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अमेरिका के पाकिस्तानी मोह में फंसने की तार्किकता

द ग्रेट गेम

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कमजोर आर्थिकी, छद्म लोकतंत्र और आतंकी हमलों के साजिशकर्ता देश के प्रति अमेरिका के प्रेम पर सवाल उठना स्वाभाविक है। दरअसल, अमेरिका की सोच है कि पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान की उपयोगिता भले कामों में बरतने के बजाय नुकसान पहुंचाने वालों से निबटने में अधिक है। पहले प्रशंसा व फिर सुरक्षा परिषद की दो प्रमुख समितियों में पाक को अहम ओहदे देना इसी रणनीति का अंग हो सकता है।

ज्योति मल्होत्रा

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ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के खिलाफ़ भारत द्वारा की गई सैन्य कार्रवाई के औचित्य को समझाने के वास्ते पिछले दो हफ़्तों में 40 से ज़्यादा भारतीय राजनेताओं और पूर्व राजनयिकों से बने सात प्रतिनिधिमंडल 33 देशों में भेजे गए, लेकिन गत 14 जून को वाशिंगटन डीसी में अमेरिकी सेना की 250वीं वर्षगांठ पर आयोजित परेड में भाग लेने के लिए पाकिस्तान के सेना प्रमुख और अब फील्ड मार्शल जनरल असीम मुनीर को आमंत्रित किया गया। इस बार की परेड में कुछ पुराना फौजी साजो-सामान 1991 के बाद पहली बार दिखा- 6,600 सैनिक, 28 अब्राम टैंक, 28 ब्रैडली लड़ाकू वाहन, 28 स्ट्राइकर वाहन, चार पैलाडिन सेल्फ-प्रोपेल्ड हॉवित्ज़र तोपें, आठ मार्चिंग बैंड, 24 घोड़े, दो खच्चर और एक कुत्ता - कुछ रॉकेट लॉन्चर और प्रिसिजन-गाइडेड मिसाइलें भी। इस रोज़ डोनाॅल्ड ट्रंप का 79वां जन्मदिन भी था।
इस बीच, सांसदों के सभी सातों प्रतिनिधिमंडल स्वदेश लौट आए और उन्होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात की। लंदन, पेरिस, रोम, कोपेनहेगन, बर्लिन और ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के मुख्यालय की यात्रा पर गए भाजपा के रविशंकर प्रसाद ने लौटने पर संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने और उनके सहयोगियों ने इन सभी यूरोपीय शहरों में अपने वार्ताकारों को आतंकवाद के प्रति भारत की ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ बारे बताया। प्रसाद ने कहा ः ‘हमने साफ कर दिया कि हम पाकिस्तान के लोगों के खिलाफ नहीं। समस्या पाकिस्तान के जनरलों से है, जिनसे खुद वहां के लोग भी तंग आ चुके हैं।’ लगता है प्रसाद खबरों को ध्यान से नहीं पढ़ रहे हैं। दो दिन पहले ही वाशिंगटन डीसी में, यूएस सेंट्रल कमांड के शक्तिशाली कमांडर जनरल माइकल ई कुरिल्ला ने यूएस सीनेट सशस्त्र सेवाएं समिति को बताया कि पाकिस्तान एक ‘खास साझेदार’ है, खासकर आतंकवाद विरोधी मोर्चे पर।
