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वे ऑफबीट और एक मैं ढीठ

व्यंग्य/तिरछी नज़र
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अशोक गौतम

मैं साठ वर्षीय ऑफलाइनी जीव हूं। मुझे बात-बात में लाइन में लगने का रोग है। आज तक सबकी गालियां सुनने के बाद भी मैं ऑफलाइनी जीव से ऑनलाइनी जीव न हो सका। मेरे दुराग्रही दोस्तों ने अब मेरे बारे में राय बना ली है कि मुझमें अब कुछ नया करने, सीखने का पोटेंशियल नहीं बचा है।

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मित्रो! मैं उस दौर का जीव हूं जिसे पैदा होने के तुरंत बाद और कुछ सिखाया जाता था या नहीं, पर अनुशासन के साथ लाइन में लगना जरूर सिखाया गया था। और मजे की बात, मैंने अपनी उम्र वालों के होश संभालने से पहले लाइन में लगना सीख लिया था।

जब मैं स्कूल में था तो मास्टर जी के डंडे खाने के लिए लाइन में लगता था। जब हमारे पेपर हुआ करते थे तो मास्टर साहब हम सबको लाइन में लगा हमें पेपर में बैठाने से पहले हमारी जेबों की तलाशी लेते थे कि कोई पर्ची जेब में छुप परीक्षा भवन में न चली जाए। वे दिन आज की तरह ऑनलाइन नकल के दिन नहीं थे जनाब! कि आप परीक्षा भवन में और नकल करवाने वाला कहीं दूर। वे दिन आज के दिनों की तरह नकल कर पास होने के दिन नहीं थे, मेहनत कर पास होने के दिन थे।

मेरे बचे दोस्त समझाते समझाते मर गए मुझे कि गधे! आखिर समझता क्यों नहीं? तेरी कीमत न सही तो न सही, पर समय की कीमत तो समझ! तू कीमती नहीं तो समय तो कीमती है। ऐसे कीमती समय में आज का समय ऑफलाइन का नहीं, ऑनलाइन का है। आज प्यार, मनुहार, आचार, व्यवहार, खान-पान, ऐशो-आराम सब ऑनलाइन होते हैं। गया अब वो जमाना जब किसी सुनसान जगह में प्रेमी प्रेमी का इंतजार करता थक जाया करता था। अब तो प्रेमी को प्रेमी का ऑनलाइन इंतजार होता है। अब तो लैला-मजनूं भी ऑनलाइन ही बतियाते हैं और ऑनलाइन ही बतियाते-बतियाते जब थक जाते हैं तो ऑनलाइन ही सो जाते हैं। ऐसे में आज की तारीख में जो ऑनलाइन नहीं, वह गंवार है। उसे न तो देश से प्यार है, न अपने से प्यार है। ये समय चैन की बंसी बजाते दाल-रोटी खाने का नहीं, असीमित सिक्स जी डाटा मजे से पचाने का है।

पर अब अपने इन दोस्तों को कैसे समझाऊं कि जो मजा ऑफलाइन जीने में है वो ऑनलाइन जीने में कहां! इस बहाने बाजार जा ताजे बनते समोसों की खुशबू आज तक सूंघ आता हूं। बिजली-पानी का बिल ऑफलाइन भरने के बहाने बचे ऑफलाइनियों की लाइन में जरा ऊंघ आता हूं। इस बहाने कुछ नए चेहरे दिख जाते हैं। टांगें भी हिल जाती हैं। अब रही बात समय की कीमत की तो मित्रो! कौन-सा मुझे देश चलाना है। इस उम्र में खुद ही चलता रहूं तो लगे देश चल रहा है।

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