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नोट और वोट के धंधेबाज न आए बाज

व्यंग्य/उलटबांसी
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आलोक पुराणिक

दोस्ती, दुश्मनी परमानेंट न होतीं, डालर परमानेंट है। ट्रंप और एलन मस्क दोस्त थे, अब दोस्त नहीं हैं। फिर दोस्त न होंगे, कोई नहीं कह सकता। न दोस्ती परमानेंट है न दुश्मनी। परमानेंट सिर्फ अपने हित हैं, परमानेंट तो सिर्फ डालर हैं।

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मस्क ने कहा कि उनकी वजह से ही ट्रंप जीते। ट्रंप ने कहा कि ट्रंप के कारोबारी हितों को चोट पहुंची है, इसलिए मस्क नाराज हुए हैं। धंधे पर लात पड़ती है, तो बंदा नाराज होगा। ट्रंप का धंधा पॉलिटिक्स है, मस्क कुछ ऐसा कर रहे थे, जिससे ट्रंप के धंधे को चोट पहुंच रही थी। मस्क ने कहा कि छंटनी करो, लागत कम करो। इस तरह की बातों से वोट कम होते हैं, वोट भी एक किस्म का मुनाफा है। नार्मल कारोबारी धंधा करता है, नोट के लिए। बड़ा कारोबारी धंधा करता है, नोट और वोट के लिए। ट्रंप बड़े कारोबारी हैं, वोट भी चाहिए उन्हें, नोट भी चाहिए उन्हें।

ट्रंप एपार्टमेंट भी बेचते हैं और वादे भी बेचते हैं। वादों से वोट और नोट न भी आयें, तो एपार्टमेंट से तो नोट आते ही रहते हैं। नोट आते रहें, तो वोट लेना आसान हो जाता है। मस्क मूलत: नोट के धंधे में हैं। कई नोटधारियों को शौक होता है कि वह वोट वालों के करीब हो जाते हैं। अधिकांश मामलों में कारोबारी को घाटा हो जाता है, वोट वालों से जुड़कर। नोट वाला वोट वाले से जुड़ता है, तो नोट गंवाकर लौटता है। वोट वाले को कोई खास फर्क न पड़ता, कोई और नोट वाला उसके पास आ जाता है।

पॉलिटिक्स हरेक के बस की नहीं है। पॉलिटिक्स में झूठ बोलना कंपलसरी है। विशुद्ध धंधे में लगातार झूठ नहीं बोला जा सकता। पॉलिटिक्स में झूठ बोलकर, वादे तोड़कर भी नेता पॉलिटिक्स में बना रहता है। कारोबार में कोई भी कारोबारी लगातार लंबे समय तक झूठ बोलकर, वादे तोड़कर बड़ा तो दूर, छोटा कारोबार भी नहीं कर सकता। कारोबार में लगातार झूठ नहीं चल सकता।

मस्क और ट्रंप कुछ लड़ेंगे, झगड़ेंगे, जिस दिन दोनों को लगेगा कि अब दोस्ती में बेहतरी है, तो उस दिन दोस्त हो जायेंगे। दोनों ही धंधेबाज हैं। ट्रंप ज्यादा बड़े वाले हैं। पर अबकी बार ट्रंप कुछ फंसे हुए लगते हैं। ट्रंप ने कहा था कि उनके राष्ट्रपति बनते ही तमाम युद्ध बंद हो जायेंगे। पर कोई युद्ध बंद नहीं हुआ। अब तक ट्रंप की उपलब्धियों में सिर्फ एक महंगी गिफ्ट है, जो कतर सरकार ने उन्हें दी है। पर गिफ्ट से अमेरिका को कामयाब नहीं माना जा सकता।

ट्रंप के कार्यकाल में हुआ यह है कि जो देश थोड़ी बहुत अमेरिका की सुन लिया करते थे, अब वो भी नहीं सुन रहे हैं। अमेरिका का नुकसान है, ट्रंप का फायदा है।

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