कुरिल्ला ने आगे कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि यह कोई बाइनरी स्विच जैसा होना चाहिए कि यदि हम भारत के साथ संबंध रखें, तब हमें पाकिस्तान के साथ (संबंध) नहीं रखने चाहिए।’ इससे कुछ दिन पहले, कुरिल्ला के बॉस, डोनाॅल्ड ट्रम्प ने भी घोषणा की थी, ‘पाकिस्तान के पास बहुत मजबूत नेतृत्व है। कुछ लोगों को यह नागवार लगता है जब मैं ऐसा कहता हूं, लेकिन हुआ यही है, और उन्होंने उस युद्ध को रोक दिया। मुझे उन पर बहुत गर्व है। क्या मुझे श्रेय मिल रहा है? नहीं। वे मुझे किसी भी चीज़ का श्रेय नहीं दे रहे।’
तब भारत और अमेरिका के बीच प्रसिद्ध ‘रणनीतिक साझेदारी’ का क्या बना? इसके अलावा, क्या भारत और पाकिस्तान के बीच हमें सख्त नापसंद ‘हाइफ़नेशन’(दोनों को बराबर पलड़े में तोलना) फिर से बन गया है? बड़ा सवाल, बेशक, यह कि दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अभी भी ऐसे मुल्क के मोहपाश में क्यों फंसा है, जिसकी अर्थव्यवस्था गहरे संकट में है (आईएमएफ से 25 ऋण ले रखे हैं), जो कहने भर का लोकतंत्र है और भारत में आतंकी हमलों का मास्टरमाइंड बना हुआ है, जिसमें नवीनतम कांड पहलगाम में हुआ दुर्दांत हमला है। निश्चित रूप से, काली दाल में फिर कड़छी चल रही है। कम-से-कम 2008 के बाद से, जब भारत और अमेरिका ने परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे,जहां अमेरिकी भारत के साथ साझेदारी के लिए उत्सुक रहे वहीं ऐसे ही भारतीय भी। यह सिर्फ इस बारे नहीं था कि भारत कितने बोइंग विमान खरीदेगा, हालांकि इससे रिश्तों में मदद मिल सकती थी। अमेरिका ने व्यापारिक आदान-प्रदान पर टिकी साझेदारी से परे वास्तविक संबंध की कीमत को पहचाना, जिसमें भारत को चीन के प्रति-संतुलन के रूप में देखा जाने लगा।
लेकिन ट्रम्प ने आपसी व्यापार में लेन-देन में बराबरी रखने की अपनी प्रवृत्ति के साथ दुनिया में उलटफेर कर दिया। पाकिस्तान को एक नयी राह की तरह देखा जाने लगा है। हिलेरी क्लिंटन ने 2012 में पाकिस्तान को लेकर दुविधा को बहुत भावुकता से व्यक्त किया था ‘बात यह नहीं कि आपने पिछवाड़े में कितने सांप पाल रखे हैं, और क्या वे आपको नहीं डंस सकते’। एक बार फिर मामला है कि आप अमेरिकियों को एक-दो सांप ऐसे सौंप दें कि वे आपकी सपेरागिरी के कायल हो जाएं।
यहां तीन कारण हो सकते हैं कि क्यों पश्चिमी देश पाकिस्तान के मोहपाश में फंसने को तैयार हैं :पहला, आतंकियों पर पाकिस्तान का निरंतर प्रभाव उसे एक कीमती मित्र बनाता है। हाल ही में, पाकिस्तान ने मोहम्मद शरीफुल्लाह 'जफ़र' सहित इस्लामिक स्टेट के पांच लड़ाके अमेरिकियों को सौंपे, जो 2021 में काबुल हवाई अड्डे के पास बम हमले में शामिल थे, जिसमें 13 अमेरिकी सैनिक मारे गए थे। तथ्य तो यह कि भले ही 'जफ़र' इस काबुल हमले का मास्टरमाइंड रहा हो, लेकिन वह आईएस के शीर्ष नेतृत्व में नहीं था। उसे सौंपकर मुनीर अपने लिए समय और प्रभाव खरीद रहे हैं- पाक की अमेरिका को लेकर रणनीति का अभिन्न अंग, जो दशकों कारगर रहा।
