देश के प्रति कर्तव्यों की याद भी दिलाता पर्व
देश जब भी मुश्किल में आया तो देशवासी जाति, धर्म और क्षेत्र की सोच से हटकर राष्ट्रीय हितों के लिये एकजुट हुए हैं। सवाल यह है कि सामान्य दिनों में भी हमारी यह सोच क्यों कायम नहीं रह पाती है। हमारा स्वतंत्रता दिवस हमें ऐसे ही मुद्दों पर आत्ममंथन के लिये प्रेरित करता है।
पिछले दिनों जापान से खबर आई कि एक टोल प्लाजा पर मशीन खराब होने के कारण हजारों लोगों से टोल टैक्स नहीं नहीं लिया जा सका। जापानी वाहन टोल से गुजरे और अपने गंतव्य स्थल पहुंचने के बाद हजारों लोगों ने अपने निजी प्रयासों से लाखों रुपये सरकारी खजाने में जमा कराये। सही मायने में ऐसी सोच के नागरिकों वाले देश को कभी कोई आंच नहीं आ सकती। जापानियों की राष्ट्रभक्ति व समर्पण की दुहाई पूरी दुनिया में दी जाती है। सचमुच, एक अनुकरणीय राष्ट्रीय चरित्र है जापानी लोगों का। अक्सर जापान की एक घटना का उल्लेख पूरी दुनिया में किया जाता है कि एक श्रमिक आंदोलन के दौरान जापानी श्रमिकों ने हड़ताल करने या छुट्टी पर जाने के बजाय उलटा औद्योगिक उत्पादन ही बढ़ा दिया। इस तरह से आंदोलनकारी श्रमिक बढ़े उत्पादन से वस्तुओं के मूल्यों में गिरावट लाकर उद्यमियों का मुनाफा घटा देते हैं। निश्चय ही किसी भी देश का निर्माण भौगोलिक सीमा और सरकार से ही नहीं होता बल्कि नागरिकों के राष्ट्रीय चरित्र से होता है। जिसका उदाहरण जापानियों की अटूट राष्ट्रभक्ति है। जिससे हमें प्रेरणा लेनी चाहिए।
जापानियों की उत्कृष्ट राष्ट्रभक्ति हमें आत्ममंथन के लिये प्रेरित करती है कि क्या हमारी भी सोच ऐसी ही है? क्या हम अपने राष्ट्रीय दायित्वों को ईमानदारी से निभाते हैं? क्या हमारी प्राथमिकताएं व्यक्ति व परिवार से उठकर राष्ट्र के प्रति होती हैं? पंद्रह अगस्त हमें ऐसे ही तमाम सवालों पर विचारने करने का मौका देता है। हमें सोचने को मजबूर करता है कि हम राष्ट्र के प्रति अपने दायित्वों का पालन कितनी ईमानदारी से कर रहे हैं। सदियों की गुलामी के दंश को करोड़ों भारतीयों ने झेला और महसूस किया कि आजादी की कीमत क्या होती है। स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाने वाली पीढ़ी अब कमोबेश विदा लेने के कगार पर है। ऐसे में हमें अपनी आजादी के अहसासों को गंभीरता से महसूस करना चाहिए। ऐसे कोई काम नहीं करने चाहिए, जिससे हमारी आजादी खतरे में पड़ती हो। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के कई मामले उजागर हुए थे, जो हमारी गहरी चिंता का विषय होना चाहिए। हमारे देश की ऐसी काली भेड़ों की निगरानी हर देशवासी का दायित्व बनता है।
निस्संदेह, पंद्रह अगस्त हर साल उत्साह व गरिमा से देश-विदेश में मनाया जाता है। स्वतंत्रता दिवस की वेला में जहां तक निगाह जाती है तिरंगे ही तिरंगे नजर आते हैं। दरअसल, आजादी की पौन सदी के सफर को ‘अमृत महोत्सव’ के रूप में मनाने का निर्णय सरकार स्तर पर लिया गया था। जिसके चलते तिरंगे से जुड़े कई प्रावधानों का सरलीकरण किया गया है। ताकि तिरंगा हर भारतीय के अहसासों में हो और हर समय सहज पहुंच में हो। सही मायने में तिरंगा हमारे राष्ट्रीय सरोकारों की गहरी अभिव्यक्ति है। हर भारतीय को तिरंगे के गहरे अहसासों का बोध होना भी जरूरी है। यह वह प्रतीक है जिसके लिये हजारों लोगों ने बलिदान दिये। जिन्हाेंने आजादी की आकांक्षाओं के प्रतीक इस तिरंगे को फहराने पर गोलियां खाईं। स्वतंत्रता सेनानियों को जेलों में सजा काटनी पड़ी व यातनाएं सहनी पड़ीं। तिरंगे के अस्तित्व में आने का लंबा इतिहास है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की तमाम बड़ी घटनाएं इसके स्वरूप से जुड़ी हुई हैं। जो हमें उस कालखंड की भी याद दिलाता है जब इसे फहराना गंभीर अपराध माना जाता था। फहराने पर यातनाओं को सहना पड़ता था।
