कुछ भी कहो दर्जी कमाल का व्यक्ति होता है। उसकी सबसे अच्छी बात एक ही है कि वह आपके माप को लेकर कभी कोई टिप्पणी नहीं करता बल्कि चुपचाप माप लेता है। बाकी सब लोग हमसे उम्मीद करते हैं कि पुराने माप के मुताबिक हम फिट रहें पर दर्जी नहीं। दर्जी के सामने किसी की मर्जी नहीं चलती। वह अपने हिसाब से चलता है और उसका अपना ही कलेंडर है। मंगलवार को डिलीवरी का वादा करने पर यदि आप मंगलवार को कपड़े लेने चले गये तो वह आपसे ही पूछेगा कि आपने यह तो पूछा ही नहीं कि कौन-सा मंगलवार। और आप उस पल सिवाय हैरान-परेशान होने के और कुछ नहीं कर सकते। दर्जियों की इसी लेट-लतीफी ने रेडीमेड गारमेंट इंडस्ट्री को आसमान छूने का मौका दे दिया। शहरों के बड़े-बड़े विशाल मॉल्ज़ से लेकर गांवों की तंग गलियों तक में रेडीमेड गारमेंट्स की दुकानें अपना परचम लहरा रही हैं। इधर मैंने देखा है कि मारुति 800 मॉडल की पुरानी कारों में रेडीमेड कपड़ों की चलती-फिरती दुकानें गांवों में खूब घूम रही हैं। घर-घर होने वाली सिलाई मशीनों पर धूल की परतें जम रही हैं।
एक व्यक्ति ने अपने दोस्त से पूछा कि शादी के बढ़िया जोड़े कौन बनाता है तो जवाब मिला कि भगवान बनाता है। वह आदमी इस संदर्भ में अपनी अनभिज्ञता ज़ाहिर करते हुये बोला- ओहो! मैं तो दर्जी को दे आया। दुनिया में एक ही आदमी है जो गला भी काटता है और बाजू भी पर एक कतरा खून नहीं टपकता क्योंकि यही इंसान है जो दर्जी के रूप में नवसृजन करता है।
कोरोना के बाद दर्जियों की एक समस्या तो बढ़ ही गई है कि अब हर महिला कहती है— भईया बचे हुये कपड़े का मास्क बना देना। वे भी दिन थे जब कपड़ा नापने के बाद एक दर्जी ने कहा कि इसमें तुम्हारा सफारी सूट नहीं बन सकता, कपड़ा कम है तो ग्राहक ने सवाल दागा कि फलां दर्जी तो कह रहा था कपड़ा पूरा है। इस पर दर्जी ने सफाई दी कि वह बना देता होगा मेरे बच्चे का साइज ज़रा बड़ा है। यानी कि दर्जी भी कपड़े में डंडी मारे बिना काम नहीं करते। मुझे आज तक उस कहानी का राज़ समझ नहीं आया कि दर्जी ने हाथी की सूंड में सूई क्यों चुभोई थी?
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एक बर की बात है अक नत्थू दर्जी तै शिकायत करते होये बोल्या— राम जी नैं तीन दिन मैं पूरी दुनिया बणा दी थी अर तेरे ताहीं तीन हफते मैं कोट नीं बण सक्या? दर्जी नत्थू तै समझाते होये बोल्या— इसी मारी कह रह्या हूं अक जल्दी का काम ठीक नीं होता, देख लिया दुनिया का के हाल हो रह्या है।