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जलवायु संकट का भावनात्मक सेहत पर असर

जलवायु परिवर्तन केवल एक पर्यावरणीय समस्या या आर्थिक चुनौती नहीं है। यह एक मानसिक स्वास्थ्य संकट भी है जो दुनिया के सबसे गरीब लोगों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। मौसम संबंधी आघातों को रोकने के लिए जलवायु परिवर्तन से...

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जलवायु परिवर्तन केवल एक पर्यावरणीय समस्या या आर्थिक चुनौती नहीं है। यह एक मानसिक स्वास्थ्य संकट भी है जो दुनिया के सबसे गरीब लोगों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। मौसम संबंधी आघातों को रोकने के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटना महत्वपूर्ण है।

जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ता तापमान दुनियाभर के लाखों लोगों के भावनात्मक स्वास्थ्य को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि तापमान, आर्द्रता और धूप जैसी मौसम की स्थितियां आपके मूड, ऊर्जा और संज्ञानात्मक कार्यों पर असर डाल सकती हैं। अत्यधिक तापमान अक्सर मूड को खराब कर देता है, जबकि मध्यम, धूप वाली स्थितियां मूड को बेहतर बना सकती हैं। कुछ लोग जिनमें वृद्ध और मनोविकार वाले लोग शामिल हैं, मौसम परिवर्तनों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं। संभवतः चिड़चिड़ापन, माइग्रेन और अनिद्रा जैसे लक्षणों का अनुभव कर सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम की घटनाएं मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं, जिससे तनाव, चिंता, डिप्रेशन और पीटीएसडी (पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) बढ़ सकता है। सोशल मीडिया डेटा के एक बड़े अध्ययन से पता चला है कि अत्यधिक गर्मी में लोग काफी ज्यादा चिड़चिड़े हो जाते हैं। शोधकर्ताओं ने 157 देशों के 1.2 अरब सोशल मीडिया पोस्ट की समीक्षा की। ये सभी 2019 के दौरान पोस्ट किए गए थे। उन्होंने 65 अलग-अलग भाषाओं में लिखे गए पोस्ट का विश्लेषण करने के लिए उन्नत कंप्यूटर प्रोग्राम का इस्तेमाल किया और प्रत्येक पोस्ट को उसके सकारात्मक या नकारात्मक होने के आधार पर स्कोर दिया।

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शोधकर्ताओं ने लोगों के मूड स्कोर का मिलान स्थानीय मौसम के आंकड़ों से किया ताकि यह देखा जा सके कि तापमान का लोगों की ऑनलाइन बातों पर क्या असर पड़ा। इसके नतीजे दुनिया भर में स्पष्ट और एक जैसे थे। जब तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला गया, तो कम आय वाले देशों में लोगों के पोस्ट लगभग 25 प्रतिशत ज्यादा नकारात्मक हो गए। अमीर देशों में नकारात्मकता लगभग 8 प्रतिशत बढ़ गई। चीनी विज्ञान अकादमी के विज्ञानी जियांगहाओ वांग ने कहा, सोशल मीडिया डेटा हमें विभिन्न संस्कृतियों और महाद्वीपों में मानवीय भावनाओं की एक अभूतपूर्व झलक प्रदान करता है। यह डेटा हमें जलवायु परिवर्तन के भावनात्मक प्रभावों के पैमाने को मापने में मदद करता है जो पारंपरिक सर्वेक्षणों से संभव नहीं है। यह हमें वास्तविक समय में यह जानकारी देता है कि तापमान दुनिया भर में मानवीय भावनाओं को कैसे प्रभावित करता है।

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शोधकर्ताओं ने विश्व बैंक के आंकड़ों का उपयोग करके देशों को आय स्तर के आधार पर अलग किया, जिसकी विभाजन रेखा प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 13,845 डॉलर निर्धारित की गई। इस सीमा से नीचे के देशों में गर्मी के प्रति भावनात्मक प्रतिक्रियाएं धनी देशों की तुलना में अधिक प्रबल थीं। यह इस बात को ध्यान में रखते हुए तर्कसंगत है कि अमीर देशों में अधिक एयर कंडीशनिंग और बेहतर स्वास्थ्य सेवा है। चरम मौसम से निपटने के लिए उनके पास मजबूत बुनियादी ढांचा है।

इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले एमआईटी के सिकी झेंग ने कहा कि हमारे अध्ययन से पता चलता है कि बढ़ता तापमान न केवल शारीरिक स्वास्थ्य या आर्थिक उत्पादकता के लिए खतरा है बल्कि यह दुनियाभर में लोगों की दैनिक भावनाओं को भी प्रभावित करता है। शोधकर्ताओं द्वारा प्रयुक्त एआई सिस्टम दर्जनों भाषाओं में लिखे गए पाठ के भावनात्मक लहजे को समझ सकता है, जिससे विभिन्न संस्कृतियों और देशों में भावनाओं की तुलना करना संभव हो जाता है।

शोधकर्ता वर्तमान परिस्थितियों तक ही सीमित नहीं रहे। उन्होंने जलवायु मॉडल का उपयोग करके यह अनुमान लगाया कि 2100 तक अत्यधिक गर्मी मानवीय भावनाओं को कैसे प्रभावित कर सकती है। यह मानते हुए कि लोग समय के साथ उच्च तापमान के साथ कुछ हद तक अनुकूलित हो जाएंगे। उन्होंने अनुमान लगाया कि सदी के अंत तक गर्मी के कारण भावनात्मक कल्याण 2.3 प्रतिशत तक बिगड़ जाएगा। अमेरिका में टल्सा स्थित सस्टेनेबल अर्बनाइजेशन लैब के वैज्ञानिक निक ओब्राडोविच ने कहा की हमारे वर्तमान अध्ययन और पिछले अध्ययनों के निष्कर्षों से यह स्पष्ट है कि मौसम वैश्विक स्तर पर भावनाओं को बदलता है। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे मौसम और जलवायु बदलते हैं, व्यक्तियों को अपनी भावनात्मक स्थिति पर पड़ने वाले झटकों के प्रति अधिक लचीला बनने में मदद करना समग्र सामाजिक अनुकूलन का एक महत्वपूर्ण घटक होगा।

दरअसल, यह शोध जलवायु परिवर्तन के बारे में सोचने के बिल्कुल नए रास्ते खोलता है। ज्यादातर अध्ययन शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों, आर्थिक क्षति या पर्यावरणीय विनाश पर केंद्रित हैं। लेकिन यह शोध दर्शाता है कि बढ़ता तापमान हमारे मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर भी असर डालता है, जिससे एक तरह का भावनात्मक प्रदूषण पैदा होता है जो पूरे ग्रह में फैल जाता है। इस अध्ययन की कुछ सीमाएं हैं। सोशल मीडिया उपयोगकर्ता सभी का पूरी तरह से प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। छोटे बच्चे और बुजुर्ग लोग अन्य आयु समूहों की तुलना में इस प्लेटफार्म का कम उपयोग करते हैं। विडंबना यह है कि ये लोग अक्सर अत्यधिक गर्मी के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं, जिसका अर्थ है कि गर्म मौसम का वास्तविक भावनात्मक प्रभाव अध्ययन में दर्शाए गए प्रभाव से भी अधिक गंभीर हो सकता है।

यह शोध एमआईटी की सस्टेनेबल अर्बनाइजेशन लैब की ग्लोबल सेंटीमेंट प्रोजेक्ट से आया है। वैज्ञानिकों ने अपना पूरा डेटासेट अन्य शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध कराया है। उम्मीद है कि यह समुदायों और नीति-निर्माताओं को एक ऐसी दुनिया के लिए तैयार होने में मदद करेगा जो लगातार गर्म होती जा रही है। झेंग ने कहा, हमें उम्मीद है कि यह संसाधन शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और समुदायों को एक गर्म होती दुनिया के लिए बेहतर ढंग से तैयार होने में मदद करेगा।

जैसे-जैसे वैश्विक स्तर पर तापमान बढ़ता जा रहा है, इन भावनात्मक प्रभावों को समझना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। अध्ययन बताता है कि जलवायु परिवर्तन केवल एक पर्यावरणीय समस्या या आर्थिक चुनौती नहीं है। यह एक मानसिक स्वास्थ्य संकट भी है जो दुनिया के सबसे गरीब लोगों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। मौसम संबंधी आघातों को रोकने के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटना महत्वपूर्ण है।

लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।

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