अमिताभ स.
सयाने बताते हैं कि मंज़िल पर पहुंचने से पहले घर की चौखट से पहला कदम तो बाहर निकालना ही होगा। बिल्कुल वैसे ही जैसे डॉक्टर, वैज्ञानिक, इंजीनियर, चार्टेड एकाउंटेंट या कारोबारी बनने से बहुत पहले हरेक को कच्ची और पहली कक्षा से लाजमी पास होकर ही जाना पड़ता है। बावजूद इसके लोग सोचते- सोचते ही कितना समय गवां देते हैं कि छोटी शुरुआत करने से भला क्या होगा?
शुरुआत न करने की ऐसी बहानेबाजी मन में लाना व्यर्थ है। बड़ा शुरू करने की प्रतीक्षा करने के बजाय छोटी शुरुआत करना समझदारी है, ताकि बड़ा हासिल किया जा सके क्योंकि छोटी-सी शुरुआत भी बड़े परिणाम दिलाने का दमख़म रखती है। इसलिए बेशक छोटी शुरुआत करें, पर करें जरूर। जब हम छोटे-छोटे कामों की कड़ियों को सिलसिलेवार पिरो कर देखते हैं तो जान जाते हैं कि मामूली और छोटे कदम ही बड़ी सफलता की राह खोलते हैं। अर्जेंटीना के विख्यात फुटबॉल खिलाड़ी लियोनेल मेस्सी अक्सर बताते हैं, ‘मुझे रातोंरात सफलता हासिल करने में 17 साल और 114 दिन का समय लगा।’ तय है कि एक ही झटके में किसी को भी बुलंदी हरगिज हासिल नहीं होती।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव कहते हैं, ‘कोई आप से परफेक्ट होने की उम्मीद नहीं कर रहा है, पर क्या आप बेहतर होने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। बस यही मायने रखता है।’ रोमन दार्शनिक टाइटस लुकीशस कारस तो दो टूक कहते हैं कि कुछ नहीं से तो कुछ भी नहीं रचा जा सकता। तय है कि अच्छा अंत करने से ज्यादा आसान है, अच्छी शुरुआत करना। जाहिर है कि एक नन्हे-से बीज में सुंदर बगीचा बनाने का दमखम होता है।
एक बच्ची तट पर बैठी थी। समुद्र में लहरें उफान मार रही थीं। एक ऊंची लहर ने ढेरों मछलियां तट पर ला पटकी। तड़पती मछलियां देख बच्ची से रहा नहीं गया। वह एक-एक मछली उठाकर समुद्र में फेंकने लगी। तभी वहां से एक राहगीर गुजरा। वह बच्ची के करीब गया और बोला, ‘बेटी, ऐसा करने से भला क्या फर्क पड़ेगा? पूरे तट पर तो हजारों मछलियां तड़प रही हैं।’ बच्ची एक और मछली उठा कर समुद्र में फेंकते हुए बोली, ‘अंकल, इस एक को तो बड़ा फर्क पड़ेगा।’
यह भी उतना ही सच है कि अगर आप अपने काम से प्यार करते हैं, तो बेशक छोटी शुरुआत करें, आप निश्चित ही कामयाब होंगे। दूसरे शब्दों में कहें तो अपना छोटे से छोटा हर काम पूरे शौक से कीजिए। देखा गया है कि अपने शौक को ही पेशा बनाना सर्वश्रेष्ठ नतीजे देता है। इससे अपार सफलता, संतोष और खुशी मिलती है। अमेरिकी कारोबारी और लेखक हार्वे मैके तो इस हद तक कहते हैं, ‘कुछ ऐसा कीजिए, जिसे आप प्यार से करना चाहते हैं। फिर आपको ताउम्र काम करने की जरूरत नहीं रहेगी।’
इसीलिए बड़ा या छोटा जो भी काम करें, सदा लगन और समर्पण से करें। जाने-माने उद्यमी बिल गेट्स यूं समझाते हैं, ‘यदि क्षणिक सुख चाहते हैं तो गाने सुन लें, लेकिन अगर जिंदगी भर सुख चाहते हैं तो अपने काम में लग जाएं और उससे प्यार करें।’ और अगर काम पसंद का नहीं है तो किसी भी उम्र में बदलने में हर्ज नहीं है। जाहिर है कि किसी और की पसंद का काम करने का मतलब खुद के व्यक्तित्व को व्यर्थ जाने देना है। बार-बार समझाया जाता है कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता। बड़ा अवसर वही है, जहां आप अभी हैं। दिल से हर काम में इतना लीन हो जाना चाहिए कि खाना, पीना और आराम तक भूल जाएं। ऐसा करते-करते उन्नति के रास्ते खुलते जाते हैं और कामयाबी की रफ्तार बढ़ जाती है।
ओशो की राय है, ‘हर इनसान को अपने स्वभाव और अभिरुचि के मुताबिक काम करना चाहिए और जीना चाहिए। जैसे आपकी प्रकृति है, उसे स्वीकार करें। हर इनसान के अपने गुण हैं, अपनी शक्ति है, अपनी ऊर्जा है। अत: अपने सामर्थ्य को पहचानिए।’ जब हम अनमने काम में जुटे हों और करते-करते ऊब जाएं, तब खुद को ऐसे काम में व्यस्त कर लें, जिसे दिल से करना चाहते हैं। फिर आप ऐसी खुशी से लबालब हो उठेंगे, जो कभी आपकी हो नहीं सकती थी।
कहीं देर न हो जाए- कहते तो हैं, लेकिन जीवन की राह पर, न से कहीं भली है देर। हिंदी कहावत ‘देर आए, दुरुस्त आए’ के भी यही मायने हैं। स्वामी विवेकानंद यूं समझाते हैं, ‘सफलता हासिल न हो तो फिक्र मत करो। नाकामियों से सबक़ लेकर संघर्ष करते रहो।’ वे आगे कहते हैं, ‘उठो, जागो और तब तक न रुको, जब तक मंज़िल हासिल न हो जाए।’ हमेशा लंबी असफलता के बाद बड़ी सफलता मिलती ही है।
अगर अपनी क़ाबिलियत पर यक़ीन है और जुटे रहने का धैर्य, तो आशा मुताबिक़ क़ामयाबी को कोई छीन नहीं सकता। नेपोलियन बोनापार्ट सफलता पाने के लिए आपने काम करने के तरीकों में बदलाव की हिदायत देते हैं। हर नाकामयाबी के बाद इनसान खुद- ब-खुद बेहतर विकल्पों की ओर मुड़ता है और देर-सवेर शिखर को छू लेता है।