सहीराम
यार ये कोई कोरोना थोड़े ही हैं कि लौट-लौटकर वापस आएंगे, कभी दूसरी लहर बन कर और कभी तीसरी लहर बन कर। न ही यह किसी फिल्म का सीक्वल है। भैया यह तो घपले-घोटाले हैं। अगर ये यूं लौट- लौटकर आते रहे तो दूसरे घपले-घोटालों का नंबर कब आएगा। लेकिन देखो ये घपले-घोटाले वैसे ही लौट कर आ रहे हैं, जैसे कोरोना की दूसरी लहर आयी या जैसे किसी फिल्म का सीक्वल आया हो।
अब राफेल के घोटाले को ही ले लो। सरकार यह मानकर चुप बैठ गयी थी कि जैसे चुनाव निपटा, चलो यह घोटाला भी निपट गया। अदालत के सिर से भी बोझ सा हट गया था। मीडिया सरकार से यह कहकर राफेल के गुणगान में लग गया था कि आपने बहुत गुणगान कर लिया, अब हमें करने दो। लेकिन देखो यह लौट आया, बिन बुलाए मेहमान की तरह। कोरोना की तरह। बस अच्छी बात यही है कि इसका दोष हम पर नहीं लग सकता। यह सब फ्रांसिसियों का करा-धरा है। राफेल भी उन्हीं का, घोटाला भी उन्हीं का, हमारा बस सौदा था। अब जांच-वांच जो भी करनी होगी, वही करेंगे। हमें क्या? हम तो उसे कब का भुला चुके। हम बोफोर्स को याद कर लेंगे पर राफेल को याद नहीं करेंगे। क्या फायदा? खामख्वाह देशद्रोही कहलाएंगे।
राफेल घोटाले की तरह ही यह पेगासस जासूसी कांड भी लौट आया। जी हां, यह कांड भी कोई नया नहीं है। राफेल की तरह ही पुराना है, और अगर ठीक से याद हो तो उसके आसपास ही इसका भी एक बार हल्ला मचा था। लेकिन अब यह एक बार फिर लौट आया है। राफेल के लौटने पर तो चाहे कोई ज्यादा हल्ला न मचा हो, लेकिन इस पर खूब हल्ला मचा हुआ है। अच्छी बात यह है कि इस कांड के दुबारा उछलने में भी हमारा कोई हाथ नहीं है। अमरीकी-वमरीकी अखबार ही इसका भंडाफोड़ कर रहे हैं। बता रहे हैं कि भैया तुम्हारे तो पत्रकारों की जासूसी हो रही है। और तो और, खुद मंत्रियों की जासूसी हो रही है।
वैसे तो सरकार पत्रकारों से कह सकती है कि तुम्हें इस सम्मान के काबिल बना दिया, इसके लिए तुम्हें हमारा शुक्रगुजार होना चाहिए। लेकिन लगता है सरकार अभी यह श्रेय लेना नहीं चाहती। श्रेय लेते ही पूरा कांड गले पड़ जाएगा। अभी तो वह यही कह रही है कि हमें नहीं पता कि कौन यह जासूसी कर रहा है। हमारा इसमें कोई हाथ नहीं है। जबकि इस जासूसी साफ्टवेयर को बनाने वाले कह रहे हैं कि हम तो जी बस सरकारों को ही बेचते हैं यह साफ्टवेयर।
लेकिन सरकार सही रास्ते पर है। उसने यह भवसागर पार करने के लिए विकास नामक गाय की पूंछ पकड़ ली है। कह रही है कि देश को विकास की पटरी से उतारने के लिए यह कांड उछाला जा रहा है। इससे यह साबित हो गया कि विकास अभी भी मुद्दा है।