सहीराम
एक बार तो आलू, बैंगन, घीया तथा गोभी जैसी सब्जियां ईर्ष्या से भर उठी जब उन्होंने देखा कि टमाटर ने शतक मार दिया। उन्होंने बड़ी उम्मीदों के साथ प्याज पर नजर डाली कि भैया अब इसे तो तुम्हीं मात दे सकते हो। हम तो वैसे भी चाहे कितने ही महंगे हो जाएं, पर इससे मुकाबला तो हमेशा तुम्हारा ही रहता है। इसीलिए अब जब टमाटर ने शतक मार दिया है तो तुम भी अब अपना जलवा दिखा ही दो।
प्याज का वैसे भी रिकॉर्ड रहा है कि जब भी वक्त आया है, उसने हर सरकार को आंख दिखाई है। सब्जियां जानती हैं कि टमाटर चाहे कितना ही महंगा हो ले, पर सरकार गिराने का बूता तो बस प्याज में ही है। प्याज थोड़ी उदास थी। उसने कहा-यार मैं इस सरकार का क्या करूं। इसकी तो वित्तमंत्री ही मुझे अछूत की तरह देखती हैं। कहती हैं कि मैं प्याज-लहसुन नहीं खाती। सब्जियों ने उसे धीरज बंधाया-कोई बात नहीं, हो सकता है, इस तरह उन्होंने अपने श्ााकाहारी होने का परिचय दिया हो, पर तुम्हें हिम्मत हारने की जरूरत नहीं। इसी वक्त टमाटर ने उनके बीच आकर खेल भावना का परिचय दिया। उसने कहा-देखो कहने वाले तो मेरे बारे में भी यही कहते हैं कि मुझे खाने से पथरी हो जाती है। लेकिन भाव को दिखाना ही पड़ता है न। सो हिम्मत मत हारो।
टमाटर की इस खेल भावना से सभी प्रभावित हुए। उसने सभी सब्जियों को सांत्वना दी। उसने कहा-देखो हम कोई जनता तो हैं नहीं कि जातियों और धर्मों में बंट जाएंगे। हम सभी एक हैं। हमारा मुकाबला किसी से है तो फलों से है और मुझे गर्व है कि मैंने सेब जैसे फल को धूल चटा दी है, जबकि उसके सिर पर अडानी जैसे सेठ का हाथ है।
हां भैया- गोभी ने कहा-जिस दिन अडानी जैसे सेठों का हाथ हमारी पीठ पर होगा, उस दिन हम भी इन फलों को दिखा देंगे कि सब्जियां कोई घासफूस नहीं हैं। घीया ने कहा-देखो इन दिनों हमारा मुकाबला लोग फलों से नहीं मान रहे। पेट्रोल जब से सौ के पार पहुंचा, वे तो हमारा मुकाबला तेल से ही मान रहे हैं। फिर टमाटर की ओर बिरादाराना भाव से निहारते हुए उसने कहा-मुझे खुशी है कि ऐसा भाव दिखाकर भी टमाटर में घमंड नहीं आया है और वह अब भी हमारे साथ भाईचारा बनाए हुए है। वह इनसानों जैसा बिल्कुल भी नहीं है।
टमाटर भावविभोर हो गया। उसने कहा कि आप लोगों के आशीर्वाद से मैंने तो पेट्रोल को भी धूल चटा दी है। लेकिन मैं आपसे अलग कहां हूं। आप हैं तो ही मेरी कद्र है। मैं कोई नेता नहीं हूं कि भाव बढ़ते ही अपने भाई-बंधुओं को भूल जाऊं। और वैसे भी हममें ईर्ष्या का भाव नहीं होना चाहिए। हमें प्रतियोगी बनना है। आज मैंने शतक मारा है तो कल आलू, बैंगन, घीया, गोभी भी शतक मार सकते हैं। इस तरह प्रतियोगी होकर ही हम फलों को मात दे सकते हैं।