Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

बेबस बाकी रस, चले बस नेता निंदारस

तिरछी नज़र
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

केदार शर्मा ‘निरीह’

आयुर्वेद में षड्‍रस का वर्णन मिलता है। यहां तक कि कौन-सा रस किस मौसम में ग्रहण करना हितकर है, इसका विशद विवरण भी है, लेकिन जब मौसम आम चुनाव का हो और खुद की प्रतिष्ठा दाव पर हो तो बकौल नेताजी के लिए सप्तमरस यानी निंदारस हितकारक है। इस मौसम में निंदारस का सेवन करने से जो नेता चूक गया, समझ लो वह चुक गया। इस चूक का परिणाम चुनाव परिणाम के दिन देखने को मिलता है। ज्यों-ज्यों हार का आंकड़ा स्क्रीन पर परवान चढ़ता हैं त्यों-त्यों मुंह की लार का जायका पहले अम्लीय फिर क्रमश: कषाय, तिक्त और अंत में कटु में बदलकर सारा जायका खराब कर देता है। पर इस निंदा रस का सेवन करने से नेतागण खुद पुष्टक होते हैं और विरोधी चित। जीत होने पर मधुर और नमकीन रस खुद साकार रूप लेकर प्लेट में सजने लगता है।

Advertisement

यदि तराजू के एक पलड़े में षड्‍रस रखे जाएं तो दूसरे पलड़े में रखा निंदारस इन सब पर भारी पड़ता है। यही कारण है कि नेताजी हर जगह चुनाव प्रचार भाषण में इसी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करते हैं। निंदारस कभी समाप्त न होने वाला अक्षय भंडार है। तुलसी बाबा ने पहले ही कह दिया है कि ‘जड़ चेतन गुण दोषमय सकल कीन्ह करतार।’ नेताजी गुणों की बात ही नहीं करते हैं बल्कि करतार ने जो दोष बनाए हैं उनका काम उन दोषों को जनता जनार्दन के सामने उजागर करना हैं। कदाचित कोई दोष विरोधी पार्टी वालों में नहीं है तो क्या हुआ उनको भविष्य में उत्पन्न होने की संभावना बताकर निंदा की जा सकती है।

इसीलिए नेताजी कहते हैं यदि उनको वोट दिया तो वे ‘ऐसा’ कर देंगे या ‘वैसा’ कर देंगे। यही कारण है कि उनके भाषण का आधा हिस्सा निंदारस से भरा होता है। हमारे शास्त्र निंदा को बुराई की श्रेणी में रखते हैं पर राजनीति इसका अपवाद है। प्रेम और जंग में निंदारस जायज है। इसमें निंदारस का पान करना ही धर्म है। नेतागण चुनाव भाषणों के माध्यम से इस परंपरा को अक्षुण्ण बनाए रखते हैं। चुनाव प्रचार में इसे धार देकर धारदार बनाते हैं। यदि कोई नेताजी की या उनकी पार्टी की निंदा करता है तो वे बदले में निंदा की भी निंदा कर हिसाब बराबर कर डालते हैं। ऐसा नहीं है कि इस निंदारस का व्यसन नेताजी को ही है बल्कि यह संक्रामक रोग है जो नेताजी के साथ काम करने वाले कार्यकर्ताओं को भी उतनी ही मुस्तैदी से जकड़ लेता है।

यदि निंदारस इतना बुरा होता तो कबीर भला क्यों कहते- ‘निंदक नियरे राखिये... इसीलिए विपक्षी पार्टियों को सदन में पीछे नजदीक बैठाया जाता है। सत्तारूढ़ पार्टी का स्वभाव ये कितना निर्मल करते हैं यह तो शोध का विषय है, पर इतना जरूर है कि पीछे बैठकर पल-पल पांच साल तक निंदारस का भरपूर आनन्द लेते हैं। इस सप्तम रस के लिए वाणी के अलावा चाहे हाथ-पांव, माइक और कुर्सियां ही क्यों न उछालनी पड़ें।

Advertisement
×