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फीकी पड़ी कैरेबियन क्रिकेट की चमक

वेद विलास उनियाल गैरी सोबर्स, रोहन कन्हाई, ग्रिफिथ जैसे क्रिकेटरों ने जिस कैरेबियन क्रिकेट को ऊंचाई पर पहुंचाया था, उस पर सत्तर के दशक में क्लाइव लायड और उनके साथियों ने और सितारे जड़े। स्टार क्रिकेटरों की जो कमी आज...
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वेद विलास उनियाल

गैरी सोबर्स, रोहन कन्हाई, ग्रिफिथ जैसे क्रिकेटरों ने जिस कैरेबियन क्रिकेट को ऊंचाई पर पहुंचाया था, उस पर सत्तर के दशक में क्लाइव लायड और उनके साथियों ने और सितारे जड़े। स्टार क्रिकेटरों की जो कमी आज कैरेबियन क्रिकेट झेल रहा है, कभी अपने स्टार खिलाड़ियों की बदौलत उसकी बादशाहत थी। लेकिन अब वेस्टइंडीज विश्व कप के लिए क्वालीफाई भी न कर सकी।

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वेस्टइंडीज का विश्व कप में खेलने का रास्ता किसी बड़ी टीम ने नहीं बल्कि स्काटलैंड जैसी टीम ने रोका है। उसे आईसीसी क्रिकेट विश्व कप के लिए क्वालीफाई करने के सुपर सिक्स मुकाबले में ज़िम्बाब्वे ने भी पराजित किया। इससे वेस्टइंडीज की कमजोर तैयारी और परफेक्शन की कमी का पता चलता है। टी-20 से भी वेस्टइंडीज बाहर हुई है। क्रिकेट विश्व कप में वेस्टइंडीज की कमी जरूर खलेगी। यह इसी तरह है कि जैसे फुटबाल का विश्व कप हो और उसमें ब्राजील नहीं खेल रहा हो। देखा जाए तो ज़िम्बाब्वेे से पराजित होने पर ही टीम का मनोबल टूट गया था। उसके पतन का अंदाजा वो क्रिकेट प्रेमी नहीं लगा सकते जिन्होंने सत्तर के दशक की वेस्टइंडीज की टीम को देखा हो।

बेशक सत्तर के दशक में आस्ट्रेलिया के मुकाबले में वेस्टइंडीज की टीम जिस तरह तेज गेंदबाज लिली थामसन के सामने पस्त हो गई थी, लेकिन उसने ही उसे फिर से खड़ा होने के लिए प्रेरित किया था। वेस्टइंडीज के कप्तान लायड इस बात को समझ गए थे कि सबसे बेहतर बनना है तो पथरीली पिचों पर तूफान बरपाने वाली पेस बेटरी उनके पास होनी चाहिए। यही समय था जब कैरेबियन क्रिकेट विश्व कप के लिए भी तैयारी कर रही थी। इसी समय उन्हें भारत में उस टीम से भी खेलना था जिसमें बेदी, चंद्रा प्रसन्ना और वेंकटराघवन जैसे महान स्पिनर थे। यह जरूर था कि उस समय कप्तान नवाब पटौदी के साथ-साथ भारतीय बल्लेबाजी सुनील गावस्कर, फारुख इंजीनियर, विश्वनाथ, गायकवाड़ जैसे बल्लेबाजों पर टिकी थी। यहां यह देखना दिलचस्प होगा कि पांच टेस्ट की शृंखला के लिए क्लाइव लाइड की यह टीम बहुत सुसज्जित थी। इसमें ग्रीनीज फ्रैड्रिक्स जैसे ओपनर थे। मध्यक्रम में एल्विन कालीचरण और क्लाइव जैसे बल्लेबाज थे। इस टीम के निचले क्रम में आने वाले जूलियन बनार्ड, जूलियन बेनर्बन व होल्डर भी अच्छे रन बना लेते थे। उसके पास गेंदबाज एंडी रोबट‍्र्स और होल्डर जूलियन जैसे तेज गेंदबाज थे। एक समय में ज्यादा विकेट लेने वाले बेहतरीन स्पिनर लांस गिब्स भी इसी टीम के हिस्सा थे।

