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हर ताल को ज़िंदगी की लय बनाने का हुनर

तिरछी नजर

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जिंदगी जब तबला बजाए तो दिल को सितार बनाइए कि सुर बिगड़े नहीं, कहानी बन जाए। संगीत नहीं बदला जा सकता, पर अंदाज जरूर बदला जा सकता है, वहीं से आत्मा की रागिनी शुरू होती है।

जिंदगी एक बड़ा-सा म्यूजिक सिस्टम है। कभी बांसुरी-सी मीठी लगती है तो कभी ढोल की तरह सिर पर बजने लगती है। कभी लोरी-सी धीमी धुन सुनाई देती है और कभी वक्त ऐसा ड्रम बजाता है कि दिल की धड़कनें भी ताल भूल जाती हैं। हम चाहें तो कान बंद कर सकते हैं पर जो दिल खोलकर थिरकने का हुनर सीख लेता है, जीना उसी को आता है। क्योंकि धुन तो अक्सर दूसरों के हाथ में होती है। कभी बॉस उसे बजाता है, कभी बीवी या बाप या कोई किस्मत का डीजे और कभी-कभी रिश्तों का कोई पुराना गिटार भी बीच में सुर बिगाड़ देता है।

कभी मां की डांट भी एक बीट थी, पिता की चुप्पी एक बेस नोट। दोस्त की हंसी, बच्चे की आवाज या प्रेमिका की चुहलबाजियां, सब अपनी-अपनी ताल लिए थे। पर हमने उन सुरों को ‘शोर’ समझकर म्यूट कर दिया। जिंदगी हर किसी के लिए एक जैसी धुन नहीं बजाती। किसी के हिस्से में सितार की मीठी तान आती है तो किसी के हिस्से में ढोल की गड़गड़ाहट। पर असली हुनर उस इंसान का है जो हर ताल में अपनी लय बना लेता है। जो आंधी और आंसुओं में भी घुंघरू बांध ले और दर्द में भी मुस्कान की मुद्रा न खोए क्योंकि जिंदगी न तो हमारे सुर में बजती है, न हमारे समय पर रुकती है पर नाच तो हमें ही आना चाहिए।

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कुछ लोग शिकायत में उलझे रहते हैं, कुछ उसी पर कदम मिला लेते हैं और वही जीत जाते हैं। जिंदगी जब तबला बजाए तो दिल को सितार बनाइए कि सुर बिगड़े नहीं, कहानी बन जाए। संगीत नहीं बदला जा सकता, पर अंदाज जरूर बदला जा सकता है, वहीं से आत्मा की रागिनी शुरू होती है। लड़कियां चार इंच हील में भी डांस कर लेती हैं और लड़के स्लीपर में भी फिसल जाते हैं।

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जिंदगी की रिहर्सल नहीं होती जो मंच पर मुस्कुरा गया, वही असली कलाकार है। दारू पीकर नागिन डांस करने वाला यदि कुछ उगलने लगे तो लोग सोचते हैं कि जहर उगल रहा है। कुछ लोग पता ही नहीं चलने देते कि डांस कर रहे हैं या उनमें माता आ गई है। असली नर्तक कहता है- हमें तो अपनी ही मस्ती है, क्या फर्क पड़ता है कौन कितनी बड़ी हस्ती है।

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एक बर की बात है अक ब्याह म्हं रामप्यारी नत्थू धोरै जाकै बोल्ली- हां रै! डांस करैगा के? नत्थू उछलता होया सा बोल्या- खूब करूंगा। रामप्यारी बोल्ली- फेर खड़्या हो ले अर या कुर्सी मेरे ताहिं दे दे।

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