Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

अवैध भारतीय प्रवासियों से जुड़े यक्ष प्रश्न

वर्तमान में शरणार्थी संकट और अवैध प्रवासन एक वैश्विक चुनौती बन चुका है। एक ओर अमेरिका में शरणार्थियों के प्रति कठोर रवैया अपनाया जा रहा है, वहीं भारतीय विदेश मंत्रालय भी इस मुद्दे पर स्पष्ट नीति नहीं दिखा पा रहा...
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

वर्तमान में शरणार्थी संकट और अवैध प्रवासन एक वैश्विक चुनौती बन चुका है। एक ओर अमेरिका में शरणार्थियों के प्रति कठोर रवैया अपनाया जा रहा है, वहीं भारतीय विदेश मंत्रालय भी इस मुद्दे पर स्पष्ट नीति नहीं दिखा पा रहा है। जो अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन और प्रवासी भारतीयों की कठिनाइयों पर गंभीर सवाल हैं।

पुष्परंजन

Advertisement

आगामी 12 और 13 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका का दौरा करेंगे। उससे पहले वे 11 फरवरी को फ्रांस जाएंगे। यह भी मोदी डिप्लोमेसी के लिए परीक्षा की घड़ी थी, कि अमेरिकी सेना का विमान उनकी यात्रा से पहले अवैध घोषित 205 नागरिकों को लेकर अमृतसर उतरा। हथकड़ी लगे 205 अवैध प्रवासी, इनमें 25 महिलाएं, 12 बच्चे। और सेना के उस विमान में केवल एक टॉयलेट। सोचिये, कितना अमानवीय है? मोदी सरकार फिर भी, ‘मैं चुप रहूंगी’ की मुद्रा में। अवैध भारतीय प्रवासी पहले भी गल्फ और यूरोप से डिपोर्ट किये गए हैं, मगर यह तरीक़ा कितना सही था, जेनेवा कन्वेंशन भी भूल गए? और क्या भारत अपने यहां रहे शरणार्थियों के साथ ट्रम्प मॉडल अपनाये? क्या उन्हें भी सेना के विमानों द्वारा ढुलवाकर संबंधित देशों में भेजना शुरू करे?

दुनियाभर में शरणार्थियों, विस्थापित लोगों की स्थिति 2024 में, गुज़रे सालों की अपेक्षा सबसे बदतर रही है। ‘यूएन हाईकमिश्नर फॉर रिफ्यूजी’ कार्यालय के उच्चायुक्त फिलिपो ग्रांडी ने बताया था, कि पिछले वर्ष युद्ध, हिंसा, और उत्पीड़न के कारण 114 मिलियन लोग दुनियाभर में विस्थापित हुए। अमेरिका में उन दो लाख अफ़ग़ानों की जान भी सांसत में है, जिन्हें जो बाइडेन प्रशासन ने बसने की अनुमति दी थी। ट्रम्प द्वारा शरणार्थी प्रवेश कार्यक्रम को निलंबित करने के बाद, अमेरिका में पुनर्वास की प्रतीक्षा कर रहे सीरिया-अफ़ग़ानिस्तान समेत कई मुल्कों के नागरिकों का भाग्य अधर में लटक गया है। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी, ‘यूएनएचसीआर’ का अनुमान था, कि दुनिया भर में 30 लाख शरणार्थियों को 2025 में पुनर्वास की आवश्यकता होगी। लेकिन, ट्रम्प के इस क़दम से पुनर्वास पर एक बड़ा सवाल खड़ा हो चुका है। अमेरिका, यदि ‘जेनेवा कन्वेंशन प्रोटोकॉल-टू’ पर हस्ताक्षर किये होता, ट्रम्प या उनके पूर्ववर्ती जो बाइडेन इस तरह की ज़बरदस्ती नहीं कर पाते। गंभीर नागरिक संघर्षों में शामिल व्यक्तियों को मानवाधिकार सुरक्षा प्रदान करता है। सामूहिक दंड, यातना, व्यक्तिगत गरिमा पर आघात, अपमानजनक व्यवहार, बलात्कार, वेश्यावृत्ति के लिए बाध्य करने और किसी भी प्रकार के अभद्र हमले को प्रोटोकॉल-टू की धाराओं के ज़रिये प्रतिबंधित किया गया है।

ट्रंप, इस समय ‘अमेरिका केवल अमेरिकन्स का है’, का राष्ट्रवादी नारा लगा रहे हैं। मगर, यह भूल जाते हैं कि इस देश का निर्माण, बाहरी आबादी की बसावट से हुआ है। अमेरिका को किसने और कब उपनिवेश बनाया, इस सवाल पर लंबे समय से गरमागरम बहस चल रही है। माना जाता है, कि मूल अमेरिकी पूर्वोत्तर एशिया से आए थे। बाजा (कैलिफ़ोर्निया) में हाल के शोध से पता चलता है, कि महाद्वीप की प्रारंभिक बसावट दक्षिण-पूर्व एशियाई लोगों द्वारा संचालित थी, जिन्होंने पहले ऑस्ट्रेलिया पर कब्जा कर लिया था, और फिर लगभग 13,500 साल पहले अमेरिका में फैल गए। यह पूर्वोत्तर एशिया से मंगोलॉयड लोगों के आने से पहले की बात है।

