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मितरांच खड़क पई, खुल गई कलई

व्यंग्य/तिरछी नज़र
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सहीराम

देखो जी, भारत-पाकिस्तान और ईरान-इस्राइल का युद्धविराम तो चल रहा है, पर ट्रंप और मस्क का युद्धविराम टूट गया। यह युद्धविराम ट्रंप ने नहीं कराया था। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि इस युद्धविराम को लेकर उन्होंने कभी दावा नहीं किया कि उनकी पहल पर हुआ है। अगर यह युद्धविराम उन्होंने करवाया होता तो अब तक दस-बीस बार तो दावा कर ही चुके होते। वे कोई काम करें और दावा न करें, ऐसा हो ही नहीं सकता। दुनिया को पता चलना चाहिए कि ट्रंप ने यह काम किया है। दावा करने से ही दावा बनता है-नोबल पाने का। इसके बाद कोई न कोई असीम मुनीर तो मिल ही जाता है- अनुमोदन करने के लिए। कहते हैं कि बीस बार तो वे भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराने का ही दावा कर चुके।

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लेकिन यह वाला युद्धविराम तो मस्क ने एकतरफा ढंग से ही किया था। शायद इसीलिए टूट गया। इससे ट्रंप के नोबल पुरस्कार जीतने पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ना चाहिए। वैसे भी एकतरफा इश्क तो चल जाता है, पर एकतरफा युद्धविराम कैसे चलता। सो टूट गया। वैसे भारत-पाकिस्तान या फिर ईरान-इस्राइल कभी दोस्त नहीं रहे। पर ट्रंप और मस्क तो गहरे दोस्त रहे हैं। पर वो जो पंजाबी गाना है न अब कुछ वैसा ही हो गया-मितरांच खड़क पई।

वरना वो भी क्या दिन थे साहब कि जब मस्क के चुन्नू-मुन्नू व्हाइट हाउस में उधम मचाए रहते थे। लोग कहते थे कि यह सब मस्क के उन तीन सौ मिलियन डॉलर की माया है, जो उन्होंने ट्रंप के चुनाव के लिए चंदे के रूप में दिए थे। यह दोस्ती बिल्कुल जय-वीरू टाइप की लग रही थी कि तभी एक बिल को लेकर मितरांच खड़क पै गयी। मस्क ने कहा मैंने इसे चुनाव जिताया। अब मैं इसे बर्बाद कर दूंगा, सत्ता से हटा दूंगा। मैं नयी पार्टी बनाउंगा। उधर ट्रंप ने कहा कि यह साला नशेड़ी है। देश की सब्सिडी का सारा पैसा खा गया। यह बात उन्होंने बिल्कुल वैसे कही जैसे उन्होंने जेलेंस्की से कहा था कि तुम हमारा तीन सौ अरब खा गए। फिर बोले मैं इसे तबाह कर दूंगा। अमेरिका से निकाल दूंगा। जेल में डाल दूंगा इसे फिर दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ेगा, जहां से यह आया है।

देखो जी, हमारे यहां तो ऐसा होता नहीं है। किसी बिल-विल को लेकर हमारे यहां तो सहयोगी पार्टियां ही कुछ नहीं कहती, चंदा देने वाले सेठों की बात दूर। ट्रंप को ऐसे चंदा लेना भी नहीं चाहिए था। हमारी इलेक्टोरल बॉन्ड जैसी व्यवस्था कर लेते तो ज्यादा अच्छा रहता। किसी को पता ही नहीं चलता। हमारे यहां नेताओं को चंदा देने वाले सेठ लोग बड़े भले होते हैं। मस्क की तरह लबड़- लबड़ बिल्कुल नहीं करते। इसीलिए नेताओं और सेठों के बीच यारी यूं टूटती नहीं।

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