निस्संदेह, तिरंगे ने राष्ट्रीय आंदोलन में राष्ट्रीयता के गहरे रंग भरे। बलिदानियों के त्याग व तपस्या से इसके रंग चटक हुए। इस तिरंगे ने जाति, धर्म, वर्ग, क्षेत्र और भौगोलिक सीमाओं को तोड़कर देश को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया। पूरे देश में एक स्वत:स्फूर्त स्वतंत्रता आंदोलन जगाने में तिरंगे की निर्णायक भूमिका रही। लोग इस तिरंगे की शान में मर मिटे। ऐसे में जब भी हम जहां भी तिरंगा फहरायें, बलिदानियों के आत्मीय अहसासों का हमें बोध होना चाहिए। इसका फहराना गरिमामय होना चाहिए और तिरंगे का रखरखाव भी। निस्संदेह, तिरंगे के सम्मान से नई पीढ़ी को इस बात का अहसास होगा कि आज हम जिस खुली हवा में सांस ले रहे हैं, उसमें तिरंगे की क्या भूमिका रही। आजादी के बाद पैदा हुई पीढ़ी को यह भी अहसास कराना है कि तिरंगे ने जोश पैदा करके फिरंगी सरकार की चूलें हिला दी थीं और देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया।
निस्संदेह, लोकतांत्रिक देश में राजनीतिक दलों में मतभेद व विचारों का टकराव होना स्वाभाविक है। लेकिन यह विरोध राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल नहीं होना चाहिए। कई बार राष्ट्रीय दलों के नेताओं के ऐसे बयान सामने आते हैं जो देश के दुश्मनों के मंसूबों को हवा देते हैं। ऐसे विषयों की संवेदनशीलता को महसूस करते हुए विवादस्पद मुद्दों पर बयानबाजी नहीं की जानी चाहिए। अतीत गवाह है कि जब-जब हमारी राष्ट्रीय एकता कमजोर हुई, विदेशी शक्तियां हमारी संप्रभुता को चुनौती देने लगीं। ऐसे में इस पर्व को राजनीतिक-वैचारिक मतभेदों को भुलाकर उल्लासपूर्वक मनाना ही शुभकर है। भले ही हम किसी भी राजनीतिक सोच से जुड़े हों लेकिन राष्ट्रीय हितों के मुद्दे पर हमारा सुर एक ही होना चाहिए। निस्संदेह, तिरंगा हमें एकता के सूत्र में पिरोता है। हमें बताता है कि हम कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक एक ही हैं। जम्मू-कश्मीर के स्वरूप में आये बदलाव के बाद वहां तिरंगा फहराया जाना इस बात का हमें गहरे तक अहसास कराता है कि राष्ट्रीयता के मायने क्या हैं। केसर की घाटी में तिरंगे की मोहक व स्वतंत्र उपस्थिति देशभक्ति के सरोकारों को उजागर कर देती है।
इसमें दो राय नहीं कि किसी भी देश की भौगोलिक सीमाएं व संसाधन ही सिर्फ देशभक्ति का पर्याय नहीं होते। जब तक देशभक्ति का जज्बा हमारी रगों में नहीं दौड़ता, कोई राष्ट्र पूर्णता हासिल नहीं कर सकता। इस पूर्णता में हमारे राष्ट्रीय प्रतीक निर्णायक भूमिका निभाते हैं। तिरंगा भी इन्हीं राष्ट्रीय अहसासों की सरस अभिव्यक्ति ही है। आजादी के पर्व को महज छुट्टी के रूप में देखने वाले लोगों को इस बात का अहसास होना चाहिए कि आजादी को हासिल करने के लिये 1857 से 1947 के बीच हुए स्वतंत्रता संग्राम में हजारों देशवासियों ने कितनी बड़ी कुर्बानी दी।
बीते साढ़े सात दशक में हमारी उपलब्धियां बताती हैं कि इन सालों में हमने आज जो हासिल किया, उसे हम गुलामी के सैकड़ों सालों में भी हासिल नहीं कर पाये। इस आजादी को अक्षुण्ण बनाये रखना हमारा पुनीत कर्तव्य है। आसमान में शान से लहराता तिरंगा हमें बताता है कि हम एक स्वतंत्र, संप्रभु और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतिनिधि देश के नागरिक हैं। इस तिरंगे की शान हमें बनाये रखनी है। यह सुखद है कि देश जब भी मुश्किल में आया देश के लोग जाति, धर्म और क्षेत्र की सोच से हटकर राष्ट्रीय हितों के लिये एकजुट हुए हैं। सवाल यह है कि सामान्य दिनों में भी हमारी यह सोच क्यों कायम नहीं रह पाती है। हमारा स्वतंत्रता दिवस हमें ऐसे ही मुद्दों पर आत्ममंथन के लिये प्रेरित करता है।