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अपने ही सांसदों का विश्वास खो बैठे थे ट्रूडो

ट्रूडो के बुरे दिन अक्तूबर, 2024 से शुरू हुए, जब उन्हीं की पार्टी के दो दर्जन सांसदों ने उनके इस्तीफे की मांग कर दी। क्रिसमस आते-आते पार्टी के अंदर विप्लवी सांसदों की संख्या 70 से ऊपर पहुंच गई। यह संकट...
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ट्रूडो के बुरे दिन अक्तूबर, 2024 से शुरू हुए, जब उन्हीं की पार्टी के दो दर्जन सांसदों ने उनके इस्तीफे की मांग कर दी। क्रिसमस आते-आते पार्टी के अंदर विप्लवी सांसदों की संख्या 70 से ऊपर पहुंच गई। यह संकट और गहराया, जब क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने वित्त मंत्री, और उप प्रधानमंत्री के पद से अचानक इस्तीफा दे दिया था।

पुष्परंजन

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जस्टिन ट्रूडो के अच्छे दिन जाने वाले हैं। लिबरल पार्टी के नेता और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी। उनकी कुर्सी संभालने वाले का नाम फ़ाइनल होने तक वे पद पर बने रहेंगे। बुधवार को राष्ट्रीय कॉकस की बैठक से पहले उन्होंने अपनी बची-खुची इज्जत बचा ली। ट्रूडो एक विफल प्रधानमंत्री साबित हो चुके हैं। उनकी वजह से लिबरल पार्टी को चुनाव में मतदाताओं के बीच उतरना मुश्किल साबित हो रहा है। अब उस चेहरे की तलाश है, जिसे आगे कर आम चुनाव लड़ा जाये।

ट्रूडो ने वित्त मंत्री डोमिनिक लेब्लांक से चर्चा की, कि क्या वह अंतरिम नेता और प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभालने के लिए तैयार होंगे? डोमिनिक लेब्लांक की तरफ से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला कि वो इस ज़िम्मेदारी को संभालने जा रहे हैं। लिबरल पार्टी को नेतृत्व देने के वास्ते जो संभावित दावेदार हैं, उनमें क्रिस्टिया फ्रीलैंड को भी आगे किया जा रहा है। पूर्व आवास मंत्री सीन फ्रेजर, विदेश मंत्री मेलानी जोली, नवाचार मंत्री फ्रांस्वा-फिलिप शैम्पेन, परिवहन मंत्री अनीता आनंद, पूर्व केंद्रीय बैंकर मार्क कार्नी, और पूर्व बी.सी. प्रीमियर क्रिस्टी क्लार्क जैसे नाम भी सामने आने लगे हैं।

कनाडा की सत्ता के गलियारे में भूचाल की वजह सर्वेक्षण भी रहे हैं। पिछले एक साल के सर्वेक्षणों से पता चला है, कन्जर्वेटिव्स को सत्तारूढ़ लिबरल्स के मुक़ाबले दोहरे अंकों की बढ़त हासिल है। गुज़रे शुक्रवार को जारी ‘एंगस रीड सर्वेक्षण’ से पता चलता है, कि जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व में, लिबरल पार्टी को केवल 13 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन प्राप्त होना है, लेकिन यदि कोई नया नेता आता है, तो यह संख्या बदल भी सकती है। उदाहरण के लिए, वित्तमंत्री पद से इस्तीफा दे चुकीं सुश्री फ्रीलैंड यदि सत्ता संभालती हैं, तो 21 प्रतिशत मतदाता लिबरल पार्टी के लिए मतदान करेंगे, जो सर्वे के ज़रिये खंगाले गए लीड उम्मीदवारों में सबसे अधिक संख्या है। ‘एंगस रीड’ ने 27 दिसंबर से मंगलवार 31 दिसम्बर, 2024 तक, 2,406 कनाडाई वयस्कों के बीच ऑनलाइन सर्वेक्षण किया, जो एंगस रीड फ़ोरम के सदस्य हैं। इसके परिणाम के हवाले से क्रिस्टिया फ्रीलैंड को ‘फ्रंट रनर’ समझा जा रहा है।

कनाडा में संसदीय चुनाव 20 अक्तूबर, 2025 को निर्धारित है। लेकिन, ट्रूडो की सत्ता में सहयोगी रही ‘एनडीपी’ के समर्थन वापस लेने का मतलब है कि चुनाव शायद बहुत पहले हो जाएं। यदि, चुनाव पहले कराना है, तो संसद की अनुमति चाहिए। कई लिबरल सांसद वित्त मंत्री के रूप में क्रिस्टिया फ्रीलैंड के प्रदर्शन से नाखुश थे, और उन्हें बदलने की वकालत कर रहे थे। क्रिस्टिया के इस्तीफे के बाद, बंदूकें ट्रूडो के विरुद्ध तन गईं। पिछले कुछ हफ्तों में क्षेत्रीय कॉकस की बैठकों, और लिबरल सांसदों की प्रतिक्रियाओं को देखकर लगने लगा है, कि प्रधानमंत्री ट्रूडो के पास अब टीम नहीं है। ट्रूडो यह कहने की हालत में नहीं हैं, कि उनकी छवि ख़राब करने में भारत और चीन ने साज़िश रची है।