लेकिन, इस समय अमेरिका, ‘खाता न बही, जो ट्रंप कहे वही सही’ के मार्ग पर अग्रसर है। ट्रंप दरअसल, अपने पूर्ववर्ती जो बाइडेन से बड़ी लकीर खींचना चाहते हैं। जो बाइडेन प्रशासन ने पिछले वित्तीय वर्ष में 271,484 अवैध आप्रवासियों को निर्वासित किया था, जो 2014 के बाद से निर्वासन का उच्चतम रिकार्ड रहा है। लेकिन ट्रंप भी चेहरा देखकर, अवैध घोषित शरणार्थियों को सेना के विमान से ढो कर भेज रहे हैं। जो बाइडेन ने जून, अक्तूबर, और नवंबर, 2024 में तीन चार्टर उड़ानों के ज़रिये 350 चीनी नागरिकों को उनके देश वापस भेज दिया था। चीन के 37,908 मामले हैं, जबकि भारत में 17,940 मामले हैं। लेकिन, सेना का विमान? चीन के सन्दर्भ में व्हाइट हॉउस ऐसा ‘एडवेंचर’ नहीं करेगा।

पर सवाल है, क्या भारतीय विदेश मंत्रालय और वाशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास के अधिकारी ऐसी कार्रवाई से अनभिज्ञ थे? बहुत पुरानी बात नहीं, जब भारतीय संसद में अवैध प्रवासी भारतीय नागरिकों का सवाल उठा था। कांग्रेस नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने विदेश मंत्री से चार सवालों के उत्तर मांगे थे—(क) 2019 से अब तक अमेरिका, कनाडा, यूरोपीय संघ, खाड़ी देशों में अवैध रूप से प्रवेश करने/रहने के दौरान पकड़े गए/निर्वासित किए गए भारतीयों का राज्यवार ब्यौरा क्या है? (ख) बिना वीजा अवैध रूप से भारतीय दूसरे देशों में किन कारणों से जा रहे हैं? (ग) क्या पिछले कुछ वर्षों से अमेरिका, कनाडा, यूरोपीय संघ, दक्षिण पूर्वी एशियाई और खाड़ी देशों में भारतीय कामगारों के आव्रजन में बड़ी गिरावट आई है? (घ) इन देशों में भारतीय कामगारों के प्रवास में इतनी बड़ी गिरावट के क्या कारण हैं?

8 फरवरी, 2024 को विदेश राज्यमंत्री वी. मुरलीधरन ने जवाब में कहा, कि विदेशी नागरिकों के निर्वासन के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया हर देश में अलग-अलग होती है। कुछ देश निर्वासित व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं करते हैं, और निर्वासन तक उन्हें हिरासत या निर्वासन केंद्रों में रखते हैं। ऐसे में, हमारे मिशन, दूतावासों के पास विदेशों में अवैध रूप से रहने या काम करने वाले भारतीयों की संख्या के बारे में कोई विश्वसनीय डेटा नहीं है। वी. मुरलीधरन ने यह भी बताया, विदेश मंत्रालय ने संभावित प्रवासियों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए 2018 में ‘सुरक्षित रहें - प्रशिक्षित रहें’ अभियान शुरू किया था। भारत ने यू.के., फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, इटली जैसे देशों के साथ छह प्रवासन समझौतों (एमएमपीए) पर हस्ताक्षर किए हैं, साथ ही इज़राइल, डेनमार्क, पुर्तगाल, जापान, मॉरीशस, जॉर्डन और जी.सी.सी. देशों सहित बारह देशों के साथ श्रम गतिशीलता समझौतों (एल.एम.ए.) पर हस्ताक्षर किए हैं। लेकिन, इससे क्या इससे कबूतरबाज़ी रुक गई? वी. मुरलीधरन ने संसद को बताया था कि 31 जनवरी, 2024 तक 2959 अवैध एजेंट सरकार के संज्ञान में हैं। इन पर किस तरह की क़ानूनी कार्रवाई हुई, विदेश मंत्रालय ने इसकी जानकारी नहीं दी।

ठीक से देखा जाये, तो इस विषय पर भारतीय विदेश राज्य मंत्री मुरलीधरन ने हाथ खड़े कर दिए थे। दरअसल, यह एक ग्लोबल रैकेट है, जिसका सच जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए, कि यूरोपीय-अमेरिकी नेता और नौकरशाह तक मानव तस्करी को सरपरस्ती देते रहे हैं। इस नेक्सस को बड़े से बड़ा शासन प्रमुख तोड़ नहीं पाया है। पीईयू रिसर्च सेंटर बताता है, ‘2022 तक, सात लाख 25000 भारतीय अमेरिका में रह रहे थे, जो उन्हें मैक्सिकन और होंडुरास के बाद तीसरा सबसे बड़ा समूह बनाता है।’ इसके विपरीत, माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट (एमपीआई) ने यह आंकड़ा 375,000 बताया है, जो भारत को पांचवें स्थान पर रखता है। लेकिन, यह केवल अमेरिका का मामला नहीं है। वैध-अवैध रूप से गए भारतीय प्रवासी, दुनियाभर में आबोदाना और आशियाना के लिए अपना ठिकाना बना चुके हैं, उनका सवाल भारतीय अस्मिता का भी सवाल है!

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

Advertisement
×