तंत्र की धरपकड़ और हलकान जन
सहीराम
नहीं जी नहीं, कोई चोर-उचक्का या गिरहकट नहीं भागा जा रहा है कि पब्लिक से ऐसी आवाजें उठ रही हों। यह हल्ला तो दिल्ली में मचा है। इधर वहां पेट्रोल से चलने वाले पंद्रह साल पुराने और डीजल से चलने वाले दस साल पुराने वाहनों की खूब धरपकड़ मची। इतनी अगर चोर उचक्कों, गिरहकटों और बलात्कारियों को पकड़ने की खातिर मचती तो दिल्ली की पब्लिक बड़ी राहत की सांस लेती। लेकिन इस धरपकड़ से तो खुद दिल्ली की जनता ही हलकान बतायी जा रही है। वैसे दिल्ली बीच-बीच में चोरी-चकारी, लूट-खसोट और बलात्कार जैसे अपराधों के लिए बदनाम होती रही है। कभी उसे अपराध नगरी का तमगा मिला तो कभी बलात्कार की राजधानी होने का। वैसे तो शासक कोई तमगा हासिल करने के लिए बड़ी मेहनत किया करते हैं, पर यह ऐसा तमगा है कि इसे हटाने के लिए उन्हें मेहनत करनी पड़ती है। जैसे कि कभी यह कहा जाता है कि बाहर से आने वाले लोग यह अपराध करते हैं, तो कभी किसी और बहाने से यह तमगा उतार फेंकने की कोशिश की जाती है। यूं भी यह दिल्ली की खासियत बतायी गयी है कि उसे बसने के लिए पहले उजड़ना पड़ता है। वह सात बार ऐसे ही नहीं उजड़ी है। बसने के लिए ही उजड़ी है।
खैर, दिल्ली उजड़ने और फिर बसने के लिए ही नहीं जानी जाती। इधर वह प्रदूषण के लिए भी खूब जानी जाती है। देश का कोई दूसरा शहर इस मामले में उसका मुकाबला नहीं कर सकता है। इस मामले में तो उसका मुकाबला अंतर्राष्ट्रीय स्तर का ही होता है। इतने बड़े मुल्क की राजधानी होने के लिए यह रुतबा उसका बनता भी है। बहरहाल, इस प्रदूषण के लिए सर्दियों के शुरू में पंजाब-हरियाणा के पराली जलाने वाले किसानों को दोषी ठहराया जाता है और उसके बाद वाहनों को। केजरीवाल के जमाने में ऑड-ईवन की बड़ी चर्चा हुई। खूब मजाक भी बना था। अब सरकार बदली है तो कुछ नया होना ही चाहिए। नहीं वैसे नया नहीं जैसे मोहल्ला क्लिनिक आरोग्य मंदिर हो गए। अब तो पुरानी गाड़ियों को सड़कों से हटाने की ही मुहिम है। सबसे पहले तो पेट्रोल पंपों को आदेश मिला कि इन्हें तेल ही मत दो। पर दिल्ली वाले जुगाड़ी ठहरे। जब वे दारू लेने के लिए हरियाणा बॉर्डर आ सकते हैं तो गाड़ियों में तेल डलवाने गुड़गांव, फरीदाबाद और नोएडा क्यों नहीं जा सकते। सो धरपकड़ शुरू हुई। न रहेंगी गाड़ियां। न रहेगा धुआं। फिर ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को भी तो नया उछाल मिलेगा। यह प्रदूषण दूर करने का नुस्खा तो पता नहीं कितना कारगर है, लेकिन ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की मंदी दूर करने का रामबाण नुस्खा जरूर है। नहीं क्या?