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व्यवस्था में पारदर्शिता से दूर होगा कुपोषण

पीडीएस में लीकेज
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जयंतीलाल भंडारी

हाल ही में इंडियन कौंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकॉनामिक रिलेशंस द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में पाया गया है कि देश पीडीएस के तहत भारतीय खाद्य निगम और राज्य सरकारों द्वारा आपूर्ति किए गए अनाज का 28 फीसदी इच्छित लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाता है। यानी सालाना करीब दो करोड़ टन अनाज का लीकेज होता है। अर्थव्यवस्था को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है। इस वजह से सालाना करीब 69 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का आर्थिक नुकसान होता है। चालू वित्त वर्ष 2024-25 के लिए केंद्र सरकार का खाद्य सब्सिडी बिल 2.05 लाख करोड़ रुपये का है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2016 से राशन की दुकानों में पाइंट ऑफ सेल (पीओएस) मशीनों की शुरुआत से लीकेज में कमी आई है। वर्ष 2011-12 की खपत संख्या के आधार पर शांता कुमार समिति ने कहा था कि पीडीएस व्यवस्था में करीब 46 फीसदी लीकेज है। यद्यपि इस समय इस लीकेज में कमी आई है, लेकिन यह अभी भी काफी अधिक है। ऐसे में जरूरी है कि पीडीएस के लिए बेहतर निगरानी और संरचनात्मक सुधारों की डगर पर तेजी से आगे बढ़ा जाए।

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देश में गरीबों पर केंद्रित लक्षित पीडीएस की शुरुआत जून, 1997 में हुई है। इस समय दुनिया में भारत सबसे बड़ी सार्वजनिक राशन वितरण प्रणाली के लिए जाना जाता है। देश भर में मौजूदा पांच लाख से अधिक उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण किया जाता है। खासतौर से सितंबर, 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के पारित होने के साथ ही पीडीएस व्यवस्था में बड़ा सुधार हुआ है। यह अधिनियम देश की 67 फीसदी आबादी को अपने दायरे में लेता है। सरकार के द्वारा कोविड-19 महामारी के दौरान वंचित वर्गों के पात्र लोगों के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत अतिरिक्त अनाज दिया जाने लगा है और तब से लगातार अब तक केंद्र सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत देश के 81.35 करोड़ लोगों को नि:शुल्क खाद्यान्न मुहैया करा रही है। सरकार ने वर्ष 2028 तक इस योजना का लाभ सुनिश्चित किया है।

देश में कमजोर वर्ग के लोगों को व्यवस्थित रूप से नि:शुल्क खाद्यान्न वितरित किए जाने में पीडीएस की अहम भूमिका है। इससे गरीबी में कमी आ रही है। कई प्रमुख वैश्विक संगठनों के द्वारा उनकी रिपोर्टों में भारत में बहुआयामी गरीबी घटाने में 81 करोड़ से अधिक लोगों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत मुफ्त खाद्यान्न दिए जाने और उससे गरीब वर्ग की उत्पादकता बढ़ने के निष्कर्ष भी दिए गए हैं। अमेरिकी के प्रसिद्ध थिंक टैंक द ब्रुकिंग्स इंस्टिट्यूशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां वर्ष 2011-12 में भारत की 12.2 फीसदी आबादी अत्यधिक गरीब थी, वहीं यह वर्ष 2022-23 में घटकर महज दो फीसदी ही रह गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीबों की उत्पादकता वृद्धि, तेज विकास और असमानता में कमी के चलते भारत को यह कामयाबी मिली है।

लेकिन अभी भी कमजोर वर्ग तक नि:शुल्क गेहूं और चावल के अलावा पोषण युक्त श्रीअन्न यानी मिलेट्स की उपयुक्त आपूर्ति न होने से करोड़ों लोग पोषण सुरक्षा के मद्देनजर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। हाल ही में प्रकाशित ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) 2024 में भारत 127 देशों में 105वें नंबर पर है। लेकिन भारत के लिए अभी भी हंगर इंडेक्स का स्कोर 27.3 है जो गंभीर बना हुआ है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा जारी रिपोर्ट में भी कहा गया है कि भारत में करीब 74 फीसदी लोगों को पोषण युक्त आहार नहीं मिल पाता है।

निश्चित रूप से देश के 81 करोड़ से अधिक लोगों तक नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण, इच्छित लाभार्थियों तक इसकी उपयुक्त पहुंच और पोषण युक्त खाद्यान्न की आपूर्ति सुनिश्चित करने के मद्देनजर देश की पीडीएस व्यवस्था पर नए सिरे से विचार करना होगा। मौजूदा पीडीएस व्यवस्था को इस तरह सुधारना होगा, जिससे सरकार गरीबों के कल्याण और गरीबी निवारण लक्ष्य को पाने के लिए आगे बढ़ सके और वास्तविक लाभार्थी इसके लाभों को प्राप्त कर सके। पीडीएस के तहत प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण में ऐसे परिवर्तन की संभावना तलाशना जरूरी है, जिससे इस व्यवस्था की पारदर्शिता बढ़ाई जा सके और अकुशलता में भी कमी की जा सके।

केंद्रीय खाद्य मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक राशन कार्ड के डिजिटलीकरण के चलते देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को अधिक कारगर बनाने के लिए आधार एवं ईकेवाईसी प्रणाली के माध्यम से सत्यापन कराने के बाद अब तक फर्जी पाए गए 5 करोड़ 80 लाख से अधिक राशन कार्ड रद्द कर दिए गए हैं। चूंकि अभी तक पीडीएस लाभार्थियों में से करीब 64 फीसदी का ही ईकेवाईसी किया गया है, अतएव शेष का ईकेवाईसी तेजी से बढ़ाकर पीडीएस को अधिक प्रभावी बनाया जा सकेगा।

लेखक अर्थशास्त्री हैं।

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