सौरभ जैन
‘ऐ भाई! क्या तुम कोरोना हो?’ हाड़-मांस के एक पुतले की तरह दिखने वाले एक शख्स से अमीरों की सोसायटी के चौकीदार ने पूछा। उसका बदन ठंड से कराह रहा था, शरीर जमा देने वाली ठंड में शब्द भी जम चुके थे, उसने न में गर्दन हिला कर अपने वायरस होने से इंकार कर दिया। न्यूज चैनलों पर प्राइम टाइम डिबेट देखने के आदी चौकीदार ने फ़ौरन ही अपना दूसरा सवाल दाग दिया। ‘तो तुम यहां फुटपाथ पर क्यों सो रहे हो, क्या तुम्हें नहीं पता कि रात 11 से सुबह 5 बजे तक कोरोना की तफरी का समय होता है?’ यह सुन वह शख्स बोला, ‘तो मैं कहां जाऊं?’ ‘अरे! तुम तो बोलते भी हो।’ चौकीदार खुश हो उठा। उसे रात काटने के लिए कंपनी जो मिल गई थी। उसने अपनी कुर्सी सोसायटी के गेट पर ही जमा ली। ‘अच्छा तो भाई समस्या यह है कि तुम्हारा घर नहीं है?’ ‘मेरा घर गांव में है, गांव में घर है लेकिन काम नहीं है इसलिए काम की तलाश मुझे शहर ले आई। यहां दिहाड़ी-मजदूरी का काम तो है लेकिन घर नहीं है।’ क्षणभर के लिए दोनों ही मौन हो गए। मौन को चीरते हुए चौकीदार ने सवालों की गठरी में से अगला सवाल उस शख्स के सामने रख दिया। ‘अच्छा तो तुम मजबूर हो?’ ‘मजबूर या मजदूर कुछ भी कह लो, क्या फर्क पड़ता है!’
अंधेरी रात में सुनसान राहों पर चर्चा आगे बढ़ी। चौकीदार का खुद को खुद ही बुद्धिजीवी साबित करने का क्रम जारी रहा। ‘भाई, इन दिनों टीवी पर इतने विज्ञापन आ रहे हैं, हर ब्रेक में गांवों की सूरत से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के आंकड़े दिखाए जा रहे हैं।’ ‘अब विज्ञापन वाले तो तंबाकू में केसर बता कर तंबाकू भी बेच देते हैं जबकि उससे होता तो कैंसर है।’ ‘वाह! तुम तो गरीबी में भी बढ़िया कटाक्ष कर लेते हो।’ ‘नहीं भाई, इस देश में गरीबी ही सबसे बड़ा व्यंग्य है।’ ‘दोस्त तुम बुरा मत मानना लेकिन तुम बड़े निराशावादी और नकारात्मक हो। क्या है न तुम व्हाट्सएप नहीं चलाते। तुम अपना नम्बर दो, मैं तुम्हें दो-चार समूहों में एड करवाता हूं फिर देखना सही इतिहास से लेकर राजनीति तक तुम कितने अपडेट हो जाओगे।’ ‘नहीं भाई, मैं ऐसे ही अच्छा हूं।’ कहते हुए शख्स ने मुंह बना लिया। आधी रात में चर्चा कार्यक्रम में शख्स की रुचि खत्म होते देख चौकीदार विषय बदलते हुए बोला ‘वैसे तुम्हारा नाम क्या है?’ ‘जी, मेरा नाम भारत है।’ ‘और तुम्हारी उम्र कितनी होगी? मेरे ख्याल से चेहरे से तुम लगभग 70 बरस के लग रहे हो!’ ‘अरे! भाई लग नहीं रहा, 70 बरस का हूं भी।’ ‘अच्छा यह तुम्हारे कपड़े जगह-जगह से फट रहे हैं।’ ‘वो क्या है न, यह पेट के यहां जो चिथड़ा है वह भुखमरी है, कंधे पर बेकारी, घुटने के वहां जो पायजामा फटा है वह भ्रष्टाचार है, पैरों की बेवाई नीतियों की विफलता का साक्षात् प्रमाण है!’ चौकीदार कुछ कहता, इतने में गेट पर गाड़ी का हॉर्न बजता है और चौकीदार की नींद खुल जाती है।