Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

दूसरों को कामयाब-समृद्ध बनाने का सुख

अंतर्मन
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

वास्तविक कामयाबी स्वयं कामयाब होने में नहीं है, बल्कि अपनी कामयाबी के साथ-साथ दूसरों को कामयाब कर उनके चेहरों पर मुस्कराहट लाने में है।

जीवन में कोई भी कार्य असंभव नहीं होता। हर कार्य को एक शैली में ढल कर, ढाल कर संभव बनाया जा सकता है । शैली को किस तरह विकसित किया जाए? यह व्यक्तिगत रूप से व्यक्ति पर निर्भर करता है। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में 24 घंटे मिलते हैं, इन्हीं 24 घंटों का बुद्धिमता से प्रयोग कर कुछ लोग कीर्तिमान बना देते हैं, वहीं कुछ लोग मिट जाते हैं और उनके अस्तित्व का अवशेष तक शेष नहीं रहता। प्रत्येक व्यक्ति खास बनना चाहता है। वह चाहता है कि सदियों बाद भी लोग उसे पहचानें, जानें और उसकी कार्यशैली के उदाहरण दिए जाएं।

हमारे इर्द-गिर्द अनेक ऐसी प्रणालियां हैं जिन्हें अपनाकर व्यक्ति अपने जीवन को अति उत्तम बना सकता है। ऐसी ही एक प्रणाली है- शुहारी। इस शब्द की मूल जड़ें मार्शल आर्ट, नोह थियेटर, टी सेरेमनी और कला से जुड़ी हुई हैं। यह प्रणाली जापानी है। शुहारी केवल एक शब्द भर नहीं है, अपितु इसमें पूरा जीवन दर्शन छिपा हुआ है। जिस व्यक्ति ने अपने जीवन को इस शब्द के अनुरूप बना लिया, वह कामयाब हो जाता है।

Advertisement

शुहारी को शु-हा-री तीन खंडों में विभक्त किया हुआ है। इनमें पहला खंड ‘शु’ अत्यंत प्रारंभिक है। ठीक उसी तरह जिस तरह गुरु अपने शिष्यों को शिक्षा प्रदान करता है। विद्यार्थियों को पाठशाला में मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है। केवल कुछ ही शिष्य और विद्यार्थी ऐसे होते हैं जो पहले खंड को भली-भांति समझकर दूसरे खंड में प्रवेश करते हैं। वहीं कई विद्यार्थी और शिष्य दूसरे खंड में पहुंच जाते हैं लेकिन आधे-अधूरे रूप में। दूसरे खंड ‘हा’ में विद्यार्थी, व्यक्ति या शिष्य निपुण हो जाता है। वह स्वयं को इतना काबिल बना लेता है कि अब वह आत्मनिर्भर होकर कुछ कार्यों, विधियों या इनोवेशन को अपने दम पर निर्मित करने का निर्णय ले लेता है।

इसके बाद अंतिम प्रक्रिया यानी कि ‘री’ आती है। इसके अंतर्गत व्यक्ति अपने ज्ञान, कला और कार्यों को इतना अधिक विकसित और उन्नत कर चुका होता है कि दुनिया उसके कार्यों को पहचानने लगती है, सराहने लगती है। वास्तव में ‘री’ की इस तीसरी प्रक्रिया के अंतर्गत ही व्यक्ति कामयाबी और समृद्धि का स्वाद चखता है। यही स्वाद इन दिनों भारतीय संस्था एजुकेट गर्ल्स ने चखा है। इस संस्था को वर्ष 2025 के रेमन मैग्सेसे पुरस्कार के लिए चुना गया है। रेमन मैग्सेसे एशिया का प्रतिष्ठित पुरस्कार है। यह पुरस्कार फिलीपींस के पूर्व राष्ट्रपति रेमन मैग्सेसे के सम्मान में प्रदान किया जाता है। ‘भारतीय संस्था एजुकेट गर्ल्स’ दूरदराज के गांवों में बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ाने के लिए कार्य करती है। यह संस्था लड़कियों के परिवारों में फैली रूढ़िवादिता को दूर करने में निर्णायक भूमिका निभा रही है। इस संस्था ने अनेक लड़कियों को निरक्षरता के शाप से मुक्त किया है।

यह संस्था अपनी स्थापना से लेकर अभी तक 20 लाख लड़कियों को शिक्षा के प्रकाश से आलेकित कर चुकी है। इस संस्था का उद्देश्य आने वाले समय में एक करोड़ की संख्या को पार कर शिक्षा की जोत को विश्व के कोने-कोने तक प्रसारित करना है। इस संस्था की स्थापना वर्ष 2007 में लंदन स्कूल आॅफ इकनाॅमिक्स से स्नातक सफीना हुसैन ने की थी। वे उस समय सैन फ्रांसिस्को में कार्यरत थीं। उन्होंने भारत में लड़कियों की निरक्षरता की चुनौती को देखते हुए भारत लौटने का निर्णय लिया। यह निर्णय लेने का उनका उद्देश्य यही था कि लड़कियों को शिक्षा की ओर प्रेरित किया जाए और उन्हें स्कूलों तक पहुंचाया जाए। जब लड़कियां स्कूलों तक पहुंचकर शब्दज्ञान सीखेंगी, पढ़ेंगी तो उनकी अपनी सोच और क्षमता का विकास होगा। बस इसी सोच ने ‘शु’ का निर्माण किया। जब सफीना को कदम बढ़ाने पर नई जानकारी मिली तो फिर ‘हा’ में उन्हांेने कदम रखा। आखिर एक ही कार्य में लगन और मेहनत से लगे रहने के कारण वे लड़कियों को स्कूल तक लाने में कामयाब होती रहीं।

आखिरकार उनके नाम-काम को पहचान मिली और वे आकाश का एक ऐसा तारा बनकर उभरीं जो अमावस्या में भी अपनी रोशनी से भटके हुओं को मार्ग दिखाता है। ‘री’ अंतिम चरण मंे पहुंचकर उनके कार्यों का डंका विश्व में बजने लगा। आज इस संस्था की अनेक लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त कर उच्च पदों पर पहुंच गई हैं। इस संस्था की सीईओ गायत्री नायर लोबो का कहना है कि, ‘शिक्षा हर लड़की का मौलिक और अंतर्निहित अधिकार है। यह प्रतिष्ठित पुरस्कार उस परिवर्तनकारी बदलाव को मान्यता देता है जो सामाजिक और व्यवस्थागत बाधाओं को दूर करता तभा सुलभ शिक्षा को बढ़ावा देता है।’

‘शुहारी’ प्रणाली के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति मेहनत, लगन और हिम्मत से इतिहास पलटने की सामर्थ्य रखता है। ‘शुहारी’ प्रणाली की वास्तविक कामयाबी स्वयं कामयाब होने में नहीं है, बल्कि अपनी कामयाबी के साथ-साथ दूसरों को कामयाब कर उनके चेहरों पर मुस्कराहट लाने में है। ठीक उसी तरह, जिस तरह ‘भारतीय संस्था एजुकेट गर्ल्स’ ने अनेक लड़कियों के सपनों को पंख दिए हैं और उन्हें आसमान में खुली उड़ान भरने के लिए तैयार किया है।

Advertisement
×