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सेहतमंद फसल पर मुनाफे का ज़हरीला असर

पैराक्वाट की चपेट में मूंग
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डॉक्टरों के अनुसार पैराक्वाट डाइक्लोराइड के इस्तेमाल से उगाई गई मूंग के सेवन से कैंसर, लंग्स, किडनी, लिवर फेल्योर, पार्किसंस रोग का खतरा रहता है। सबसे बड़ा जोखिम यह है कि मूंग के दानों में पैराक्वाट के अवशेष रह जाते हैं।

पंकज चतुर्वेदी

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डॉक्टर अक्सर मरीजों को मूंग दाल खाने की सलाह देते हैं, लेकिन अधिक मुनाफे के लोभ में अब जो मूंग बाजार में आ रही है वह सामान्य बीमार व्यक्ति को गंभीर रोग का शिकार बना सकती है। चूंकि मध्य प्रदेश में देश में मूंग की फसल का 35 प्रतिशत उत्पादन होता है। शुरुआत में राज्य सरकार ने मूंग की सरकारी खरीदी पर हिचकिचाहट दिखाई थी तो सियासत भी गर्मा गई थी। सरकार भी अपनी जगह ठीक ही थी। यह बात तंत्र समझ गया था कि अधिक फसल और इसे जल्दी पकाने के लिए किसान जिस रसायन का इस्तेमाल कर रहे हैं, असल में वह ज़हर है। यदि मध्य प्रदेश के किसान यह अनुचित तरीका अपना रहे हैं तो देश के अन्य राज्यों में भी यही हो रहा होगा। विदित हो म.प्र. में इस वर्ष मूंग का सरकारी खरीदी मूल्य 8558 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। यह दाम बीते चार साल में 1362 रुपये बढ़े हैं। बढ़ते दाम, तीसरी फसल की लालसा और कम रकबे में अधिक उत्पाद के चलते किसान का मूंग की तरफ आकर्षण भी बढ़ा और लालच भी।

म.प्र. के कृषि विभाग ने राज्य शासन को बताया कि किसान मूंग की फसल में खरपतवार नाशक दवा पैराक्वाट डाइक्लोराइड, जिसे स्थानीय रूप से ‘सफाया’ भी कहा जाता है, का बड़े पैमाने पर उपयोग कर रहे हैं। कई देशों में यह प्रतिबंधित है, लेकिन यहां किसान इसका उपयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं। किसान जानते हैं कि मूंग की फसल खेतों में एक साथ नहीं पकती। कुछ पौधे जल्दी तो कुछ देर से पकते हैं। ऐसे में मजदूरों से तुड़ाई में समय, खर्च ज्यादा लगता है। फसल को एकसाथ सुखाने के लिए पैराक्वाट तत्काल असर करती है। इससे एक दिन में पूरी फसल सूख जाती है, फिर हार्वेस्टर से कटाई हो जाती है। यही नहीं, इसके इस्तेमाल से कच्ची मूंग के दाने भी चमकीले हरे दिखते हैं। इस तरह इनका वजन अधिक लगता है और इससे दाम अधिक मिल जाते हैं। दरअसल किसान रबी और खरीफ की फसल के बीच तीन महीनों में मूंग की फसल तैयार करने के लिए यह ज़हरीला जतन कर रहे हैं।

भारत में कोई तीस लाख मीट्रिक टन मूंग का उत्पादन होता है और यह समूचे देश में बीमारों के लिए पथ्य भोजन मानी जाती हैं। मूंग में मौजूद स्टार्च और प्रोटीन छोटे अणुओं में टूटकर जल्दी पच जाते हैं। इसमें कम मात्रा में रेजिन होता है, जो पेट में गैस नहीं बनाता। 100 ग्राम मूंग में लगभग 105 कैलोरी और बहुत कम वसा होता है। आयुर्वेद के अनुसार मूंग दाल त्रिदोष नाशक मानी जाती है— यानी यह वात, पित्त और कफ को संतुलित करती है। बीमारियों में इसका सेवन शरीर को संतुलन में लाता है। मूंग में फ्लावोनॉयड्स, कैंपफेरॉल, विटामिन-सी और फेनोलिक यौगिक होते हैं, जो शरीर की रोग-प्रतिरोध क्षमता को मज़बूत करते हैं।