कुरिल्ला द्वारा पाकिस्तान की प्रशंसा के तुरंत बाद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की दो प्रमुख समितियों में पाकिस्तान को अहम ओहदों पर को नामित किया गया- तालिबान पर प्रतिबंध समिति की अध्यक्षता और आतंकवाद विरोधी समिति का उपाध्यक्ष। जब अमेरिका को अहसास हो गया है कि पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान की उपयोगिता भले कामों में बरतने की अपेक्षा नुकसान पहुंचाने वालों से निबटने में कहीं अधिक है,तो क्यों न राक्षस को कुछ-कुछ निवाला डालते रहें ताकि वह काबू में रहे? दूसरा, जब कोई ट्रंप को ना कह दे या बात काटे, तो यह उनके बेहद अहंकारी स्वभाव को रास नहीं आता। इसलिए जब उन्होंने और उनके सहयोगियों ने 10 मई को भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम के लिए ‘मध्यस्थता’ करने की घोषणा की, तब भारत ने यह बात नकार दी ट्रंप यह बात 12 बार और दोहरा चुके हैं)। हकीकत यह कि भारतीय वायु सेना ने 10 मई को 11 पाकिस्तानी हवाई अड्डों पर हमला करके करारा संदेश दिया, जिसने पाकिस्तानियों और अमेरिकियों, दोनों में,‘ईश्वरीय भय’ पैदा कर दिया, और संघर्ष जल्द खत्म हो गया। ट्रंप जो भी कहेें, उसे नकारने की जहमत क्यों उठाएं?
तीसरा, पाकिस्तान खुद को पीड़ित दिखाने में माहिर है, यह कोई छोटी विडंबना नहीं। भारत को घिनौनी रंगत देने वाले अभियान को आगे बढ़ाकर कि ‘भारत सिंधु नदी के पानी को रोक 23 करोड़ लोगों को प्यासा मारना चाहता है’), वह वैश्विक सहानुभूति पाने की कोशिश में है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद वाशिंगटन व लंदन में बिलावल भुट्टो की मुहिम का उद्देश्य यही था। आतंकी हमलों में पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान की भूमिका बारे सवालों को इस प्रश्न से दरकिनार कर दिया जाता है कि ‘सबूत कहां है?’ पाकिस्तान आतंकवाद के साथ अपने अनुभवों की तुलना मुंबई आतंकी हमले में अजमल कसाब जैसा ठोस सबूत पाने से करना चाहता है, जिसमें लगभग 170 लोग मारे गए थे।
अमेरिका की सहानुभूति दिख रही है। जनरल कुरिल्ला ने कहा कि 2024 में पाकिस्तान को करीब 1,000 आतंकी हमले सहने पड़े, जिसमें 700 सुरक्षाकर्मी मारे गए और 2,500 घायल हुए। सवाल है कि अब आगे क्या। जनरल मुनीर ने अमेरिकियों को शीशे में उतार लिया है, लिहाजा अमेरिकी सेना की परेड में उनकी उपस्थिति, उन्हें कुछ मांगें और करने का मौका देगी। पाक-अमेरिका व्यापार में शून्य-टैरिफ का अनुरोध किया जाएगा; इससे भी महत्वपूर्ण है कि यह सुझाव दिया जाएगा कि अमेरिका भारत पर सिंधु जल संधि बहाल करने और वार्ता फिर से शुरू करने को दबाव डाले। ग्रीष्म ऋतु आगे लंबी और कठिन होने वाली है। हो सकता है भारत के पास कुछ पत्ते हों, लेकिन उसे यह सीखना होगा कि उन्हें सीने से लगाकर न रखे। पाकिस्तान की बेईमानी बारे अपना आकलन साझा करें, लेकिन इस बात पर घमंड न करे कि वह बड़ा और बेहतर दक्षिण एशियाई राष्ट्र है।
बेहतर होगा कि अपने अंदर झांकें और अपने चाणक्य या फिर सन त्ज़ु को फिर पढ़ें। जिनके मुताबिक ‘अपने दोस्तों को हमेशा करीब रखना अच्छा विचार है, लेकिन दुश्मनों को और भी नज़दीक रखें।’
लेखिका ‘द ट्रिब्यून’ की प्रधान संपादक हैं।
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