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हानिया के बाद हमास की दिशा-दशा का प्रश्न

पुष्परंजन एक आम भारतीय विश्लेषक से पूछेंगे कि मुहम्मद दीफ़ कौन था? तो शायद वो न में सिर हिला दे। लेकिन गुरुवार को सुबह-सुबह इस्राइली अख़बारों की हेडलाइन मुहम्मद दीफ़ के मारे जाने की खबर से सनसनी पैदा कर रही...

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पुष्परंजन

एक आम भारतीय विश्लेषक से पूछेंगे कि मुहम्मद दीफ़ कौन था? तो शायद वो न में सिर हिला दे। लेकिन गुरुवार को सुबह-सुबह इस्राइली अख़बारों की हेडलाइन मुहम्मद दीफ़ के मारे जाने की खबर से सनसनी पैदा कर रही थी। हमास की एक सैन्य शाखा इज़दीन अल क़सम ब्रिगेड के प्रमुख मुहम्मद दीफ़ के मारे जाने की खबर को 13 जुलाई से दबाये रखने की ज़रूरत क्या थी? दीफ़ को 13 जुलाई, 2024 को खान यूनिस इलाके में निशाना बनाया गया था। सेना ने खान यूनिस के हमले में एक और हमास कमांडर राफा सलामेह की मौत की पुष्टि की, लेकिन तब ‘आईडीएफ’ ने कहा था कि उसके पास मुहम्मद दीफ़ के बारे में अंतिम जानकारी नहीं है।

इस्माइल हानिया पर हमले से पहले बेरूत के दक्षिणी उपनगर में मंगलवार को हिजबुल्लाह के एक शीर्ष कमांडर फौद शुक्र की मौत हो गई। इस्राइल का कहना है कि वह गोलान हाइट्स के मजदल शम्स शहर में एक फुटबॉल मैदान पर मिसाइल हमले के लिए जिम्मेदार था, जिसमें 12 बच्चे मारे गए थे। हालांकि हिजबुल्लाह ने हमले की जिम्मेदारी लेने से इनकार किया है, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि सभी संकेत इस ओर इशारा करते हैं कि यह आतंकी समूह द्वारा किया गया था। गत 7 अक्तूबर, 2023 के हमले में इस्राइली ख़ुफ़िया एजेंसियों का जो मोरल डाउन था, वो अब फिर से ऊंचा हो चुका है।

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फौद, दीफ़ और हानिया, इन तीनों के मारे जाने की खबर टाइमिंग देखिये। क्या यह सब इसलिए, कि इस्राइल की जासूसी संस्था ‘शिन बेत’, जिसे हिब्रू में ‘शबाक’ नाम से जाना जाता है, को श्रेय दिया जा सके? शिन बेत के साथ-साथ आईडीएफ (इस्राइली डिफेंस फ़ोर्स) और प्रधानमंत्री नेतन्याहू की जय-जयकार इस समय पूरे देश में हो रही है। हिजबुल्लाह और हमास के वरिष्ठ अधिकारियों की हत्याओं की सफलता के बावजूद, 115 इस्राइली बंधकों की रिहाई को लेकर सबकी सांसें थमी हुई हैं। ये लोग हमास द्वारा गाजा पट्टी में 300 दिनों से बंधक बनाए गए हैं, जिनका छूटना अब भी अनिश्चित-सा है।

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दीफ़ की मौत का उदारवादी ‘यिसरेल बेयटेनू’ के प्रमुख एविगडोर लिबरमैन ने भी स्वागत किया है, जिन्होंने ट्वीट किया कि ‘7 अक्तूबर, 2023 को यहूदियों का कत्लेआम, बलात्कार और अपहरण करने वाले उन घृणित आतंकवादियों के लिए दुनिया में कोई जगह नहीं है, और हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनमें से कोई भी प्राकृतिक मौत न मरे।’ रक्षा मंत्री योआव गैलेंट का कहना है कि हमास के सैन्य कमांडर मुहम्मद दीफ़ की हत्या की पुष्टि आतंकवादी समूह के खात्मे की दिशा में एक ‘बड़ा कदम’ है।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि ईरान हानिया और हिज़बुल्लाह नेता की मौत का बदला लेगा? ईरान के पश्चिमी मित्र सर्वोच्च नेता को सॉफ्ट करने में लगे हुए हैं। जो लोग हमास को क़रीब से जानते हैं, उनका दावा है कि हानिया सिर्फ हाथी के दांत जैसे प्रतीकात्मक व्यक्ति थे। हमास में महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाले व्यक्ति याह्या सिनवार हैं। डॉ. माइकल मिल्शटाइन, तेल अवीव विश्वविद्यालय के दयान केंद्र में फिलिस्तीनी अध्ययन मंच के प्रमुख हैं। उनका मानना है कि हानिया की मौत से हमास दबाव में है, लेकिन उसका सफाया एकदम से हो जाये, यह संभव नहीं।

