चूहे के बिल को जैसे बंद किया जाता है, ट्रंप प्रशासन ने चीनियों के विरुद्ध लगभग उसी अंदाज़ में नाकेबंदी की शुरुआत की है। विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने अब दो टूक कह दिया है कि चीन, अमेरिका के हर हिस्से में फैले कन्फ्यूशियस इंस्टीच्यूट को साल समाप्त होने से पहले समेट ले। अप्रैल, 2017 तक अमेरिका में 103 कन्फ्यूशियस इंस्टीच्यूट की शाखाएं देशभर में फैली थीं। नेशनल एसोसिएशन ऑफ स्कॉलर्स (एनएएस) ने जानकारी दी है कि 26 अगस्त 2020 तक 67 कन्फ्यूशियस इंस्टीच्यूट, चीनी भाषा और संस्कृति की दीक्षा अमेरिका में दे रहे हैं। ‘एनएएस’ के अनुसार, अमेरिकन कालेज और यूनिवर्सिटी में 58 कन्फ्यूशियस इंस्टीच्यूट हैं, बाकी प्राइवेट संस्थाओं में चीनी अनुदान से यह सब कुछ चल रहा है।
इससे अलग अमेरिका, चीन की उस कमज़ोर नस को दबा रहा है, जो तिब्बत और ताइवान की शक्ल में उसकी वन चाइना पॉलिसी का डंका पीटने का माध्यम बने हुए थे। चीन इससे बौखला चुका है। 9 अगस्त, 2020 को अमेरिकी स्वास्थ्य मंत्री अलेक्स अज़र तीन दिन के वास्ते ताइवान गये थे। यह 1979 के बाद पहली बार हाई लेवल विजिट थी। 1979 में ही अमेरिका ने ‘ताइवान रिलेशन एक्ट’ पास किया था।
अमेरिका ने ताइवान के साथ-साथ तिब्बत का मोर्चा भी खोल दिया है। ‘तिब्बत एक स्वतंत्र देश है’, इस वास्ते संसद के निचले सदन ‘हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव’ में रिपब्लिकन सांसद स्कॉट पेरी ने 18 जून, 2020 को एक बिल पेश किया था। इस विधेयक के पास होने पर तिब्बत को स्वायत्त देश घोषित करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति अधिकृत हो जाएंगे। पेन्सलवेनिया से रिपब्लिकन सांसद स्कॉट पेरी उससे पूर्व हांगकांग को भी चीन से मुक्त एक स्वतंत्र देश घोषित किये जाने संबंघी प्राइवेट मेंबर बिल सदन में पेश कर चुके हैं। ‘हाउस कमेटी ऑन फॉरेन अफेयर्स’ इन दोनों बिल की समीक्षा कर रही है। इसकी रिपोर्ट का इंतज़ार सबको है। प्रेसिडेंट ट्रंप प्रयास में हैं कि हाउस कमेटी की रिपोर्ट जल्द आये ताकि रिपब्लिकन पार्टी चुनाव में वोटरों को यह बता सके कि हम चीन को रगड़ रहे हैं।
ताइवान, अमेरिका पर आयद पोर्क-बीफ प्रतिबंध को वापस ले रहा है। पोर्क-बीफ मीट को तैयार करने में मवेशियों को रेक्टोपैमिन दिया जाना एक बड़ा मुद्दा रहा है। यह मानव शरीर को नुकसान पहुंचाता है, इस वास्ते अमेरिकी बीफ व पोर्क का आयात ताइवान ने रोक रखा था। बल्कि 2016 के चुनाव में वर्तमान राष्ट्रपति त्साई इंगवेन ने मुद्दा बनाया था। अब इसमें ढील देकर अमेरिका के वास्ते दरवाज़े खोल दिये गये। उन्होंने कहा कि अमेरिका, ताइवान का महत्वपूर्ण ट्रेडिंग पार्टनर है, इसलिए हमें कई नियम शिथिल करने होंगे।
यों, ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंगवेन के इस फैसले से घरेलू राजनीति अशांत सी हो रही है। उन्होंने अपनी सफाई में कहा भी है कि ट्रंप चुनाव में अपनी छवि भुनाएंगे, उससे हमारा कोई लेना-देना नहीं। 2019 में ताइवान-अमेरिका का व्यापार 85.5 अरब डॉलर का रहा है। ताइवान में सेमीकंडक्टर बिजनेस कंपनी ‘टीएसएम’ इस बात से उत्साहित है कि आरिजोना में 12 अरब डॉलर का चिप मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने में अमेरिका सहयोग कर रहा है। अमेरिका ताइवान से हेल्थ केयर सेक्टर, एनर्जी और मिल्ट्री हार्डवेयर के क्षेत्र में बिजनेस बढ़ाने के वास्ते जिस तरह के समझौते कर रहा है, उससे चीन की नींद उड़-सी गई है।