बेहद आकर्षक टेस्ट शृंखला को वेस्टइंडीज ने 3-2 से जीता था। इसी शृंखला से कैरेबियन क्रिकेट की अपनी अलग पहचान बन गई थी। जिस आस्ट्रेलिया ने वेस्टइंडीज को टेस्ट शृंखला में 5-1 से रौंदा था, उसी वेस्टइंडीज ने पहले विश्व कप के फाइनल में आस्ट्रेलिया को 17 रन से पराजित किया था। विश्व क्रिकेट में हालांकि आस्ट्रेलिया अपने तेज गेंदबाज और आला बल्लेबाजों के कारण सशक्त टीम रही। लेकिन क्रिकेट में धाक कैरेबियन क्रिकेट ने ही बनाई। विश्व कप के बाद कैरेबियन क्रिकेट को रिचर्ड, हेंस, गार्नर, क्राफ्ट जैसे क्रिकेटर मिले। 1979 के दूसरे विश्व कप में कैरेबियन टीम अपने को साबित करने नहीं बल्कि विश्व विजेता के अंदाज में मैदान में उतरी थी। निश्चित रूप से दूसरे विश्व कप को रिचर्ड की पारियों के लिए भी य़ाद रखा जाएगा। कैरेबियन कि्रकेट टीम केरी पैकर्स के चलते जरूर एक बार डगमगाई थी। तब कालीचरण के नेतृत्व वाली उस टीम में पुरानी झलक नहीं थी।

वेस्टइंडीज की क्रिकेट का एक युग मैल्कम मार्शल का भी रहा है। उनकी तेज रफ्तार वाली गेंदों पर विकट गिरते नहीं चटकते थे। कैरेबियन क्रिकेट को आगे भी दिग्गज खिलाड़ी मिलते रहे। लेकिन जिन्हें नायक माना जाता है उनमें ब्रायन लारा और गेल जैसे खिलाड़ियों के करिश्मे हैं। कैरेबियन क्रिकेट का जिक्र एंब्रोस और कार्टनी वाल्श के बिना भी पूरा नहीं होता। यही कैरेबियन टीम टेस्ट मैच से लेकर वन डे में अपनी धाक जमाती आई।

लेकिन बदलते वक्त में इसने अपनी रफ्तार, धार, लय सब खोई। यह कहानी कुछ-कुछ भारतीय हॉकी की तरह है। भारतीय हॉकी फिर लय में आती दिख रही है। लेकिन कैरेबियन क्रिकेट संभलता नहीं दिख रहा है। जिस कैरेबियन टीम में एंडी रोबर्ट्स या माइकल होल्डिंग अकेले ही विपक्षी टीम पर छा जाते थे या चुइंगम चबाते-चबाते रिचर्ड पूरा खेला कर देता था, वह टीम अब स्काटलैंड से पस्त हो जाती है।

कैरेबियन टीम के डगमगाने की वजह माना जा रहा है कि अच्छे खिलाड़ी टी-20 को महत्व देने लगे हैं। टी-20 में पैसे की चमक ने कैरेबियन क्रिकेटरों को ललचा दिया। देश के लिए खेलना उनके लिए अहम नहीं रहा। कैरेबियन क्रिकेट में न तो अब संतुलन दिखता है न बेहतर रणनीति। वो दिन न जाने कहां चले गए जब कहा जाता था कि पोर्ट ऑफ स्पेन, जमैका, गुयाना, जार्जटाउन के बच्चे समुद्री इलाकों में समुद्री रेत में गेंद पटक-पटक कर बल्लेबाज के कंधे तक गेंद को लाने का अभ्यास करते थे।

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