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भागे तानाशाह मगर चैन कहां

व्यंग्य/तिरछी नज़र
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सहीराम

दुनिया में यह कैसी भागमभाग मची है जी! कल बांग्लादेश से शेख हसीना भागी थी। अब सीरिया से असद भाग गए। इसके कुछ दिन पहले ही श्रीलंका से राजपक्षे भागे थे। पाकिस्तान वालों का पता नहीं चलता कि वे भागते हैं कि भगाए जाते हैं। वैसे तो सभी भगाए ही जाते हैं, चाहे शेख हसीना हो, चाहे असद हो या फिर राजपक्षे। लेकिन उन्हें जनता भगाती है। पाकिस्तान वालों को उनकी जगह कुर्सी पर आने वाले ही भगाते हैं, जैसे कह रहे हों कि भागो यहां से नहीं तो फांसी पर लटका दूंगा। वैसे ही जैसे नवाज शरीफ को मुशर्रफ ने भगाया था। खैर, अपने यहां की अच्छी बात यह है कि यहां से ठग ही भागते हैं। वैसे तो जो दूसरे भाग रहे हैं, उन्हें भी जनता ठग ही मानती रही है।

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तो जी सुना है कि इधर गुजरात में कोई छह हजार करोड़ रुपये ठग कर भूपेंद्र झाला नाम का एक और ठग भाग लिया। गुजरात वाले साल दो साल में ऐसे कारनामे कर ही लेते हैं। जी नहीं, बात सिर्फ नीरव मोदी या मेहुल चौकसी की नहीं हो रही, संदेसरा की भी हो रही है और अब तो झालाजी भी आ गए हैं। इन ठगों की अच्छी बात यह है कि वे छोटी-मोटी ठगी नहीं करते हैं। वे चिंदी चोर नहीं हैं। हजारों-करोड़ का बड़ा हाथ मारते हैं जमके। ताकि विदेशों में बैठकर ठीक-ठाक अपना गुजारा कर सकें-विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी की तरह।

खैर जी, इधर सीरिया से असद भाग गए हैं। थोड़े दिन पहले बांग्लादेश से शेख हसीना भागी थी। कहते हैं यह भी तानाशाह थे, वो भी तानाशाह थी। तानाशाहों के डर से पहले जनता भागती है और फिर जनता के डर से तानाशाह भागते हैं। अब भागकर तानाशाहों को तो कहीं न कहीं शरण मिल ही जाती है। बस जनता को ही राहत नहीं मिलती। अब बांग्लादेश को ही देख लो। बांग्लादेश की जनता को कहां राहत मिल रही है। नोबल पुरस्कार विजेता को गद्दी पर बिठाने के बावजूद मार-काट मच गयी न। जमाते इस्लामी जैसे कट्टरपंथियों को छूट मिलेगी तो यही होगा जी।

सीरिया की जनता को भी कहां राहत मिलने वाली है। असद को भगाकर जो आए हैं, हैं तो वे भी जिहादी ही। अल-कायदा से निकले हुए। कभी अफगानिस्तान में नजीबुल्लाह को फांसी पर लटकाए जाने से लोग खुश हुए थे। लेकिन उसके बदले मिले तालीबानी। अब असद के बदले कौन मिलेगा, क्या पता-कोई तालिबानियों और जमाते इस्लामी जैसा ही मिला तो फिर क्या मिला। इससे अच्छा तो श्रीलंका वाले ही रहे। वोट डालकर सरकार तो बना दी-चाहे वामपंथियों की ही बनायी।

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