आलोक पुराणिक
कृषि से जुड़े तीन कानूनों को वापस लिये जाने के फैसले पर चालू विश्वविद्यालय ने निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया, उस आयोजन में जिस निबंध को पहला पुरस्कार मिला, वह इस प्रकार है-
केंद्र सरकार ने कृषि से जुड़े तीन कानूनों को वापस लेने का जो फैसला लिया है, उससे साबित होता है कि सबसे महत्वपूर्ण फसल होती है वोटों की। यूं रबी, खऱीफ की फसलें भी होती हैं भारतवर्ष में। कुल मिलाकर एक साल तक चले आंदोलन से कइयों को बहुत किस्म के रोजगार मिले। कइयों को ठिकाने मिले, दिल्ली की कई सीमाओं पर कई टैंट वालों को कारोबार मिला, टैंट तने।
भारत कृषि प्रधान देश है और सबसे महत्वपूर्ण फसल है वोटों की। जब किसी पार्टी को लगता है कि उसकी वोटों की फसल को नुकसान पहुंचेगा, तो वह कानून वापस भी ले सकती है और कानून बना भी सकती है। मूल बात कानून नहीं, मूल बात वोटों की फसल है। वोटों की फसल ठीक रहे, वोटों के किसान की यह चिंता तो जायज ही है। वोटों की फसल को लेकर तरह-तरह की चिंताएं थीं। सत्तारूढ़ पार्टी को लग रहा था कि इसी तरह से चला, तो कुछ राज्यों में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में वोटों की फसल पर असंतोष के कीड़े लग सकते हैं। यूं सुनील शेट्टी समेत कई सेलिब्रिटी फसलों में लगने वाले कीड़ों की दवाइयों के बारे में बताते हैं, पर वोटों की फसलों को कीड़ों से बचाने वाली दवाई किसी के पास नहीं है।
सावधानी हटी और दुर्घटना घटी टाइप मामला है वोटों की फसल का। तो सत्तारूढ़ दल को लगा कि वोटों की फसल पर चोट हो सकती है, तो कानून वापस हो गये।
पर सत्तारूढ़ दल में वोटों के समझदार किसान नहीं हैं, यह नहीं मानना चाहिए। कृषि कानून वापस लिये जाने के बाद अब पंजाब में नयी तरह की संयुक्त राजनीतिक खेती हो सकती है। पंजाब में वोटों के कुछ पुराने किसानों की नयी स्थिति है, वह नयी तरह से संयुक्त राजनीतिक खेती के लिए तैयार हो सकते हैं। तो माना जा सकता है कि केंद्र सरकार की कृषि कानूनों की वापसी से वोटों की नयी शानदार फसल तैयार हो सकती है।