मजबूरी का नाम मल्टी टैलेंटेड मास्टर साहब
धन्य हैं वे शिक्षक जो राजपत्रित अवकाश, रविवारीय अवकाश एवं अघोषित गर्मी-सर्दी की छुट्टी के पश्चात जो कार्य दिवस शेष बच जाते हैं उसमें से जनगणना, मतदान, बाढ़ राहत कार्य आदि के निष्पादन के पश्चात शेष दिवसों में पठन-पाठन का कार्य भी कर ही लेते हैं।
्एरक दौर था जब गुरु छात्रों को पढ़ा-लिखाकर योग्य बनाते ताकि वो देश निर्माण में योगदान दे सकें। इन दिनों वे चुनाव प्रक्रिया में सांसद, विधायक, मुखिया आदि के चुनाव में ड्यूटी देकर लोकतांत्रिक राष्ट्र के निर्माण में भूमिका निभा रहे हैं।
आप बिल्कुल सही समझे, बात हो रही है एक ही वेतन पर अनेक कार्यों को संपादित करने वाले सरकारी शिक्षक की। गुरु, मास्साब, शिक्षक आदि नामों से पुकारे जाने वाले सरकारी महामानव अद्भुत अद्वितीय और असीम ऊर्जा के स्वामी होते हैं।
सृष्टि चक्र की बात करें, तो सरकारी गुरुदेव में ब्रह्मा विष्णु और महेश का स्वरूप साकार देखा जा सकता है। पालनकर्ता भगवान विष्णु की तरह सरकारी शिक्षक भी सरकारी संस्थाओं में प्रतिदिन सैकड़ों नाबालिग बच्चों को मीड-डे मील योजना के तहत पोषण प्रदान कर रहे हैं।
पोशाक, साइकिल आदि वितरण के दौरान इनकी दानवीरता देख अंगराज कर्ण भी शरमा जाए। धनवंतरी की आरोग्य पद्धति उस समय फीकी पड़ जाती है, जब बिना मेडिकल अनुभव के इनसे पोलियो उन्मूलन अभियान से लेकर कोरोना महामारी अवधि के दौरान चिकित्सकीय सेवा ली जाती है।
ऐसे महामानवों की दैनिक अवधि विद्या मंदिर की चौखट से ज्यादा लोगों के दरवाज़े और चौखट पर ही व्यतीत होती है। जिस प्रकार चित्रगुप्त के पास मनुष्यों के कर्मों का अद्यतन लेखा-जोखा होता है वैसे ही जनगणना कार्यक्रम के दौरान शिक्षकों के पास क्षेत्र के निवासियों का सारा डेटा होता है। सरकारी आचार्य के पास भले ही छात्रों की उपस्थिति, शैक्षणिक उपलब्धियां अथवा पाठ्यक्रमों की स्थिति का ब्योरा आधा-अधूरा हो, लेकिन क्षेत्र में निवासरत समुदाय के पारिवारिक सदस्यों की संख्या, आयु, जाति आदि की रिपोर्ट अद्यतन होती है।
सरकारी टीचर्स से मल्टी वर्क करवाने में सरकार की नीति साधुवाद के योग्य है। सरकारी काम का निष्पादन जरूरी है, भले ही वह कार्य बच्चों की पढ़ाई छोड़कर शिक्षक द्वारा क्यों न हो और रही बात शैक्षिक कार्यों की, तो वह प्राइवेट स्कूल में प्राइवेट टीचर कर ही रहे हैं। यह और बात है कि प्राइवेट स्कूल में अध्ययनरत माननीय से सरकारी कर्मचारी एवं पदाधिकारियों के बच्चों को ऐसे महापुरुष मास्साबों के दर्शन का सौभाग्य इस जन्म प्राप्त नहीं हो सकता।
बहरहाल, इतनी व्यस्तता के बावजूद सरकारी शिक्षक उछल-कूद करके कुशलतापूर्वक शैक्षणिक कार्य को अंजाम देने का प्रयास करते हैं। धन्य हैं वे शिक्षक जो राजपत्रित अवकाश, रविवारीय अवकाश एवं अघोषित गर्मी-सर्दी की छुट्टी के पश्चात जो कार्य दिवस शेष बच जाते हैं उसमें से जनगणना, मतदान, बाढ़ राहत कार्य आदि के निष्पादन के पश्चात शेष दिवसों में पठन-पाठन का कार्य भी कर ही लेते हैं।