कन्फ्यूशियस इंस्टीच्यूट, चीनी शिक्षा मंत्रालय का अपरोक्ष अंग है, जिसे बाहरी दुनिया को दिखाने के वास्ते एनजीओ का रूप दिया गया है। इसका संचालन हानपान (चाइनीज़ लैंग्वेज कौंसिल इंटरनेशनल) करता है। अप्रैल, 2007 में चीनी पोलित ब्यूरो के सदस्य ली छांगचुन जब ‘हानपान’ आये, ऑन द रिकार्ड स्वीकार किया था कि कन्फ्यूशियस इंस्टीच्यूट का उद्देश्य चीन के सांस्कृतिक वैभव को विस्तार देने के साथ प्रोपेगंडा की रणनीति को भी आगे बढ़ाना है।
कन्फ्यूशियस इंस्टीच्यूट की नीयत और तौर-तरीके को अमेरिकियों ने बड़ी तेज़ी से भांप लिया था। 25 सितंबर, 2014 को फंड की गड़बड़ी और गेस्ट टीचर्स की नियुक्तियों में कई स्कैंडलों के पर्दाफाश होने के बाद शिकागो यूनिवर्सिटी ने कन्फ्यूशियस इंस्टीच्यूट की पीठ को बंद कर दिया था। उन दिनों कन्फ्यूशियस इंस्टीच्यूट का विस्तार अमेरिका के सौ विश्वविद्यालयों तक हो चुका था। इसके विरुद्ध बाकायदा अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स ने प्रस्ताव पास किया था। दिसंबर, 2013 में ऐसी ही गड़बड़ियों के कारण कनाडियन एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी टीचर्स ने कन्फ्यूशियस इंस्टीच्यूट के विरुद्ध प्रस्ताव पारित कर इसके कार्यक्रमों को रोका था। यूरोप, उत्तर अमेरिका, नेपाल तक जहां भी चीनी भाषा के विस्तार के वास्ते ये गये, नियमों की अवहेलना की।
अमेरिका की सीनेट कमेटी की एक शाखा ने 2019 में कन्फ्यूशियस इंस्टीच्यूट की कारगुज़ारियों पर एक रिपोर्ट पेश की है, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि यह संस्था भाषा ज्ञान की आड़ में जासूसी भी कराती है। चीन ने इस आरोप को ख़ारिज़ किया है। मगर, इसी तरह की शंका पुर्तगाल और ऑस्ट्रेलिया ने भी माज़ी में व्यक्त की थी। ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथवेल्स कन्फ्यूशियस इंस्टीच्यूट में ऐसी गतिविधियां सरकार के संज्ञान में आईं तो इस पर जांच बैठा दी गई। इस समय दुनियाभर में 568 कन्फ्यूशियस इंस्टीच्यूट के क्लास रूम प्राइमरी और हाई स्कूलों में चलाये जा रहे हैं। इसमें विश्वविद्यालयों में चल रहे एडवांस कोर्स के कार्यक्रम शामिल नहीं हैं। अब सवाल यह है कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, पुर्तगाल जैसे देशों को शक है कि मंदारिन सिखाने के नाम पर जासूसी का खेल हुआ है, तो भारत में क्या ये भजन गा रहे हैं?
भारत सरकार देश भर में संचालित कन्फ्यूशियस इंस्टीच्यूट की समीक्षा भर कर रही है। इनमें प्रमुख हैं मुंबई यूनिवर्सिटी, वेल्लोर इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी जालंधर, ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी सोनीपत, स्कूल ऑफ चाइनीज़ लैंग्वेज कोलकाता, भर्तिहार यूनिवर्सिटी कोयंबटूर, और केआर मंगलम यूनिवर्सिटी गुरुग्राम। सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत, अमेरिका की तरह चीन की नींद क्यों नहीं उड़ा रहा है? जून में वीचैट, टिकटाक समेत 59 चाइनीज़ ऐप भारत ने बंद किये थे। अब पबजी और 117 चीनी ऐप पर प्रतिबंध लगाकर हमने पेइचिंग को संदेश भर दिया है कि हम सुरक्षित नहीं तो तुम्हारे कारोबारी हित भी सुरक्षित नहीं हैं। मगर, सीधे टेंटुए पर हाथ रखने का काम जिस तरह से अमेरिका करने लगा है, वैसा करने से हम शरमा क्यों रहे हैं? भारत अपने किसी मंत्री के साथ बिजनेस डेलीगेशन ताइपे क्यों नहीं भेजता? हम भारतीय संसद में ताइवान-तिब्बत की स्वायत्तता को लेकर विधेयक क्यों नहीं पास कर सकते, जैसा कि अमेरिका ने किया है। वन चाइना पालिसी को समर्थन देने की चूक जो हमने पहले की है, उसे सुधारा भी तो जा सकता है?
लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नई दिल्ली संपादक हैं।