मिल्शटाइन ने कहा, ‘सिनवार हानिया को तुच्छ समझते हैं। सिनवार अक्सर कहा करते थे, ‘ये सैन्य अनुभव के बिना सूट पहने हुए लोग थे, जिन्होंने हमारी तरह जेल में कष्ट नहीं झेले।’ मिल्शटाइन बोलते हैं, ‘हानिया का बाहरी दुनिया के लोगों से मिलना-जुलना, बयानबाज़ी चलता रहता था, लेकिन हमास का रिमोट कंट्रोल सिनवार के पास था। हानिया वास्तव में वह व्यक्ति नहीं थे जो ज़मीनी लड़ाई निर्धारित करते थे। हमास में अंतिम निर्णय लेने वाला व्यक्ति याह्या सिनवार ही रहा है, हानिया नहीं।’

हानिया का दबाव जिस तरह संगठन पर था, उससे सिनवार ने राहत की सांस ली होगी, ऐसा कुछ विश्लेषकों का मानना है। मिल्शटाइन बोलते हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि सिनवार ने शैंपेन का गिलास उठाया होगा, लेकिन उनके लिए काम करने का माहौल और भी आरामदायक हो गया। हानिया ने ज़िंदा रहते उनके लिए कोई चुनौती नहीं पेश की, लेकिन बाधा का अहसास बना रहता था। कल गाजा में एक पत्रकार से मेरी बातचीत हुई, जिसने कहा कि हत्या के बाद गाजा और दोहा के बीच की दरारें काफी बढ़ गई हैं; इस पर नज़र रखना आवश्यक है।’ गाज़ा की लीडरशिप और उनके कमांडर क्या दोहा में निर्वासित हमास नेताओं को खटकते थे? इस सवाल का उत्तर आने वाले समय में मिलेगा।

लेकिन एक बात तो है कि हमास के राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख इस्माइल हानिया ने गाज़ा पर अपनी पकड़ बनाये रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। हमास के संस्थापक अहमद यासीन 1992 में लेबनान में भूमिगत हो गए थे, जहां 2004 में उनकी हत्या होने तक हानिया साये की तरह उनके साथ रहे। वर्ष 2006 में, उन्हें फिलिस्तीनी प्राधिकरण का प्रधानमंत्री चुना गया, और 2007 में, जब हमास ने तख्तापलट करके गाजा पट्टी पर नियंत्रण कर लिया, तो वे गाजा के वास्तविक शासक बन गए। अहमद यासीन के उत्तराधिकारी अब्देल अजीज अल-रंतिसी की हत्या के बाद हमास को नेतृत्व देने का अवसर उन्हें मिला था। वर्ष 2017 में, उन्हें हमास के राजनीतिक ब्यूरो का प्रमुख चुना गया। वे क़तर चले गए। हानिया ने खालिद मशाल का स्थान लिया, जिन्होंने लगभग दो दशकों तक इस पद पर कार्य किया था।

अप्रैल, 2024 में इस्राइल ने गाजा शहर में हानिया के तीन बेटों और उनके तीन पोते-पोतियों की हत्या कर दी थी। अल जज़ीरा द्वारा प्रसारित एक वीडियो में, हानिया को दोहा के एक अस्पताल में उनकी मौत की खबर सुनते हुए देखा जा सकता है, और वे कहते हैं, ‘मैं अल्लाह का शुक्रगुज़ार हूं कि उसने मेरे तीन बेटों और कई पोते-पोतियों की मृत्यु द्वारा मुझे सम्मान दिया। उन्हें भी यह सम्मान मिला। वे हमारे फिलिस्तीनी लोगों के साथ गाज़ा पट्टी में रहे, वे वहां से भागे नहीं।’

इस्माइल हानिया जिस तरह इस्राइल के टारगेट पर थे, उन्हें मारने वाले काम को अंजाम पहले भी दिया जा सकता था, लेकिन क्या इस्राइल इसका इंतज़ार कर रहा था कि हानिया तेहरान जाएं? ईरान की सरज़मीं पर ऐसे सर्जिकल स्ट्राइक के बहुतेरे मायने निकलते हैं। भारत में भी हानिया को हीरो मानने वाले युवाओं में मायूसी है। वो खुलकर इसकी मज़म्मत से परहेज़ करते हैं। लेकिन भारतीय समाज का बड़ा हिस्सा नेतन्याहू के इस क़दम को सही ठहरा रहा है। इसी कश्ामकश में फंसे भारतीय विदेश मंत्रालय ने गुरुवार तक कोई बयान नहीं दिया।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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