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‘डिलीवरी इंडिया’ में डिलीवरी ब्वॉय की रफ्तार

तिरछी नज़र

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हर सिग्नल पर एक नया सुपर स्पीड हीरो तैयार बैठा है। जो ट्रैफिक से नहीं, टाइम स्लॉट से लड़ रहा है। घर तक दही तो पहुंच जाती है, पर धैर्य का पैकेट कहीं रास्ते में ही गिर जाता है।

आजकल सड़कों पर साइकिल चलाता दूधवाला, फल-सब्जी ढोता रेहड़ीवाला नदारद हैं। अगर कोई सबसे ज्यादा दिखता है तो वो न नेता, न ट्रैफिक पुलिस, न प्रेमी युगल बल्कि डिलीवरी ब्वॉय है! कभी गलियों में डाकिया आया करता, अब उसकी जगह भी खत्म। हर गली-मोहल्ले में हेलमेट, बैग और मोबाइल वाला एक सुपरहीरो घूमता नजर आता है। न उसकी कोई उम्र होती है, न दिशा। बस ऑर्डर उसका भगवान है और लोकेशन उसकी पूजा! कभी-कभी तो लगता है जैसे ये सब डिलीवरी ब्वॉय नहीं, समय के सिपाही हैं जो 10-15 मिनट में ब्रेड-बटर, चीनी-दूध, टमाटर-प्याज सब कुछ पहुंचा देंगे।

उनकी बाइक की आवाज सुनकर लगता है जैमेटो की उड़ान सेवा तो शुरू नहीं हो गई? इनकी गति देखकर लगता है कि भारत का भविष्य ‘डिजिटल इंडिया’ नहीं, ‘डिलीवर इंडिया’ बनने जा रहा है। सोचने वाली बात ये भी है ये डिलीवरी ब्वॉय ही क्यों हैं, डिलीवरी गर्ल्स क्यों नहीं? क्या शहर की सड़कें अब भी इतनी असुरक्षित हैं? या फिर हमारी सड़कों की रफ्तार सिर्फ मर्दानगी का प्रतीक रह गई है?

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गली-कूचों में हेलमेट वाले युवकों की ऐसी फौज दौड़ रही है, मानो किसी ने देश में डिलीवरी आपातकाल घोषित कर दिया हो। वो इतनी तेजी से आती है कि हम सोचते रह जाते हैं कि ये भाई कहीं हमारे घर में ही तो नहीं रहता? इनकी बाइक की आवाज अब ट्रैफिक से भी तेज पहचान बन चुकी है। सुनते ही लगता है कि किसी का ऑर्डर रास्ते में है।

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इन डिलीवरी ब्वॉयज़ ने हमारी जिंदगी आसान कर दी है। अब मेहमान आएं तो बाजार भागने की जरूरत नहीं, एक क्लिक में दही, प्याज, बिस्कुट सब दरवाजे पर। पत्नी की डांट से भी मुक्ति। पर क्या हमने सुविधा के बदले सड़क की सुरक्षा गिरवी रख दी है? हर सिग्नल पर एक नया सुपर स्पीड हीरो तैयार बैठा है। जो ट्रैफिक से नहीं, टाइम स्लॉट से लड़ रहा है। घर तक दही तो पहुंच जाती है, पर धैर्य का पैकेट कहीं रास्ते में ही गिर जाता है।

भूख हो या बुखार- इनका आर्डर मिलेगा तैयार। कभी-कभी लगता है कि भारत के पास मिसाइल मैन न होते तो ये डिलीवरी ब्वॉयज़ मिसाइलें भी छोड़ देते। लगता है कि अगर कोई बुजुर्ग भगवान से मोक्ष मांगे तो ऊपर से आवाज आ सकती है- डिलीवरी टाइम तीस मिनट।

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एक बर की बात है अक समान दिये पाच्छै नत्थू किरयाने आला पांच सौ के नोट ताहिं गौर तै देखण लाग्या। सुरजे कै छोह उठ ग्या अर बोल्या- लाला जी! कितणी भी आंख गड़ा ले, गान्धी की जगहां कैटरीना तो दीखण तै रही।

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