आम आदमी की अंतरात्मा जागती है तो उसका हृदय परिवर्तन माने दिल बदल होता है। लेकिन किसी नेता की अंतरात्मा जागती है तो इसकी परिणति ‘दल बदल’ के रूप में देखी जाती है। आत्मा अंतरात्मा का काम ही शरीर बदलने का है।
इस टाइप के नेताओं के शरीर में दिल, दिमाग, गुर्दे वगैरह होते हैं या नहीं। ये तो मुझे पक्के से नहीं पता लेकिन उनके अंदर एक बोलती अंतरात्मा जरूर होती है। ये बात चुनावी मौसम में उन्हीं के श्रीमुख सुनने को मिलती है। वह अंतरात्मा, जो पूरे पौने पांच साल सुप्तावस्था में पड़ी रहती है, चुनाव आते ही अचानक फड़फड़ाकर जाग उठती है और आवाज देने लगती है —उठो, जागो और लक्ष्य को प्राप्त करो। लक्ष्य कौन-सा बताने की आवश्यकता नहीं। शरीर के बरअक्स आत्मा में विश्वास रखने वाले ऐसे नेता अंतरात्मा की आवाज सुनकर भी भला कैसे सोए रह सकते हैं, उन्हें जागना ही पड़ता है। जिस नेता की अंतरात्मा चुनाव में भी न जागे उसे नेता कहलाने का कोई हक़ नहीं।
अच्छी नींद के लिए बेफिक्री और पौष्टिक आहार का विशेष महत्व होता है। नेताओं की अंतरात्मा सोए रहने के पीछे भी कहीं न कहीं उनकी बेफिक्री और आहार का ही योगदान है। आम आदमी को संतुलित और पर्याप्त भोजन के अभाव में गहरी नींद कम ही नसीब होती है बावजूद वह जरूरत पड़ने पर ब्रह्ममुहूर्त में जागने का अलार्म लगाकर सोता है जबकि नेता टिकट वितरण पूर्व का।
देश बिहार चुनाव के रंग में रंगा है। चुनावी बयार भी मौसमी बयार के मानिंद होती है। देश में कहीं भी चले असर हर कहीं देखा जा सकता है। इन दिनों अंतरात्मा जागरण के सर्वाधिक मामले बिहार में देखने को मिल रहे हैं और ग्यारह नवंबर तक देखने को मिलेंगे। ज्ञात रहे यह बात भीमकाय अंतरात्माओं पर ही लागू होती है। बोनसाई आत्माओं का क्या ही जागना और क्या ही सोना। बारह, तेरह को अंतरात्माएं चाय-पान करेगी। बाल-दिवस पर नतीजे आते ही बाल की खाल निकालने का काम शुरू हो जाएगा। इस बीच जिसकी अंतरात्मा जाग गई सो जाग गई अन्यथा फिर वही पौने पांच साल वाली नींद।
आम आदमी की अंतरात्मा जागती है तो उसका हृदय परिवर्तन माने दिल बदल होता है। लेकिन किसी नेता की अंतरात्मा जागती है तो इसकी परिणति ‘दल बदल’ के रूप में देखी जाती है। आत्मा अंतरात्मा का काम ही शरीर बदलने का है।
कुंभकरण छह महीने बाद जगा था। उसकी अंतरात्मा भी। उसने रावण को युद्धविराम की सलाह दी। सलाह ही दे सकता था कोई डोनाल्ड ट्रंप तो नहीं जो सीजफायर करवा देता। अन्यथा की स्थिति में कुंभकरण ने देश-धर्म के लिए खुशी-खुशी अपना बलिदान दिया। प्रश्न उठता है छह माह बाद जगे कुंभकरण को समझते देर न लगी कि उचित क्या है और क्या ही अनुचित फिर नेताओं की अंतरात्मा इतनी लंबी नींद निकालने के बाद भी यह विश्लेषण क्यों नहीं कर पाती? ये कैसी अंतरात्मा जो दीन-दुनिया हिल जाने पर करवट बदल खर्राटे मार सोती रहती है मगर कुर्सी हिलते ही जाग जाती है और कुर्सी मिलते ही फिर सो जाती है चाहे जितने ढोल-नगाड़े बजते रहें।