पुष्परंजन
दिल्ली से कीव की दूरी कोई साढ़े चार हज़ार किलोमीटर की है। लगभग 11 घंटे की फ्लाइट। पूर्वी यूरोप का प्रमुख औद्योगिक नगर कीव, हाईटेक शिक्षा का अधिक्रेंद्र है, और यूक्रेन की राजधानी। काला सागर और सी ऑफ आज़ोव के 2782 किलोमीटर तट पर बसे इस देश को रूसी, ‘यूक्रेन’ से नहीं जानते। रशियन उच्चारण है, ‘उक्रेनिना’। सात देशों से घिरे, चार करोड़ 34 लाख की आबादी वाले यूक्रेन के पश्चिम में हैं- पोलैंड, स्लोवाकिया और हंगरी। उत्तर में बेलारूस, दक्षिण-पश्चिम में माल्दोवा व रोमानिया, और पूर्वी सीमा पर है रूस। इस समय पूरी दुनिया की निगाहें यूक्रेन पर हैं। वर्ल्ड एयर शो सिंगापुर में हो रहा है, चर्चा के केंद्र में है यूक्रेन। एशिया-पैसेफिक के अमेरिकी कमांडर जनरल केनेथ एस. विल्सबाख़ सिंगापुर में बयान देते हैं, ‘चीन इस बहाने ताइवान, हांगकांग, साउथ चाइना सी और भारत में खुराफ़ात करेगा, जो दरअसल उसका नहीं है।’
एक आम भारतीय का यूक्रेन से क्या लेना देना? मुख्य वजह भारत-यूक्रेन की सहकार वाली कंपनियों में काम कर रहे कोई दो हज़ार भारतीय, और 18 हज़ार छात्र हैं। देशवासी चाहते हैं कि 20 हज़ार भारतीय, युद्ध के समय यूक्रेन में रहने का जोखिम न लें, वहां से सुरक्षित लौट आयें। हमारे दूतावास ने यूक्रेन के 24 क्षेत्रीय इलाक़ों में रह रहे भारतीयों से ऑनलाइन फार्म भरने को कहा है, ताकि एयरलिफ्ट की सूरत में उन्हें मॉनिटर किया जा सके। इससे पहले, 15 फरवरी, 2022 को एक एडवाइजरी जारी कर कीव स्थित भारतीय दूतावास ने कहा है कि हमारे जिन नागरिकों, ख़ासकर छात्रों की उपस्थिति यहां आवश्यक नहीं, वो हालात ठीक होने तक, कुछ समय के वास्ते यूक्रेन छोड़ सकते हैं। मगर, कोई यह नहीं पूछ रहा कि दिल्ली-कीव रूट पर विमान संचालन करने वाली कंपनियों ने टिकटों के दाम दोगुने क्यों कर दिये?
क्षेत्रफल की दृष्टि से फ्रांस और जर्मनी से भी बड़ा, छह लाख वर्ग किलोमीटर में फैला यूक्रेन 24 अगस्त, 1991 को सोवियत संघ से मुक्त हो चुका था। दिसंबर, 1991 में भारत ने इस देश को मान्यता दी थी, और जनवरी, 1992 में उभयपक्षीय कूटनीतिक संबंध स्थापित हुए। यूक्रेन ने एशिया का पहला कूटनीतिक मिशन फरवरी 1993 में दिल्ली में खोला। 2005 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम यूक्रेन गये थे, और उनके समकक्ष प्रेसिडेंट विक्टर यानूकोविच दिसंबर, 2012 में भारत आये थे। इसके बाद दोनों तरफ से मंत्रिस्तरीय विजिट बहुत सारे हैं। इसके आर्थिक परिणाम को तलाशेंगे, तो 2021 तक भारत-यूक्रेन के बीच 2 अरब 80 करोड़ डाॅलर का उभयपक्षीय व्यापार दिखता है।
यूक्रेन से हम कृषि, धातु, प्लास्टिक, पोलिमर जैसे उत्पाद आयात करते हैं। फार्मास्यूटिकल्स, मशीनरी, केमिकल्स, फूड प्रोडक्ट भारत से वहां निर्यात करते हैं। रैनबैक्सी, डॉ. रेड्डी लेबोरेटरी, सन ग्रुप जैसी कंपनियों के कार्यालय कीव और दूसरे शहरों में दिखेंगे। इंडियन डांस, योग, कुछ अन्य कला संबंधी गतिविधियां यूक्रेन के 22 बड़े शहरों में दिखेंगी। एक्शन-रोमांस वाली भारतीय फ़िल्म ‘विनर’ की शूटिंग यूक्रेन में हुई थी, बाहुबली-टू के विजुअल इफेक्ट्स वहीं से लिये गये थे। 2017 में ए.आर. रहमान के ‘99 सांग्स’ यूक्रेन में ही फिल्माए गये थे। हम इन बातों से खुश हो सकते हैं, कि तीन दशकों में इतना सारा कुछ कर लिया।
