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देश में समतामूलक हो विकास का तंत्र

समृद्धि की अर्थव्यवस्था
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सुरेश सेठ

पिछले दशक में भारत ने आर्थिक क्षेत्र में अभूतपूर्व तरक्की की है। दस वर्ष पहले भारत विश्व की दसवीं आर्थिक शक्ति था, आज पांचवीं हो गया। यह भी कहा जा रहा है कि दुनिया की चौथी औद्योगिक क्रांति का मूलाधार भारत होगा। इस विकास के साथ-साथ देश महामंदी से बच निकला है। उसकी आर्थिक विकास दर महाबली देशों के मुकाबले कहीं अधिक हो गई और हमारे विस्तृत बाजार की शक्ति देश में मांग की शक्ति बनकर न केवल घरेलू निवेश बल्कि विदेशी निवेश को भी अपनी ओर आकर्षित करने लगी। भारत दुनिया में चीन प्लस का विकल्प बनकर उभर रहा है। आज जहां देश में औद्योगीकरण और आधुनिकीकरण के बदलते तेवर नजर आ रहे हैं, वहां अंतरिक्ष क्षेत्र में भी उसकी और इसरो की उपलब्धियां इतनी स्पर्धायोग्य हैं कि वे केवल छोटे देशों ही नहीं, अमेरिका और रूस जैसे बड़े देशों के लिए भी एक और प्रकाशस्तम्भ बनकर उभर रहा है।

विश्व आर्थिक मंच और सेंटर फॉर फोर्थ इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन (सी4आईआर) में भारत के समावेशी विकास का संज्ञान लेते हुए उसके बदलते चेहरे की पहचान करने के लिए कहा है। मंच का कहना है कि इसका आधार बना है पिछले दो वर्ष से भारत की बजट नीति में परिवर्तन और प्रत्यक्ष सार्वजनिक निवेश का बढ़ना। भारत की बड़ी उपलब्धि है कि हमने अंतरिक्ष क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति की है और उसे एक व्यावसायिक तेवर दे दिया है। भारत का सार्वजनिक ही नहीं बल्कि निजी क्षेत्र भी कमाई के नये क्षितिज खुलते हुए पा रहा है। छोटे देशों का उपग्रह प्रक्षेपण सस्ती दरों पर कभी भी न हो पाता, अगर भारत इस दिशा में कदम न बढ़ाता। अभी जो इसरो के नये प्रयोग हुए हैं, उसमें यात्रियों को अंतरिक्ष तक ले जाना, पर्यटन करवाना और सुरक्षा के साथ वापस ले आना भी शामिल है। अब अगला लक्ष्य पर्यटकों को चांद तक ले जाना और उन्हें वापस लाना है। दूसरी बात, ये प्रयोग किफायती दर पर हो रहे हैं। ठीक समय पर अपने अंतरिक्ष और सौर ग्रह अभियानों में निजी क्षेत्र के लिए द्वार खोल देना भी भारत की दूरदर्शी नीति का परिचायक है।

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दरअसल, इस समय भारत की सबसे बड़ी समस्या अंतर्राष्ट्रीय विनिमय क्षेत्र में अपनी मुद्रा के मूल्य को बढ़ाना और विदेशी मुद्रा की कमाई है। इस दिशा में हमने अपने प्रयास में धरती का विकास ही नहीं, अंतरिक्ष का व्यावसायीकरण भी शामिल कर लिया। इसके लिए नये अंतरिम बजट के बाद नई सरकार के जुलाई मास में आने वाले नये बजट में भी एक साझा बुनियादी ढांचा बनाने का संकल्प लिया गया है। देश में डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा बनाया जा रहा है। इससे धरती और आकाश में उद्यमिता के मामले में तेजी आएगी।

नई आर्थिक नीति को निर्धारित करने के लिए जो रोडमैप बनाया जा रहा है, वह समावेशी आर्थिक उन्नति का रोडमैप है। इसमें देश को आयात आधारित अर्थव्यवस्था से बदलकर निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था बनाने का प्रयास किया जा रहा है। यहां यह बता दिया जाए कि यह प्रयास तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक हम पक्के कदमों से आगे नहीं बढ़ते। अगर आलम यह हो कि ऊर्जा के लिए कच्चे तेल का 85 प्रतिशत आयात करना पड़े और देश को अगर कृत्रिम मेधा, चिप, सेमीकंडक्टर युग और रोबोटिक्स में आगे बढ़ाना है तो उसके लिए विद्युत के भारी उत्पादन की आवश्यकता मुखर हो तो ऐसे माहौल में केवल अभूतपूर्व प्रगति के संकल्पों के ज्ञान से ही काम नहीं चलेगा। ऊर्जा का वैकल्पिक उत्पादन देशभर में सोलर ऊर्जा के साथ-साथ परम्परागत पेट्रोलियम ऊर्जा के नये कुओं की तलाश में भी आगे बढ़ना होगा। आयल एंड नैचुरल गैस कमिशन की इस दिशा में लगातार चुप्पी परेशान करती है।

इसके साथ ही जहां तक देश के कृषि क्षेत्र का संबंध है, तो उसमें भी लघु और कुटीर उद्योगों का विकास ग्रामीण और कस्बाई अंचलों में करना पड़ेगा। आज भी भारत की 50 प्रतिशत आबादी वहां रहती है। सवाल यह भी कि देश की कुल राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का योगदान घटते हुए 17 प्रतिशत क्यों हो गया है? इस योगदान को तभी बढ़ाया जा सकता है जबकि लघु और कुटीर उद्योगों में बढ़ता निवेश नौजवानों को न केवल उपयोगी रोजगार दे बल्कि फसलों से तैयार उत्पादों को नया रूप देकर बाजार में सीधा लाये। बीच के मध्यजनों का हस्तक्षेप बंद करके उत्पादक और उपभोक्ता में सीधा संबंध पैदा करें।

आखिरी बात, नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि दुनिया के सबसे असमतावादी देशों में भारत भी शामिल हो गया है। गरीब और अमीर की खाई बढ़ गई है। वो पुराना सूत्र आज भी सही लगता है कि यह अमीरों की धरती है, यहां गरीबों की बहुतायत का अंत नहीं। इस स्थिति को बदलना होगा। नीतियों को वंचित सापेक्ष तेवर देना होगा, तभी हम कह सकेंगे कि भारत का चेहरा बदल रहा है और लगातार उजला होता जा रहा है।

लेखक साहित्यकार हैं।

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