Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

वे आकर चले गए फिर आने के लिए

व्यंग्य/तिरछी नज़र
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

इधर बड़ा धूम-धड़ाका रहा जी। एक इस्तीफे तक पर खूब धूम मची रही। देखिए क्या जमाना आ गया है। इसलिए अब उसका तो क्या जिक्र करना, पर यह नहीं हो सकता कि कांवड़ियों का जिक्र भी न हो, जिन्होंने बूम बॉक्सों से इतना धूम-धड़ाका मचाए रखा कि रास्ते तक खाली हो गए। वैसे तो जी यह नारा कोई कभी भी लगा देता है कि सिंहासन खाली करो कि अब जनता आती है। जनता कहां आती है। कोई धंधा नहीं है क्या? भैया अगर नारा लगाने भर से सिंहासन खाली होते तो जेपी ही करवा लेते जब उन्होंने पहली बार यह नारा लगाया था। लेकिन सिंहासन खाली नहीं हुआ, बल्कि इमर्जेंसी लगाकर इंदिरा जी और ज्यादा जमकर उस पर बैठ गयी।

तो जी नारे लगाने भर से सिंहासन कोई खाली नहीं करता। बल्कि इसका तोड़ भी ऐसा निकाला गया कि सिंहासन पर बैठने वालों के खैरख्वाह कह देते हैं कि वैकेंसी ही नहीं है भैया। समस्या यही है कि वैकेंसियां कहीं नहीं हैं और बेरोजगारी हर तरफ है। लेकिन इधर यह गुहार चारों तरफ अवश्य ही मची रही कि रास्ते खाली करो भैया, कांवड़िए आ रहे हैं।

Advertisement

और रास्ते सचमुच ही खाली होते भी चले गए। गुहार मची रही कि ढाबे-दुकानें बंद करो जी, कांवड़िए आ रहे हैं। दुकानें-बाजार सब बंद करो जी, कांवड़िए आ रहे हैं। स्कूल बंद करो जी, कांवड़िए आ रहे हैं। अपनी गाड़ी लेकर मत निकलना जी, कांवड़िए आ रहे हैं। अपनी सोसायटियों के गेट बंद कर लो जी, कांवड़िए आ रहे हैं। वे सिर्फ कांवड़ लेकर नहीं आ रहे हैं। वे खुद भोले बाबा को कंधे पर उठाए चले आ रहे हैं, शिवलिंग को कंधे पर उठाए आ रहे हैं। उनके पास हॉकी हैं, उनके पास लाठी-डंडे सब हैं। उनसे बचकर चलना, उनसे बचकर रहना।

वो फैज साहब ने कहा है न कि कोई न सर उठाके चले, जिस्मोजां बचाके चले। कुछ-कुछ वैसा ही सीन बना रहा जी। उनका खौफ ऐसा रहा कि मध्यकाल की आक्रमणकारी सेनाओं जैसा। उनका खौफ पिंडारियों जैसा रहा। हालांकि वे आक्रमणकारी सेना नहीं थे, वह तो भोले बाबा की फौज होते हैं। उन्हें जो कुछ दिन की मौज मिली, वे उस मौज में मगन रहे। मौजां ही मौजां। भोले बाबा की फौजां ही फौजां। उन पर फूल बरसाए जा रहे थे। शिविरों में उनकी आवभगत हो रही थी। काजू-बादाम खाने को मिल रहे थे। चरण पखारे जा रहे थे। पांव दबाए जा रहे थे। फुल सेवा हो रही थी। उन्हें नाम भोले मिला, पर काम शोले वाला ही रहा। वे बूम बॉक्सों पर गाने बजाते, डंडे बजाते, बम-बम करते आए और चले गए। अगले सावन फिर आएंगे।

Advertisement
×