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सरपट दौड़ रही बातें बेसिर पैर की

तिरछी नज़र

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शमीम शर्मा

कुछ लोगों का अपनी बात को ऊपर रखने में कोई मुकाबला नहीं होता। एक बार एक चौधरी के लंब्रेटा स्कूटर में कुछ खराबी आ गई। वो गली में उसे किक मारने में जुटा हुआ था। खिच... खिच... खिच, पर स्कूटर स्टार्ट होने में ही नहीं आ रहा था। चौधरी पसीनम पसीन हो गया था और मन ही मन सोच रहा था कि लोग भी क्या सोचते होंगे कि इतना पुराना खटारा स्कूटर लिये घूम रहा है। इतने में उसका पड़ोसी अरोड़ा साब आ गया। चौधरी को स्कूटर के साथ उलझा देख स्वाद लेने के अंदाज में बोला- चौधरी साब स्कूटर तो गया काम से। सुनते ही चौधरी आग बबूला होते हुए बोला- तेरी भी तो छोरी भाजगी थी पिछले साल। अरोड़ा साब हैरानी से बोले- चौधरी ये क्या बात हुई? चौधरी समझाने के लहजे में बोला- बात में से ही बात निकलती है। वो थारा नुकसान था, यो म्हारा।

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राजनीति भी बेसिर-पैर की राह पर चल निकली है। जो आरोप हैं ही नहीं, वे गढ़े जा रहे हैं। एक-दूसरे पर लांछन और बिन बात की निराधार टिप्पणियां तीर बनकर एक-दूसरे को घायल करने पर तुली हैं। बात तुलने की करें तो देखने में आ रहा है कि अब नेताओं को सिक्कों में तोलने और नोटों की मालाएं पहनाने की प्रथा खत्म हो चुकी है। लड्डुओं से तोला जाता है और फूल पहनाये जाते हैं। अंत में वे लड्डू समर्थकों के पेट में जा पहुंचते हैं पर सिक्कों के थैले और नोट मालाएं नेताओं के घर जाया करती थीं। इस बहाने एकाध को नोट व सिक्के गिनने का काम मिल जाया करता। पर अब वह भी नदारद। बेरोजगारी नहीं बढ़ेगी तो और क्या होगा।

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नेताओं को लड्डू या नोटों की बजाय उनके कारनामों से तोला जाना चाहिये। पर सभ्य और संभ्रान्त लोगों ने भी नेताओं को परखना-तोलना बंद कर दिया है। रही बात आम आदमी की तो वह तो इतना भर देखता है कि कौन उन्हें आखिरी घड़ी में ज्यादा मालामाल करता है। उनके लिये दो-चार बड़े नोट और एकाध बोतल ही मुफ्त में मिल जाना मालामाल होना है।

सीसीटीवी कैमरे सिर्फ गली व चौक-चौराहों पर लगाना ही काफी नहीं है। ये एक-एक नेता के पीछे लगे होने चाहिये ताकि जनता जान सके- नेताओं का असली चरित्र क्या है।

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एक बर की बात है अक एक बटेऊ पैदल चालते-चालते सात कोस दूर अपणी सुसराल पहांेच ग्या। अचानक थके-हारे बटेऊ तैं देखते ही उसकी सास बूज्झण लाग्गी- बेट्टा पाहयां चाल कै आया सै के? बटेऊ बोल्या- ना पहल्यां तीन कोस तो पाहयां चाल्या अर फेर नहर की पटड़ी पै चढ लिया था। फेर उसकी सालियां नैं आटे मैं लोगड़ मिला कै रोटी बणा कै उसकी थाली मैं धर दी। भूखा मरता वो सारी रोटी खा ग्या। एक साली बोल्ली- हे राम! यो तो लोगड़ भी खा ग्या तो दूसरी बोल्ली- मरै सै भूखा, यो तो सौड़ नैं भी खा ज्यैगा।

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