने तीर्थ यात्रा पर जाने से पहले अपने रुपये-पैसे और सोने-चांदी के गहनों को एक पोटली में बांधा और पड़ोस के सेठ से अमानत के तौर पर रखने का आग्रह किया। दो-एक महीने बाद व्यापारी लौटा। उसने अपनी पोटली खोली तो उसके होश उड़ गए! उसमें पत्थर भरे थे। वह सेठ के सामने गिड़गिड़िया लेकिन वह नहीं माना। व्यापारी अपनी फरियाद लेकर राजा के दरबार में पहुंचा। अगले रोज नगर में राजा की सवारी निकली। राजा व्यापारी के घर के सामने पहुंचा तो वह भागा-भागा घर से निकला। राजा के हुक्म पर महावत ने हाथी पर बैठा लिया। सेठ खिड़की से देख रहा था। उसने सोचा कि इस छोटे-से व्यापारी की राजा से मित्रता है। अगर उसने मेरी करतूत की पोल खोल दी तो मेरी खैर नहीं। दोपहर बाद व्यापारी घर लौटा तो सेठ सामने हाथ जोड़कर खड़ा था। कहने लगा, ‘भाई, तुम्हारा कुछ सामान मेरे घर में ही छूट गया था। उसे ले जाओ।’ व्यापारी सोचने लगा, ‘अगर राजा से दोस्ती बिगड़े काम संवार सकती है तो फिर ईश्वर से मित्रता क्या नहीं करा सकती?’
स्पैनिश लेखक-दार्शनिक बल्तासार ग्रासियन लिखते हैं कि जीवन में सच्चा दोस्त मिलना पूंजी है और उसका बने रहना आशीर्वाद है। जाने-माने कार उत्पादक हेनरी फोर्ड का कहना है कि मेरा सच्चा दोस्त वही है जो मेरा सर्वश्रेष्ठ हुनर बाहर निकाले। दोस्त हालात बदलने वाले होने चाहिए, न कि हालात के साथ बदलने वाले। दोस्ती से जीवन में सुख बढ़ता है, दु:ख घट जाता है। कॉमेडी किंग चार्ली चेपलिन सूरज, आराम, व्यायाम, डाइट व आत्मसम्मान के साथ दोस्तों को दुनिया का सबसे बड़ा डॉक्टर मानते थे।