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सूर्योदय के देश में ताकाइची का उदय

चर्चा में चेहरा

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प्रधानमंत्री के पद पर साने ताकाइची की ताजपोशी को भारत के लिए भी सुखद संकेत माना जा रहा है। एक तो वे उन पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की अनुयायी हैं, जिनकी प्रधानमंत्री मोदी के साथ भारतीय संबंधों को लेकर बेहतर कैमिस्ट्री रही है। सदियों से दोनों देशों के रिश्ते खास रहे हैं।

जापान के सत्ता शीर्ष पर पहली बार एक महिला का विराजमान होना, जापानी समाज में एक बड़े बदलाव का संकेत है। वहां स्त्री को यह सम्मान मिलने में कितना वक्त लगा, इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि साने ताकाइची जापान की 104वीं प्रधानमंत्री बनी हैं। वह भी ऐसे वक्त में जब देश राजनीतिक अस्थिरता के भंवर से गुजर रहा है। लगातार नेतृत्व परिवर्तन का घटनाक्रम जारी है। कुछ माह पूर्व सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी को आम चुनावों में गहरा झटका लगा था। पार्टी संसद में बहुमत के लिए गठबंधन की राजनीति की शरण में जाने को मजबूर हुई। बहरहाल, दक्षिणपंथी रुझान वाली साने ताकाइची जापान में आयरन लेडी के नाम से जानी जाती हैं। उनके चुनाव के बाद सड़कों में जनता का सकारात्मक प्रतिसाद उनकी लोकप्रियता का पैमाना कहा जा सकता है। वे दस बार संसद के लिए चुनी जा चुकी हैं। देश की आर्थिक सुरक्षा व लैंगिक समानता के लिए किए गए प्रयासों के लिए उन्हें सराहा जाता रहा है।

कुछ वर्ष पहले एक चुनावी जनसभा में एक हमले में मारे गए पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की शिष्या माना जाता है साने ताकाइची को। ऐसे में विश्वास किया जाता है कि वे प्रधानमंत्री बनने के बाद आबे की ‘एबेनोमिक्स’ की विकास नीति का ही अनुसरण करेंगी, जिसमें करों में कटौती तथा सार्वजनिक निवेश को प्राथमिकता देकर विकास को गति देने को प्राथमिकता दी जाती है। आबे के एजेंडे में भारत से बेहतर रिश्ते बनाने का संकल्प भी शामिल रहा है।

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दरअसल, साने ताकाइची को प्रधानमंत्री के रूप में कांटों का ताज ही मिला है। मौजूदा दौर में जापान आर्थिक चुनौतियों से गुजर रहा है। महंगाई से जनता परेशान है और जापान की मुद्रा येन के अवमूल्यन से संकट बढ़ा है। दरअसल, कोरोना संकट, वैश्विक अशांति और ट्रंप की दुनिया को हिला देने वाली आर्थिक नीतियों से जापान भी खासा प्रभावित हुआ है। चीन की आक्रामक वैश्विक नीतियों के चलते हिंद-प्रशांत क्षेत्र अमेरिका व अन्य महाशक्तियों का अखाड़ा बना हुआ है। वहीं उत्तर कोरिया की आक्रामक सामरिक नीतियों के चलते जापान में अपनी सैन्य ताकत को मजबूत करने की मांग तेज हो रही है। चारों तरफ से मिल रही सुरक्षा चुनौतियों के मद्देनजर साने ताकाइची भी जापान की सैन्य ताकत बढ़ाने के पक्ष में हैं। वे जापान की सुरक्षा के लिए रक्षा तैयारियां बढ़ाने और रक्षा खर्च को जापान के सकल घरेलू उत्पाद के दो प्रतिशत से अधिक करने की पक्षधर हैं। कई मायनों में यह कदम दशकों तक शांति पक्षधरता व सैन्य शक्ति न बढ़ाने की जापान की विदेश नीति में बड़े बदलाव का भी संकेत है।

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दरअसल, साने ताकाइची दक्षिणपंथी रुझान की नेता मानी जाती हैं। वे राष्ट्रीय सुरक्षा नीति से जुड़े मुद्दों से लेकर परिवार व महिलाओं के जीवन को लेकर रूढ़िवादी नजरिया रखती हैं। वे जापानी समाज में समलैंगिक विवाहों की विरोधी रही हैं। पूरी दुनिया के विकसित देशों में प्रवासियों को लेकर जिस तरह सख्त नीतियां अपनायी जा रही हैं, साने ताकाइची भी उन्हीं का अनुसरण करती हैं। वे चाहती हैं कि जापान की रीति-नीतियों का उल्लंघन करने वाले आप्रवासियों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए।

जापान में ‘आयरन लेडी’ कही जाने वाली साने ताकाइची की प्रधानमंत्री पद नियुक्ति को सत्ता व समाज में स्त्रियों की बढ़ती भूमिका के तौर पर देखा जा रहा है। दरअसल, जापान को भारी लिंग असमानता वाला देश कहा जाता रहा है। यहां संसदीय प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी महज पंद्रह फीसदी बताई जाती है। भले ही उनकी ताजपोशी राजनीतिक क्षरण के दौर से गुजर रही लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी की राजनीतिक मजबूरी रही हो, लेकिन उनकी इस पद पर तैनाती का महिलाओं के लिए एक बड़ा प्रतीकात्मक महत्व भी है। यह भी कि स्त्री अपनी योग्यता व क्षमता से अपना आकाश हासिल कर सकती हैं।

निस्संदेह, भू-राजनीतिक समीकरणों के चलते जापान आज एक महत्वपूर्ण स्थिति में है। अमेरिका चीन की साम्राज्यवादी नीतियों पर अंकुश लगाने के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जापान को अपना बड़ा साझीदार मानता है। भारत व आस्ट्रेलिया के साथ जापान क्वाड में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। ताइवान को लेकर जापान का रवैया भी भारत को रास आता है।

प्रधानमंत्री के पद पर साने ताकाइची की ताजपोशी को भारत के लिए भी सुखद संकेत माना जा रहा है। एक तो वे उन पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की अनुयायी हैं, जिनकी प्रधानमंत्री मोदी के साथ भारतीय संबंधों को लेकर बेहतर कैमिस्ट्री रही है। सदियों से दोनों देशों के रिश्ते खास रहे हैं। आजादी की लड़ाई में भारतीय सेनानियों को जापान से खासा सहयोग मिला। नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जापान में सक्रियता से जुड़ी स्मृतियां दोनों देशों को और करीब लाती हैं। बौद्ध धर्म भी दोनों देशों के रिश्तों को समृद्ध करता है। वैसे भी रक्षा व सुरक्षा संबंधों के अलावा भारत की विकास योजनाओं में भारी जापानी निवेश हुआ है। दूसरे शब्दों में भारत की विकास यात्रा में जापान एक भरोसेमंद साझेदारी अतीत में भी रहा है। भरोसा जताया जा रहा है कि साने ताकाइची की ताजपोशी से दोनों देशों के राजनयिक ही नहीं, आर्थिक, सामरिक, सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में रिश्तों को नये आयाम मिलेंगे।

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