यूक्रेन से चीन के कूटनीतिक संबंघों के भी तीस साल पूरे हो रहे हैं। यूक्रेन से उसका उभयपक्षीय व्यापार 17.36 अरब डॉलर का है। तुलना कर लीजिए कि हम उसके मुक़ाबले उभयपक्षीय व्यापार में कहां खड़े हैं। राष्ट्रपति शी जिनपिंग यूक्रेन मामले पर मुखर हैं, विश्वगुरु मोदी चुप हैं। उसका सबसे बड़ा कारण कश्मीर है। भारत न तो क्रीमिया के अलगाववाद को समर्थन दे सकता है, न दोनबास को। बहुपक्षीय विवाद में भारतीय कूटनीति ने चुप रहकर तमाशा देखना ही सही समझा है।
बुधवार को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की उनके फ्रांसीसी समकक्ष इमैनुअल मैक्रों से लंबी बातचीत हुई। शी यूक्रेन मामले पर कूटनीतिक प्रस्ताव चाहते हैं। दो हफ्ते पहले व्लादीमिर पुतिन पेइचिंग आये थे, पांच हज़ार शब्दों के साझा बयान में शी का सबसे अधिक इस पर ज़ोर था कि रूसी सीमा तक नाटो अपने नये सदस्यों का विस्तार न करे। 30 सदस्यीय नाटो को अमेरिका नियंत्रित करता है, इससे दुनिया वाकिफ है। 1991 में यूक्रेन, नाटो की अनुषंगी संस्था, ‘नार्थ अटलांटिक कॉपरेशन कौंसिल’ का सदस्य बना। 2008 में नाटो मेंबरशिप एक्शन प्लान के तहत यूक्रेन ने आवेदन किया था। 2017 में यूक्रेन ने इस वास्ते संविधान संशोधन भी किया है।
शी ने मैक्रों से कहा कि शांति प्रयास के लिए 2014 का ‘नोरमेंडी फार्मेट’ और 2015 में मास्को-कीव के बीच हुए ‘मिंस्क समझौते’ पर अमल की आवश्यकता है। इन दोनों प्रस्तावों पर पहल करने की दिशा में फ्रांस और जर्मनी ने अहम भूमिका अदा की थी। मार्च, 2014 में यूक्रेन के आधिपत्य वाले क्रीमिया में मतसंग्रह हुआ था, जिसमें 95 प्रतिशत लोगों ने रूस में शामिल हो जाने की इच्छा जताई थी। इसके तुरंत बाद क्रीमिया के कुछ नेताओं से विलय पत्र पर हस्ताक्षर कराकर रूस ने सैनिक कार्रवाई शुरू कर दी थी। इस घटना की प्रतिक्रिया में जी-8 के नेताओं ने रूस को अपने खेमे से बाहर कर दिया था। उसी साल अप्रैल में उद्योग से संपन्न दोनबास में यूक्रेन से अलग होने का अभियान आरंभ रूसी शह पर होने लगा। दोनबास में युद्ध मंे 14 हज़ार लोग मारे गये थे।
दोनबास को शांत करने के वास्ते उत्तरी फ्रांस के शहर नोरमेंडी में रूस, यूक्रेन, फ्रांस और जर्मनी के नेताओं ने 6 जून, 2014 को बैठक की थी। शांति के वास्ते प्रारूप तैयार हुआ, मगर आठ वर्षों में इसके नतीज़े सामने नहीं आ सके। इस साल पेरिस में 26 जनवरी, 2022 को, और बर्लिन में 10 फरवरी, 2022 को भी ‘नोरमेंडी फार्मेट’ की दो बैठकें हुई, दोनों बेनतीज़ा। सबसे बड़ा कारण रूसी शह पर यूक्रेन से अलग हो रहे इलाके हैं, साथ में दोनबास का ‘दोनेत्स्क पीपुल्स रिपब्लिक’ और ‘ऑटोनॉमस रिपब्लिक ऑफ क्रीमिया’ की मान्यता का सवाल है। मगर, दोनबास वाले क्षेत्र में ही ‘लुहान्स्क पीपुल्स रिपब्लिक’, अलगाववाद की राह पर है।
लगता है, पुतिन ने ‘यूक्रेन तेरे टुकड़े होंगे’ की क़सम खा रखी है। रूसी फार्मूला यह है कि पृथकतावादी तेवर वाले इलाके में पहले जनमत संग्रह कराओ, फिर सेना के समर्थन से एक झटके में नाभि-नाल का नाता तुड़वा दो। इन अलगाववादी वजहों से ‘नोरमेंडी फार्मेट’ या फिर ‘मिंस्क समझौते’ पर प्रगति के आसार कम दिख रहे हैं। जो बाइडेन इस समय युद्ध का नगाड़ा इसलिए पीट रहे हैं, ताकि अमेरिका में बेरोज़गारी के मुखर सवाल को दूसरी दिशा में मोड़ा जा सके। कुछ भी कहिए, काला सागर में कूटनीतिक सुनामी लाने के अपने-अपने फायदे हैं।
लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नयी दिल्ली संपादक हैं।