उम्र के आठ दशक पूरा करने के बाद भी यदि कोई व्यक्ति कन्या शिक्षा के लिये प्राणपन से जुटा रहे तो यह मिसाल निश्चित रूप से प्रेरक ही कही जायेगी। पिछले चार दशक से फिजिक्स की प्रोफेसरी छोड़कर और जीवनपर्यंत अविवाहित रहकर ज्ञान की अलख जगाने वाले अस्सी वर्षीय ओम प्रकाश ‘गांधी’ को पिछले दिनों कृतज्ञ राष्ट्र ने पद्मश्री देकर सम्मानित किया। हरियाणा के यमुनानगर जनपद के खादर क्षेत्र में पिछले चार दशक से बेटियों की शिक्षा कोे तन-मन से समर्पित ओम प्रकाश की जन स्वीकार्यता देखिये कि लोगों ने उन्हें जनचेतना और समाजसेवा में अविस्मरणीय योगदान के लिये ‘गांधी’ उपनाम से नवाजा, जो उनकी विशिष्ट पहचान बनी हुई है। उनका हौसला देखिये कि उनकी संस्था व समाज के लोगों के प्रयास से जनवरी, 2022 में लड़कों के लिये जगाधरी के पास सम्राट मिहिर भोज गुरुकुल विद्यापीठ का निर्माण शुरू कराया है। इस आवासीय गुरुकुल पर 25 करोड़ का खर्च अनुमानित है। इसका अधिकांश भाग समाज के लोगों के सहयोग से जुटाया जायेगा।
दरअसल, गुर्जर कन्या गुरुकुल संस्थान के संस्थापक ओम प्रकाश गांधी ने यमुनानगर जनपद के खादर क्षेत्र में कन्या शिक्षा की दयनीय स्थिति देखकर समाज के सहयोग से यह मुहिम शुरू की। एक फरवरी, 1942 में हरियाणा के माधोबांस ग्राम में जन्मे गांधी को बचपन में कन्या शिक्षा की दयनीय स्थिति ने खासा विचलित किया। पिता रंजीत सिंह एक छोटे किसान थे और माता कमला देवी गृहिणी। उस पर परिवार में बड़ा होने के चलते जिम्मेदारियां भी बड़ी थीं। उत्तर प्रदेश के आगरा विश्वविद्यालय से बीएससी व मेरठ कालेज, मेरठ से एम.एससी. करने के बाद वे सहारनपुर स्थित गोचर कृषि कालेज में भौतिकी के प्रोफेसर के रूप में बीस वर्षों तक अध्यापन करते हैं। लेकिन जब लगा परिवार की जिम्मेदारी पूरी हुई और दोनों भाईयों के करिअर शक्ल लेने लगे तो उन्होंने स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति ले ली। दरअसल, वे समाज के बड़े उद्देश्य के लिये खुद को समर्पित कर देना चाहते थे।
वास्तव में ओम प्रकाश गांधी एक बेहद संवेदनशील इंसान हैं। वे बताते हैं कि रादौर में जब कक्षा चार में पढ़ रहा था, रामलीला के दौरान भरत मिलाप का दृश्य देखकर रो पड़ा। फिर समाज में प्रगतिशील सोच के पोषण के लिये वे आर्यसमाज से जुड़े। सत्यार्थ प्रकाश ने उनके जीवन में नया प्रकाश भरा। उन्होंने पूरा जीवन समाज कल्याण के लिये समर्पित कर दिया। साथ ही जीवनपर्यंत विवाह न करने का संकल्प भी लिया। महिला शिक्षा व सामाजिक सुधारों को प्रतिबद्ध गांधी ने एक संस्था कन्या विद्या प्रचारिणी सभा की स्थापना की। कालांतर वर्ष 1987 में उन्होंने गुर्जर कन्या विद्या मंदिर के नाम पर एक प्राथमिक विद्यालय खोला। आज वह पौधा एक बड़ा वृक्ष बन चुका है। वर्ष 1997 में आवासीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के रूप में इसे मान्यता मिली। समान मानसिकता वाले लोगों के सहयोग से आज यह आवासीय कन्या कालेज बन चुका है और आसपास के जनपदों व पड़ोसी राज्यों की बच्चियां यहां अध्ययनरत हैं। वहीं वर्ष 2015 में उन्होंने समाज के सहयोग से गुर्जर कन्या महाविद्यालय खोला।
शिक्षण संस्थाओं के साथ जाति सूचक नाम जोड़े जाने के बाबत पूछे जाने पर वे बताते हैं कि मैं लंबे समय तक आर्यसमाज व अन्य संस्थाओं के साथ जुड़ा रहा। लेकिन स्वामित्व विवादों ने मुझे विचलित किया। मैंने एक शिक्षा के यज्ञ के लिये गुर्जर समाज की रचनात्मक ऊर्जा का सहारा लिया। आज पूरे देश में इस जाति के लोगों का धर्म की सीमाओं से परे जाकर सहयोग मिल रहा है। समाज का करोड़ों रुपये का योगदान क्षेत्र में शैक्षिक क्रांति लाने में सहायक बना।
दरअसल, गांधीजी ने मदन मोहन मालवीय की लीक पर इन शिक्षण संस्थाओं के लिये चंदा जुटाया। चंदा एकत्र करने के लिये उन्होंने लंबी यात्राएं की। लेकिन उनकी ईमानदार सोच व आदर्श व्यक्तित्व के चलते क्षेत्र के लोगों ने भरपूर सहयोग दिया। उन्होंने कई सामाजिक व धार्मिक आयोजनों के जरिये शिक्षण संस्थाओं के लिये अन्न-धन जुटाया। उनके इसी विश्वास का सुफल है कि वे आज 25 करोड़ की लागत वाले गुरुकुल विद्यापीठ का निर्माण करने का हौसला जुटा पाये।
यह पूछे जाने पर कि पद्मश्री मिलने के बाद उनका जीवन कितना बदला है? उनका जवाब होता है कि ये सब कुछ ईश्वरीय निर्णय है। हम तो निमित्त मात्र हैं। कराने वाला तो ऊपर वाला है हम तो महज माध्यम बनते हैं। वे कहते हैं कि मैं सौभाग्यशाली हूं कि इस पुरस्कार के लिये चुना गया, लेकिन हमारा काम तो पिछली सदी में ही निर्णायक मोड़ पर था, वह बात अलग है कि उस पर लोगों का ध्यान नहीं गया।
अस्सी साल की उम्र में इस सक्रियता व ऊर्जा का राज़ क्या है? वे बताते हैं कि यह सब कुछ ईश्वरीय प्रसाद है। मैं तो आज भी सुबह तीन बजे उठता हूं। नित्य कार्य से निवृत्त होकर ईश्वर से जुड़ने का प्रयास करता हूं, जिससे मन शांत होता है, अन्यथा हम दिनभर विचारों की उधेड़बुन में लगे होते हैं। मैं तो साधारण जीवन जीता हूं। पहले पांच गज की धोती पहनता था, अब उसे आधा कर दिया है। विद्यालय परिसर में सुविधाएं हैं लेकिन मैं अपने कपड़े खुद धोता हूं। साधारण खाना सुबह व दिन में खाता हूं। रात को खाना नहीं खाता। मेरी आवश्यकताएं सीमित हैं। यह पूछे जाने पर कि आपकी विरासत कैसे सुरक्षित रहेगी? वे कहते हैं कि मैंने जिम्मेदारियां जिम्मेदार लोगों को सौंप रखी हैं, उनके कार्य में दखल नहीं देता।