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पत्नी को निहारने का दमखम और जोखिम

व्यंग्य/तिरछी नज़र
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मनीष कुमार चौधरी

अव्वल तो यह बात ही हजम नहीं होती कि कोई अपनी पत्नी को निहार भी सकता है। हां, प्रेमिका इस मामले में अपवाद है। उसे जरूर निहारा जा सकता है। पत्नी को निहारना तो छोड़िए, उसे प्यार भरी नजरों से देख लेना भी अक्सर नुकसानदेह साबित होता है। यह नुकसान ज्यादातर वित्तीय रूप में सामने आता है। ऐसी स्थिति में पत्नी कोई फरमाइश रख सकती है। वह शॉपिंग पर चलने के लिए भी कह सकती है या पति से ऐसा कुछ मंगा सकती है, जिसे लाने से अच्छा है जल्दी दफ्तर जाकर काम करना। नुकसान का दूसरा रूप शाब्दिक हो सकता है। पत्नी यह ताना दे सकती है कि तुम मुझे कब से निहारने लगे! मुझे देखने का समय तुम्हारे पास होता ही कब है। हां, पड़ोसन को निहारने के लिए तुम्हारे पास टाइम ही टाइम है।

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आधा अरब रुपये से ऊपर का सालाना वेतन उठाने वाले एल एंड टी के चेयरमैन सुब्रह्मण्यम जी ने कर्मचारियों को पत्िनयों को निहारने को लेकर जो सलाह दी है, वह कतई प्रैक्टिकल नहीं है। जनाब को पता नहीं है कि घर पर रहने वाला कर्मचारी हर समय पत्नी को निहार ही नहीं रहा होता, वह झाड़ू-पोंछा, बर्तन साफ भी कर रहा होता है। वह उस पत्नी के लिए नाश्ता बना रहा होता है, जो उससे पहले भी काम पर जाएगी। जितना वेतन वे अपने कर्मचारियों को दे रहे होते हैं, उससे एक से घर का खर्चा नहीं चलता, इसलिए दोनों काम पर जाते हैं। काम सिर्फ दफ्तर का ही महत्वपूर्ण नहीं होता, घर के कामों की भी उतनी ही महत्ता होती है। यहां तक कि घर पर रहने वाली पत्नी भी पति को यह कहकर काम पर ठेल देती है कि घर बैठकर मुझे निहारने से अच्छा है, काम पर जल्दी जाओ और देर से घर आओ। कम से कम ओवरटाइम तो बनेगा।

एक सर्वेक्षण के अनुसार शादी के एक माह बाद पत्नी को अधिकतम दो मिनट, छह माह बाद एक मिनट, साल भर बाद बीस सेकंड और उसके बाद बुढ़ापे तक एक बार में मात्र दस सेकंड तक निहारा जा सकता है। इससे ज्यादा घूरना या निहारना खतरे से खाली नहीं है। बैंजामिन फ्रेंकलिन तो कहकर गए हैं कि शादी से पहले अपनी आंखें पूरी तरह खुली रखें और शादी के बाद आधी। आजकल के समझदार पति पूरी तरह आंखें बंद करके रखते हैं। जनाब सुब्रह्मण्यम के सामान्य ज्ञान के लिए पति की परिभाषा पर गौर फरमाइए। ‘पति दो आंखें, दो कान, एक नाक, एक मुख का ऐसा प्राणी है, जो मूक रहकर सब कुछ देखता मात्र है। कानों से पत्नी की डांट भर सुनता है। जिसके मुख खोलने पर पाबंदी होती है और नाक पर एक अदृश्य नकेल।’ इसके बाद क्या कहना, क्या सुनना और क्या देखना बाकी रह जाता है? तिस पर पत्नी को निहारना, घूरना, ताड़ना... तौबा-तौबा...!

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