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बलिदान से ज्वाला बनी आज़ादी की चिंगारी

शहीदी दिवस उधम सिंह
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जीवन की तपिश ने क्रांतिकारी उधम सिंह को इतना सशक्त बनाया कि वे लंदन जाकर जलियांवाला कांड के दोषियों को सजा दे सके। उनका सपना देश को गुलामी सेे मुक्त करना, विवेकशील व सांप्रदायिक सद्भाव से पूर्ण समाज बनाना था।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शहीद उधम सिंह का बलिदान अविस्मरणीय है। यह क्रांतिकारी संघर्षमय जीवन व देश के प्रति सर्वस्व समर्पण की मिसाल हैं। उधम सिंह के बचपन का नाम शेर सिंह था। इनका जन्म 26 दिसंबर, 1899 को तत्कालीन पटियाला रियासत के सुनाम कस्बे में हुआ। उधम सिंह के पिताजी का नाम टहल सिंह कंबोज तथा माताजी का नाम नारायणी था। बालक शेर सिंह पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा जब इनकी माताजी का सन‍् 1901 तथा पिताजी का 1907 में देहांत हो गया। किशन सिंह रागी नामक शख्स ने दोनों भाइयों, शेर सिंह तथा साधू सिंह को सेंट्रल खालसा अनाथालय, अमृतसर में भर्ती कराया। उपलब्ध रिकॉर्ड अनुसार, अनाथालय में 28 अक्तूूबर, 1907 को दोनों भाइयों की दीक्षा के बाद शेर सिंह का नाम ऊधम सिंह तथा साधू सिंह का नाम मुक्ता सिंह रखा गया।

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उधम सिंह ने साल 1918 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और अनाथालय छोड़ दिया। वहीं भाई मुक्ता सिंह की मृत्यु के पश्चात इनका जीवन बिल्कुल एकाकी हो गया। उस समय प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था। साल 1918 में उधम सिंह ब्रिटिश सेना में सैनिक के रूप में भी भर्ती हुए और 1919 में भारत वापस लौट आए।

दरअसल, बाल्यकाल में माता-पिता व भाई मुक्ता सिंह की मृत्यु, अभावग्रस्त बाल्यकाल, एकाकी जीवन और अनाथालय के जीवन ने उधम सिंह को साहसी, संघर्षशील एवं जुझारू युवक बना दिया। वहीं भारतीय जनता की गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीय संसाधनों का दोहन, जनता पर अत्याचारों ने भी उनके चिंतन को प्रभावित किया। उनके राजनीतिक चिंतन पर गहरा प्रभाव जलियांवाला बाग नरसंहार (13 अप्रैल, 1919) का पड़ा। इसके अतिरिक्त उन पर क्रांतिकारियों एवं राष्ट्रीय नेताओं, बब्बर अकाली लहर, मार्क्सवाद, लेनिनवाद और विदेश यात्राओं व प्रवास, क्रांतिकारी संगठनों-हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन, गदर पार्टी आदि का प्रभाव पड़ा था। इसी क्रम में क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए भारतीयों को संगठित करने हेतु उधम सिंह ने लंदन में ‘आज़ाद पार्टी’ का भी गठन किया। शहीद भगत सिंह के व्यक्तित्व, विचारों और कुर्बानी ने उन्हें सर्वाधिक प्रभावित किया। जिन्हें वे ‘मित्र’ और ‘गुरु’ मानते थे।

प्रथम विश्व युद्ध में उत्पन्न हुई समस्याओं के कारण पंजाब सहित समस्त भारत में जनता में असंतोष चरम पर था। प्रांतीय सरकार ने इसे दबाने के लिए अराजक एवं क्रांतिकारी अपराध अधिनियम 1919 (रोलेट एक्ट) लागू किया। जिसकी भारतीयों ने ‘काले कानून’ कहकर आलोचना की। इन कानूनों का पंजाब में सर्वाधिक विरोध हुआ। बैसाखी यानी 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर स्थित जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण समारोह किया गया। जहां सभी समुदायों के लगभग 20,000 लोग एकत्रित थे। एक साजिश के तहत ब्रिगेडियर जनरल आर.ई.एच. डायर सैनिकों को लेकर शाम 5 बजे सभा स्थल पर आया व बिना किसी चेतावनी के गोली चलाने के आदेश दिए। सैनिक टुकड़ी ने करीब 1650 गोलियां के साथ फायरिंग की। लगभग 15 मिनट में अमृतसर के सिविल सर्जन डॉ. स्मिथ के अनुसार 1800 स्त्री, पुरुष और बच्चे मारे गए। जलियांवाला बाग हत्याकांड 20वीं शताब्दी में बर्बरता एवं अमानवीयता की मिसाल थी, जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक क्रांतिकारी मोड़ साबित हुआ।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उधम सिंह के हृदय में बदला लेने की ज्वाला निरंतर धधकती रही। उन्होंने जनरल डायर से बदला लेने का निर्णय लिया। परंतु डायर साल 1927 में बीमारी से ही मर गया। उधम सिंह ने अपनी पहचान छुपाने के लिए अनेक छद्म नाम रखे जिनमें उदे, शेर सिंह, उदय, फ्रेंक ब्राजील, उधम सिंह कम्बोज, मोहम्मद सिंह आजाद तथा राम मोहम्मद सिंह आजाद जो सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक हैं। उधम सिंह अपने नाम की भांति एड्रेस भी बदलते रहे। इंग्लैंड प्रवास के दौरान पते में बार-बार परिवर्तन ने पुलिस व गुप्तचर विभाग को भ्रमित किया और उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सका। आम धारणा यह है कि उधम सिंह अविवाहित थे। परंतु उन्होंने दो शादियां की थी। प्रथम विवाह किया अमेरिका प्रवास के दौरान 1923 में लूपे हर्नांडेज़ से। उधम सिंह ने स्वीकार किया था कि उनके दो बेटे थे। वहीं ब्रिटिश गुप्तचर विभाग की रिपोर्ट अनुसार, लंदन में नवंबर 1936 में उधम सिंह ने एक श्वेत महिला से शादी की।

बता दें कि उधम सिंह साल 1934 में लंदन चले गये। फिर 1940 में जलियांवाला हत्याकांड के 21 वर्ष के बाद उधम सिंह का इंतकाम पूरा होने का वक्त आया। जब लंदन में एक सभा के दौरान माइकल ओ’डायर (1913 से 1919 तक पंजाब के लेफ्टि. गवर्नर) ने अपने भाषण में भारतीयों के लिए अपमानजनक शब्द कहे। वहां मौजूद उधम सिंह ने माइकल ओ’डायर को गोलियां मारी। उसकी मौके पर मौत हो गई। 31 जुलाई 1940 को उधम सिंह को माइकल ओ ‘डायर की हत्या के जुर्म में पेंटनविले जेल में फांसी दी गई थी।

उधम सिंह ने पेंटोविले जेल से 15 जुलाई, 1940 को लिखा कि ‘हमारा सबका महान कर्तव्य देश की पुण्य भूमि से अंग्रेजों को बाहर निकालना है। तत्पश्चात हिंदू, मुस्लिम तथा सिख एकता स्थापित करना है... भुखमरी, अज्ञानता, अविद्या, बीमारियों को समूल नष्ट करना है...।’ अमर शहीद उधम सिंह की कुर्बानी के भारतीय सदैव ऋणी रहेंगे। क्रांतिकारी आकाशगंगा के प्रकाश पुंज शहीद उधम सिंह को श्रद्धांजलि!

लेखक करनाल स्थित दयाल सिंह कॉलेज के प्राचार्य रहे हैं।

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