डॉक्टरों के अनुसार पैराक्वाट डाइक्लोराइड के इस्तेमाल से उगाई गई मूंग के सेवन से कैंसर, लंग्स, किडनी, लिवर फेल्योर, पार्किसंस रोग का खतरा रहता है। सबसे बड़ा खतरा यह है कि मूंग के दानों में पैराक्वाट के अवशेष रह जाते हैं। जब इन दानों का सेवन किया जाता है, तो ये सीधे मानव शरीर में पहुंचते हैं। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एपिडेमियोलॉजी 2024 में प्रकाशित शोध के अनुसार पैराक्वाट डाइक्लोराइड की रासायनिक संरचना एमपीपी प्लस नामक एक जहरीले पदार्थ से मिलती-जुलती है, जो कि एमपीटीपी नामक रसायन से बनता है। यह वही रसायन है, जिससे 1983 में मनुष्यों में पार्किसंस जैसा रोग पैदा हुआ था। यह हाइली टॉक्सिक हर्बीसाइड है। थोड़ा-सा भी सेवन या सांस के माध्यम से संपर्क जानलेवा होता है। मुंह और गले में जलन, उलटी-दस्त, पेट में तेज दर्द प्रमुख लक्षण हैं। इससे लंग्स, लिवर, किडनी फेल्योर का खतरा रहता है। सांस के जरिए लेने पर फेफड़ों में फाइब्रोसिस हो सकता है। यह कैंसर कारक होने के साथ ही आंखों और श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है। यह केमिकल आर्गेनो फास्फेट फैमिली का है, जिसकी बेहद कम मात्रा किसी रूप में लेने से उलटी-दस्त और पेट में मरोड़ हो सकती है। कुछ ज्यादा होने पर आंतें सिकुड़ जाती हैं। सबसे बड़ी बात इस कीटनाशक का अभी तक कोई एंटी डोज नहीं उपलब्ध है।

मध्य प्रदेश सरकार समय-समय पर कहती रही कि मूंग की फसल को सुखाने के लिए पैराक्वाट का उपयोग करना कानूनन गलत है, इसके बावजूद इस्तेमाल बढ़ता ही जा रहा है। जब 20 लाख टन दाल मंडी में आ ही गई तो चाहे सरकार खरीदे या फिर व्यापारी, झट तो आम लोगों की नसों में घुलना यही है। विदित हो भारत में पैराक्वाट डाइक्लोराइड 24 प्रतिशत एसएल फॉर्मूलेशन पंजीकृत है और इसका उपयोग आलू, कपास, रबर, चाय, मक्का, चावल, अंगूर और जलीय खरपतवारों पर खरपतवार नियंत्रण के लिए अनुमोदित है। हालांकि, इसे मूंग जैसी दालों की फसल को सुखाने के लिए इस्तेमाल करना भारतीय कीटनाशक अधिनियम का उल्लंघन है। जब किसान इसका इस्तेमाल खेत में कर रहा होता है तब उसे रोका या उस पर अपराध पंजीबद्ध किया नहीं जाता। अकेले मध्य प्रदेश ही नहीं, उड़ीसा और पंजाब में भी ज़हरीली मूंग के मामले सामने आए हैं।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के कीटनाशक प्रबंधन के अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अंतर्गत 40 से अधिक देशों ने पैराक्वाट को प्रतिबंधित किया है। इनमें यूरोपियन यूनियन, स्वीडन जैसे विकसित देशों के साथ-साथ चीन, थाईलैंड जैसे हमारे पड़ोसी भी हैं। हालांकि, यह मिट्टी में आंशिक रूप से निष्क्रिय हो जाता है, फिर भी यह लंबे समय तक मिट्टी में बना रह सकता है, जिससे मिट्टी के सजीव जीवाणु, कवक, कृमि, और अन्य सूक्ष्म जीवों पर इसका प्रतिकूल असर होता है। मिट्टी की उर्वरता और जलधारण क्षमता घट जाती है।

ज़हर से लहलहाते खेत बना रहे पैराक्वाट पर सरकार की नीति ही ढुलमुल है तिस पर किसान की लापरवाही भी है। स्वास्थ्य चिंताओं के चलते केरल और ओडिशा जैसे कुछ राज्यों ने इसे प्रतिबंधित कर दिया है। हालांकि, इन प्रतिबंधों का असर सीमित है, क्योंकि इसका अवैध या गलत उपयोग अब भी बड़े पैमाने पर हो रहा है। आज जरूरत है कि इस पर पूर्ण प्रतिबंध हो। मूंग का जहर होना एक प्रकार से दवा का बेअसर होना है।

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