हैदराबाद में हाल ही में ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी’ के नाम से प्रसिद्ध समाज सुधारक संत रामानुजाचार्य की 120 किलो से बनी मिश्रित धातुओं की मूर्ति स्थापित की गई है। मंदिरों के लिये दान देने वालों की अपने देश में कोई कमी ही नहीं है। एक हजार साल पूर्व छुआछूत और जाति आधारित बुराइयों के खिलाफ बिगुल बजाने वाले रामानुज की स्मृति में मूर्ति का निर्माण बेमिसाल है।
जैसे हर चार पायों वाली वस्तु को चारपाई नहीं कहा जाता, वैसे ही सवा मन का भार रखने वाली हर वस्तु या पदार्थ को भी सवामनी नहीं कहा जाता। सवामनी सिर्फ उस प्रसाद के लिये सुनिश्चित शब्द है जो मन्नत पूरी होने पर या भक्तों द्वारा निमित्त किये जाने पर मंदिरों में चढ़ाया जाता है। अपनी आस्थाएं भी कमाल की हैं। हम अपने ईष्ट के समक्ष अपनी मांग रखते हैं और साथ ही ऐलान करते हैं कि यदि इच्छापूर्ति हो गई तो पांच, ग्यारह या सवा सौ रुपये का प्रसाद चढ़ाऊंगा। ज्यादा संपन्न भक्त सवामनी करने का संकल्प लेते हैं।
सरकारी नौकरी की प्राप्ति के लिये हर जन प्रयासरत है। धौंस से, धोखाधड़ी से, घूस से, चापलूसी से… बस मिल जाये। चाहे चतुर्थ श्रेणी की ही क्यों न हो। इसके लिये कोई व्रत रख रहा है, कोई मन्नत मांग रहा है, कोई पूजा-अर्चना कर रहा है। इन्हीं दिनों एक किस्सा बहुत प्रसिद्ध हुआ कि एक व्यक्ति जब किसी मूर्ति के सामने खड़ा होकर नौकरी-नौकरी पुकारने लगा तो मूर्ति ने कहा, खाली हाथ आ गये, नारियल, केला, धूपबत्ती, प्रसाद-दक्षिणा कुछ नहीं लाये तो वह व्यक्ति बोला, हे देव! आप अपना कर्म करो, फल की इच्छा न रखो।
कहते हैं कि किसी व्यक्ति की तपस्या से प्रसन्न होकर देव उसे अमृत देते हैं लेकिन वह मना कर देता है। देव भी अचम्भे में पड़ जाते हैं और पूछते हैं, क्यों वत्स, तुम अमृत पीने से इंकार क्यों कर रहे हो? वह आदमी बोला, प्रभु! अभी-अभी तो गुटखा खाए हैं। इसी प्रकार एक व्यक्ति मंदिर में गया। बाहर बैठे भिखारी ने उसकी ओर अपना कटोरा बढ़ाते हुये कहा, बेटा तेरी जोड़ी को सलामत रखे। आदमी बोला, पर भैया अभी तो मेरी शादी भी नहीं हुई। भिखारी उसे समझाने के लहजे में बोला, बेटा! मैं तो तेरे जूतों की जोड़ी की बात कर रहा हूं।
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एक बर की बात है अक नत्थू नै मंदिर मैं जाकै धोक मारी अर दानपेट्टी मैं पांच का सिक्का घाल कै मन्नत मांगी! मन्नै दो-चार बढ़िया से दोस्त दे दे। दोस्त तो मिलगे पर थे सारे छांकटे। नत्थू नै उलाहना दिया तो आवाज आई—पांच के सिक्के मैं तो इसे ही बाग्गड़-बिल्ले मिलैंगे।