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भाव खाकर शेयर बाजार में टमाटर

तिरछी नज़र

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हेमंत कुमार पारीक

टमाटर जैसे कि शेयर हो गए हैं। भैयाजी कह रहे हैं कि टाटा-अम्बानी की कम्पनियों के शेयर की जगह टमाटर खरीद लो। वैसे भी इस वक्त टमाटर लाइम लाइट में हैं। मगर दूसरों को रुलाने वाली प्याज खुद टसुए बहा रही है। एक जगह जरूर कद्र हुई है। एक बंदे ने कहा, प्याज फोड़ दो। बड़ी विचित्र बात कही। प्याज के तो छिलके निकाले जाते हैं। फोड़ने की बात कहां से आयी? हां, गर्मियों में गांव के लोग सूखी रोटी के साथ प्याज फोड़कर जरूर खाते हैं। कभी-कभी उसे भून भी लेते हैं।

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वैसे भी प्याज जन्मजात फूटी ही तो है। हां, अगर नारियल फोड़ने की बात होती तो भी मान लेते। मगर इस वक्त प्याज को आंसू बहाते देखकर हम बेहद इमोशनल हो रहे हैं। कारण कि पकौड़े के दाम गिर गए हैं। इसलिए वे बेरोजगार जो पकौड़े के टपरों का इनॉगरेशन करने वाले थे, उन्होंने प्रोग्राम मुल्तवी कर दिया है। वजह प्याज का सस्ता होना।

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वैसे ऐसा तो कभी नहीं हुआ। वे टमाटर जो कभी सड़कों और मंचों पर फेंके जाते थे। विदेशी जिस टमाटर से होली खेलते थे, उनके भाव इतने बढ़ जाएंगे कि सब्जीवाला काटकर बेचने लगेगा। सोने जैसा तौलेगा।

इस वक्त आल पार्टी विपक्ष की तरह लहसुन, धनिया, वगैरा टमाटर के खिलाफ एक संगठन बनाने की तैयारी में हैं। दरअसल, इनमें से कुछ ऐसी सब्जियां हैं जो टमाटर से ज्यादा भाव रखती हैं। प्रभावशाली हैं। मगर जनता में तो अभी टमाटर चल रहा है। यह तो चांस की बात है। भीड़ की बात है। भीड़तंत्र की बात है। जिसके पीछे भीड़ चले- वह सिकंदर! फिलहाल खोटे सिक्के के लिए विरदावली रची जा रही है। समूहगान हो रहे हैं। नगाड़े बज रहे हैं। असली सिक्के के जब्ती की मुनादी करायी जा रही है। भीड़ है। भीड़ का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। भीड़ लिंचिंग भी कर देती है। भीड़ पत्थर भी चला देती है।

फिलवक्त हमारे शहर की सड़कों पर गाय-भैंस की भीड़ दिखाई देती है। पहले सूअर दिखते थे। गाय-भैंसों की इस भीड़ से अब आदमी का सड़क पर चलना मुहाल है। वह भी इस भीड़ से कन्नी काटकर चल रहा है। कहे भी तो किससे? अगर मालिकों से कहेगा तो वे तुरन्त मोर्चा निकालेंगे या पंचायत बुला लेंगे। यही हाल पड़ोसी देश का है। वहां भी भीड़ है गधों की। गधों ने रोड जाम कर रखा है। इतने ज्यादा हो गए हैं कि उनके भी भाव गिर रहे हैं।

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