क्षमा शर्मा
हाल ही में गर्भ परीक्षण करने वाली एक कम्पनी ने महिलाओं पर एक विज्ञापन बनाया। इसमें एक पारंपरिक छवि वाली महिला थी, जिसकी गोद में एक बच्ची थी। जबकि उसके बरक्स एक ऐसी लड़की थी, जो प्रेग्नेंसी को अपने करिअर में बाधक मान रही थी। गोद में बच्ची उठाए इस महिला को हेय दृष्टि से देख रही थी। यहां तक कि जब उस बच्ची की दूध की बोतल गिर गई, तो उसने उसे उठाया तक नहीं। लेकिन बाद में जब उसे पता चला कि बच्ची को गोद में उठाए कोई साधारण औरत नहीं, एसएसपी है तो वह उसे आश्चर्य से देखने लगी। विज्ञापन का कुल संदेश यह था कि करिअर के साथ बच्चे भी पाले जा सकते हैं। प्रेग्नेंसी या अच्छी मां बनना स्त्री की कमजोरी नहीं, उसकी ताकत है। हम जानते हैं कि यह कम्पनी एक ऐसा किट बेचती है, जिससे आप घर बैठे ही पता कर सकते हैं कि गर्भ है कि नहीं। औरतों के लिए यह एक बड़ी सुविधा है। इसीलिए कम्पनी वुमैनहुड और मदरहुड को सेलिब्रेट कर रही है। इस तरह वह अधिक से अधिक महिलाओं को अपना ग्राहक बना रही है।
इस विज्ञापन की बहुत से लोग, खास तौर से स्त्रियां आलोचना कर रही हैं। कहा जा रहा कि यह औरतों की पारंपरिक छवि को पोस रहा है।
इन दिनों लड़कियों की जैसी तस्वीरें पेश की जाती हैं, उसमें यदि ऐसी एक बच्ची से मिलें जो अकेली जंगलों में घूमती हो, जानवर जिसके दोस्त हों, गांव में एक पूरे मकान की मरम्मत कर सकती हो। या कि ऐसी बच्ची जो बचपन से ही मां के कामों में हाथ बंटाती हो। जिसे सिलाई में दिलचस्पी हो। इन दोनों में से किसे पसंद करेंगे।
पहली तरह की लड़की का नाम कैरोलिन, और दूसरी है मार्टिन। ये दोनों पिछले सत्तर साल से फ्रांस के बच्चों में बहुत लोकप्रिय चरित्र रहे हैं। हालांकि, वैचारिक रूप से दोनों एक-दूसरे की विरोधी हैं। पहली बार कैरोलिन पात्र को 1953 में पाठकों के लिए पेश किया गया था। लड़कों जैसी वेशभूषा में रहने वाली इस लड़की के आठ जानवर भी दोस्त थे। ये थे दो बिल्लियां, तीन कुत्ते, एक भालू, शेर और चीता। इस चरित्र को देख, दूसरे प्रकाशक ने मार्टिन नाम की लड़की का चरित्र गढ़ा, जो कैरोलिन के ठीक विपरीत था। इन दोनों चरित्रों से संबंधित किताबें लाखों में बिकती थीं। अनेक भाषाओं में इनका अनुवाद भी हुआ।
कैरोलिन अकेली कहीं भी जा सकती थी, उसकी बिल्लियां कार चलाती थीं। उसके दोस्त जानवर दो पैरों पर चलते थे। कपड़े पहनते थे। जितने भी काम मनुष्य कर सकता है, सारे काम कर सकते थे। कैरोलिन दस साल की थी, मगर एक तरह से इनकी मां थी। वह इन्हें हर बात सिखा सकती थी, जो चाहे सो कर सकती थी। वह एक घर खरीद सकती थी, इतिहास की अध्यापिका बन सकती थी, या एक जहाज लेकर आर्कटिक पर जा सकती थी। यहां यह बताना जरूरी है कि कैरोलिन का चरित्र एक पिता ने अपनी लड़की सिमोन के आधार पर गढ़ा था। जबकि इन दिनों लड़कियों की बढ़ोतरी में पिता की भूमिका को खलनायक की तरह चित्रित किया जाता है।
