सहीराम
ताली-थाली और दीया-बाती के कर्मकांडों के अलावा गुरूघंटालों ने कोरोना से निजात पाने के कई मंत्र भी दिए थे। दो गज की दूरी, बहुत जरूरी ऐसा ही मंत्र था, अगर याद हो। अब कर्मकांड तो देखिए सब कर ही लेते हैं। अपनी गर्ज को मंत्रों का जाप कर लेते हैं। लेकिन उनका अनुसरण कौन करता है भाई! खुद गुरूघंटाल नहीं करते। करते तो डेरों और आश्रमों में ऐसे-वैसे कांड थोड़े होते। अगर अनुसरण ही करते तो कोरोना काल में इतनी बड़ी-बड़ी चुनावी रैलियां थोड़े ही होती। न वे उन पर इतराते। अनुसरण ही करना होता तो कुंभ का आयोजन क्यों करते और गंगा मैया पर यह भरोसा क्यों करते कि गंगा मैया सब संभाल लेगी। गंगा मैया ने कोरोना पीड़ितों को वैसे तो नहीं ही बुलाया होगा, जैसे वह चुनाव लड़ने के लिए लोगों को बुलाती है। लेकिन एक मंत्र ऐसा है, जिसका जमकर अनुसरण हो रहा है। अब भैया अपवाद तो हर जगह होते ही है। इसलिए मंत्रों में भी ऐसे अपवाद निश्चित रूप होते हैं, जिनका अनुसरण लोग बड़े उत्साह से करते हैं। यह तो लक्ष्मी मैया को आमंत्रित करने जैसा मामला होता है।
यह मंत्र है आपदा को अवसर में बदलने का मंत्र। इधर जब कोरोना की दूसरी लहर आयी और काफी मारक तथा तीखे ढंग से आयी, कहर ढाती हुई और तबाही बरपाती हुयी आयी तो सभी गुणीजनों ने इसी मंत्र का जाप किया और जाप ही नहीं किया, अनुसरण भी किया। पिछली बार आपदा को अवसर में बदलने के मंत्र का अनुसरण सबसे सही ढंग से सरकार ने किया था। उसने मजदूरों के लिए कानून बदल दिए, जिसमें आठ घंटे के कार्यदिवस को बारह घंटे का कार्यदिवस करना और ट्रेड यूनियनों तथा हड़तालों को खत्म करना सब शामिल है। फिर उसने तीन कृषि कानून बना दिया। सरकारी कंपनियों का निजीकरण कर दिया। जिसको जो देना था, दिया। जिससे जो लेना था, लिया। सेठों ने भी इसका खूब अनुसरण किया। इस बार इसका अनुसरण किया जमाखोरों और कालाबाजारी करने वालों ने। वे रेमडेसिविर दबा कर बैठ गए और उसका एक-एक इंजेक्शन सत्तर-सत्तर हजार रुपये में बेचा। वे ऑक्सीजन के सिलेंडर दबाकर बैठ गए और एक-एक लाख रुपये में बेचा। प्राइवेट अस्पताल वालों ने कहा कि आपका बैंकबैलेंस तीस लाख रुपये का है तो ही हमारे यहां आना। पिछली बार यह रेट पांच-छह लाख रुपये था। खैर, जान बचाने की गारंटी तीस लाख के बाद भी नहीं है। फिर आपदा को अवसर में बदला टीका कंपनियों ने। अवसर का फायदा उठाते हुए उन्होंने टीके के दाम बढ़ा दिए। कहां तो फ्री में टीके देने की बात हो रही थी बिहार का चुनाव याद है न। लेकिन आपदा को अवसर में बदलने में वे भी नहीं चूके।