कनाडा की संसद में दो सदन हैं। निचला सदन, ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में 338 सदस्य हैं, जो एकल सीट वाले निर्वाचन क्षेत्रों से अधिकतम चार वर्ष के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं। दूसरा है सीनेट, जिसके 105 सदस्य प्रधानमंत्री की सलाह पर गवर्नर जनरल द्वारा नियुक्त किये जाते हैं। संसद में आम तौर पर कई पार्टियों का प्रतिनिधित्व दिखता है, लेकिन कनाडा में दो प्रमुख राजनीतिक पार्टियां, ‘लिबरल’ और ‘कंज़र्वेटिव’ का दबदबा बना रहता है।

ट्रूडो के बुरे दिन अक्तूबर, 2024 से शुरू हुए, जब उन्हीं की पार्टी के दो दर्जन सांसदों ने उनके इस्तीफे की मांग कर दी। क्रिसमस आते-आते पार्टी के अंदर विप्लवी सांसदों की संख्या 70 से ऊपर पहुंच गई। यह संकट और गहराया, जब क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने वित्त मंत्री, और उप प्रधानमंत्री के पद से अचानक इस्तीफा दे दिया था। क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने उस दिन पद छोड़ा, जिस दिन उन्हें अपना आर्थिक और राजकोषीय अपडेट देना था। जीएसटी अवकाश और 250 डॉलर की छूट जैसे खर्च के हथकंडों पर उन्होंने चिंता व्यक्त की, और संभावित ट्रम्प टैरिफ से निपटने में गंभीरता की कमी का हवाला दिया। इस काण्ड के बाद से अटलांटिक, ओंटारियो, और क्यूबेक कॉकस ने संकेत दिया है, कि उनके अधिकांश सदस्य अब ट्रूडो के शीर्ष पर बने रहने का समर्थन नहीं करते हैं। हाउस ऑफ कॉमन्स में ट्रूडो की पार्टी लिबरल्स के पास 153 सीटें हैं, जिनमें से 131 सीटें इन तीन क्षेत्रों में हैं।

कनाडा की पॉलिटिकल कहानी का दूसरा पहलू है, भारतीय मूल के वोटर। कनाडा के सिखों का राजनीतिक दबदबा असाधारण है, क्योंकि वे ओंटारियो और ब्रिटिश कोलंबिया में लगभग दो दर्जन संघीय क्षेत्रों में केंद्रित हैं। राजनीतिक प्रक्रिया में उनकी गहरी और रणनीतिक भागीदारी है। हालांकि, कनाडा की हिंदू आबादी आठ लाख की संख्या वाले सिख समुदाय से थोड़ी बड़ी है, लेकिन यह भौगोलिक रूप से कम केंद्रित, या अपने राजनीतिक विचारों में एकजुट नहीं है।

ट्रूडो के हर क़दम का लक्ष्य, सिख मतदाताओं को अपने आईने में उतारने का रहा है। उनकी मेहनत तब और बढ़ गई है, जब खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह ‘न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी’ के नेता बने हैं। शुक्रवार को न्यू डेमोक्रेट्स जगमीत सिंह ने ट्रूडो सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया, इससे ट्रूडो का कार्यकाल और भी संदेहास्पद हो गया। कनाडा के निचले सदन, ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में 18 सिख सांसद हैं। नवीनतम फेरबदल के बाद ट्रूडो के मंत्रिमंडल में स्वयं सहित 39 मंत्री हैं।

ट्रूडो ने 2016 में यह दावा कर दिया था, कि उनके मंत्रिमंडल में मोदी कैबिनेट से ज़्यादा सिख हैं। 2018 में एक भारतीय कैबिनेट मंत्री की हत्या के प्रयास के दोषी को आधिकारिक स्वागत समारोह में आमंत्रित कर उन्होंने दिल्ली से सम्बन्ध ख़राब करने की शुरुआत कर दी थी। ट्रूडो ने बार-बार नई दिल्ली के साथ अच्छे राजनयिक संबंध बनाए रखने से ज़्यादा सिख मतदाताओं को लुभाने को प्राथमिकता दी। वर्ष 2018 में सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री राल्फ गुडले ने ‘आतंकवाद से संभावित खतरे’ वाली रिपोर्ट में ‘सिख चरमपंथ’ की चर्चा कर दी थी। खालिस्तान समर्थकों ने जब धमकी दी, तो 2019 में उस सन्दर्भ को राल्फ गुडले ने हटा दिया।

वर्ष 2020 में, मोदी सरकार ने कनाडा पर भारत के आंतरिक मामलों में ‘अस्वीकार्य हस्तक्षेप’ करने का आरोप लगाया, जब ट्रूडो ने पीएम मोदी के कृषि सुधारों का विरोध कर रहे सिख किसानों के समर्थन में बात की थी। 2023 में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या साज़िश में गृहमंत्री अमित शाह का नाम उछालकर ट्रूडो ने भारत-कनाडा संबंधों में और कड़वाहट घोल दी। लिबरल पार्टी के बहुत सारे सांसदों की राय है, कि इससे सारे सिख मतदाता हमारी तरफ़ आने से रहे।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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