सिमोन के पिता पियरे प्रोब्स्ट फौज में रह चुके थे। बहुत-सी घटनाएं उन्होंने कैरोलिन के लिए अपनी बेटी सिमोन के अनुभव से चित्रित की थीं। जानवरों के चित्र भी ऐसे बनाए थे, जो भावनाओं से भरे थे। पियरे ने बीस साल तक कैरोलिन को तरह-तरह से चित्रित किया। फिर बहुत दिनों तक कुछ नहीं बनाया। 1980 से 2007 तक उन्होंने दोबारा कैरोलिन की तीस एलबम और बनाईं। लेकिन लोगों को लगा कि अब इनमें वह बात नहीं, जो पुरानी कैरोलिन में थी। कैरोलिन को लड़कियों से ज्यादा लड़के पसंद करते थे। उसमें आज की औरत के तमाम गुण मौजूद थे। वह आत्मनिर्भर थी। अपने निर्णय खुद ले सकती थी।
वहीं मार्टिन तमाम तरह के घरेलू कामों से जुड़ी थी। जब कैरोलिन तमाम तरह के साहसिक काम करती, उस समय मार्टिन मां के साथ केक बना रही होती थी। वक्त के साथ उसकी वेशभूषा में कुछ बदलाव भी हुए। बहुत से स्त्रीवादी संगठन मार्टिन के चरित्र को नापसंद करते थे, इसकी शिकायत भी करते थे, मजाक भी उड़ाते थे, लेकिन यह चरित्र लोगों में लोकप्रिय रहा। आज तक मार्टिन के चरित्र से जुड़ी किताबें बिक रही हैं, जबकि कैरोलिन सीरीज की पुस्तकें अब छपना बंद हो चुकी हैं। दोबारा इनके प्रकाशन की सम्भावना नहीं है।
सोचने की बात यह है कि फ्रांस का वह समाज जहां स्त्रीवादी आंदोलन इतना ताकतवर रहा है, वहां ऐसा कैसे हुआ है कि उस लड़की का चरित्र आज तक लोकप्रिय है, जिसे इन दिनों दुनियाभर में पिछड़ी स्त्री के रूप में चित्रित किया जाता है। लड़कियों को कैरोलिन बनने की शिक्षा दी जाती है, मार्टिन नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि जो बच्चियां कैरोलिन को पढ़ते हुए बड़ी हुईं, जब उन्होंने अपनी बच्चियों और पोतियों के भविष्य को देखा, तो उन्होंने कैरोलिन के मुकाबले मार्टिन का चयन किया। यानी कि जो हम करते हैं, अपनी बच्चियों को उससे अलग कुछ कराना चाहते हैं। जो आजादी हमें पसंद है, वह हम अपनी बच्चियों को नहीं देना चाहते। इसके अलावा पश्चिमी समाज ने परिवार को जिस तरह से तोड़ा-मरोड़ा है, औरतों और आदमियों बीच में बहुत से ऐसे मोर्चे खोले हैं, जो परिवार को कभी चलने ही नहीं देंगे, उससे बिखरेंगे, शायद लोग अब उससे दूर भागना चाहते हैं। मगर एक बार जो व्यवस्थाएं टूट जाती हैं, उन्हें दोबारा जोड़ना, जीवित करना बहुत मुश्किल होता है।
फ्रांस की तरह की आवाजें दुनिया में बहुत-सी जगहों पर सुनी जा रही हैं। अमेरिका में ट्रेडिशनल वाइफ मूवमेंट सिर उठा रहा है। क्योंकि एक तो लोग विचार की एकरसता से ऊब जाते हैं। वहीं देखने में यह भी आता है कि किसी भी विचार की तेजस्विता साठ-सत्तर साल में ढलने लगती है। जो विचार या विमर्श शुरू में हाय बचाओ चिल्लाते आते हैं, वे ताकत पाने पर गुर्राने लगते हैं। वे अपने से इतर दूसरे विचार या राय को कोई जगह नहीं देते।
जिस तरह से मार्टिन लोकप्रिय है, हो सकता है ऊपर वर्णित विज्ञापन भी लोगों को पसंद आए।
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।