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पिघलते ग्लेशियर व सिकुड़ते बादलों के खतरे

शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जेट स्ट्रीम में गर्मी से प्रेरित बदलाव के कारण ध्रुवीय क्षेत्रों के आसपास के क्षेत्रों में काले बादल पीछे हट रहे हैं। नया अध्ययन हाल में देखी गई असाधारण गर्मी की पहेली को समझने...
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शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जेट स्ट्रीम में गर्मी से प्रेरित बदलाव के कारण ध्रुवीय क्षेत्रों के आसपास के क्षेत्रों में काले बादल पीछे हट रहे हैं। नया अध्ययन हाल में देखी गई असाधारण गर्मी की पहेली को समझने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और तत्काल जलवायु कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर देता है।

दुनिया के करोड़ों लोग स्वच्छ जल की आपूर्ति के लिए ग्लेशियरों पर निर्भर हैं। लेकिन ये महत्वपूर्ण जलस्रोत इस समय भारी दबाव में हैं। यदि वैश्विक तापमान अपने वर्तमान पथ पर जारी रहता है, तो दुनिया के 75 प्रतिशत ग्लेशियर गायब हो सकते हैं। ग्लेशियरों के लुप्त होने का सिलसिला जारी रहेगा, भले ही आगे गर्मी और न बढ़े। ग्लेशियर मॉडल का उपयोग करके किए गए एक अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन से पता चलता है कि आज के स्तर पर तापमान को स्थिर करने से भी ग्लेशियरों का 40 प्रतिशत नुकसान होगा। अध्ययन का निष्कर्ष है कि यदि दुनिया का तापमान 2.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है, जो वर्तमान जलवायु नीतियों के अनुरूप है, तो भी दुनिया के ग्लेशियरों की बर्फ का केवल एक-चौथाई हिस्सा ही बचेगा।

लेकिन इस अध्ययन में आशा की एक किरण भी दिखाई देती है। यदि वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जा सका, जो पेरिस जलवायु समझौते का लक्ष्य है, तो तमाम ग्लेशियरों की बर्फ का लगभग आधा हिस्सा अब भी बचाया जा सकता है। दस देशों के 21 विज्ञानियों ने दुनिया भर के 2,00,000 से अधिक ग्लेशियरों के भविष्य का अनुमान लगाने के लिए आठ स्वतंत्र ग्लेशियर मॉडलों का उपयोग किया। इस अध्ययन में ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के ग्लेशियर शामिल नहीं किए गए। विज्ञानियों ने अपने अध्ययन में वैश्विक तापमान के विभिन्न परिदृश्यों का परीक्षण किया। आज की वैश्विक गर्मी भी ग्लेशियरों के बड़े नुकसान का संकेत है। एक चौंकाने वाला निष्कर्ष यह है कि अगर आज वैश्विक तापमान बढ़ना बंद हो जाता है, तो भी ग्लेशियर का नुकसान जारी रहेगा। पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.2 डिग्री सेल्सियस ऊपर के वर्तमान वैश्विक तापमान पर लगभग 40 प्रतिशत ग्लेशियर बर्फ के पहले ही गायब होने का अनुमान लगाया जा चुका है।

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जर्मनी के ब्रेमेन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक बेन मार्जियन ने कहा कि अध्ययन के परिणाम इस तथ्य को रेखांकित करते हैं कि वर्तमान जलवायु नीतियां भविष्य में ग्लेशियरों के आकार में निर्णायक भूमिका अदा करेंगी। वैज्ञानिकों ने हर अतिरिक्त 0.1 डिग्री गर्मी पर वैश्विक ग्लेशियर द्रव्यमान में 2 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान लगाया है। अध्ययन में शामिल एक अन्य वैज्ञानिक डॉ. हैरी जेकोलारी कहते हैं कि डिग्री का हर अंश मायने रखता है। आज हम जो विकल्प चुनते हैं, वे सदियों तक प्रतिध्वनित होंगे।

नए अध्ययन से जुड़ी वैज्ञानिक डॉ. लिलियन शूस्टर का कहना है कि ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के अच्छे संकेतक हैं। हम अपनी आंखों से देख सकते हैं कि ग्लेशियरों के पीछे हटने से जलवायु कैसे बदल रही है। हालांकि, उनका वर्तमान आकार पहले से हो चुके जलवायु परिवर्तन की भयावहता को बहुत कम करके आंकता है। ग्लेशियरों की स्थिति वास्तव में आज पहाड़ों में दिखाई देने वाली स्थिति से कहीं ज्यादा खराब है। ग्लेशियर के पीछे हटने से न केवल समुद्र के स्तर पर असर पड़ता है, बल्कि ताजे पानी की उपलब्धता पर भी दूरगामी प्रभाव पड़ता है। ग्लेशियर से संबंधित खतरों का जोखिम बढ़ता है और ग्लेशियर आधारित पर्यटन प्रभावित होता है। ये परिवर्तन जो पहले से ही कई क्षेत्रों में दिखाई दे रहे हैं, वैश्विक जलवायु नीति के महत्व को रेखांकित करते हैं। यह अध्ययन संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय ग्लेशियर संरक्षण वर्ष (2025) में एक महत्वपूर्ण योगदान है और दुनिया के ग्लेशियरों को बचाने के लिए वैश्विक जलवायु कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है।

ग्लोबल वार्मिंग प्रकृति की दूसरी प्रणालियों को भी प्रभावित कर रही है। नासा के नेतृत्व में किए गए एक नए अध्ययन से पता चलता है कि तेज गर्मी का असर बादलों पर भी दिखाई दे रहा है। पृथ्वी के लिए बादलों के आवरण का विशेष महत्व है। बादल न सिर्फ धरती की प्यास बुझाते हैं बल्कि सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करके हमारे ग्रह को ठंडा रखने में भी मदद करते हैं। लेकिन अब घने काले बादलों का क्षेत्र सिकुड़ने लगा है। इन बादलों को स्टॉर्म क्लाउड भी कहा जाता है। चिंता की बात यह है कि यह सिकुड़न अधिक सौर विकिरण को अंदर आने दे रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी की हाल ही में गर्मी बढ़ने का यह सबसे बड़ा कारण है।

उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों और भूमध्य रेखा तथा ध्रुवीय क्षेत्रों के बीच के इलाकों में काले बादलों के क्षेत्र प्रति दशक 1.5 प्रतिशत से 3 प्रतिशत तक सिकुड़ गए हैं। ये क्षेत्र पहले बहुत अधिक मात्रा में सूर्य के प्रकाश को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित करते थे। बादलों के गायब होने से अधिक गर्मी पृथ्वी की सतह तक पहुंच रही है। ऑस्ट्रेलिया के मोनाश विश्वविद्यालय के प्रोफेसर क्रिश्चियन जैकब ने कहा कि यह खोज स्पष्ट करती है कि पृथ्वी अब कितनी अतिरिक्त सौर ऊर्जा अवशोषित करती है। उन्होंने कहा, हम लंबे समय से जानते हैं कि वायुमंडलीय परिसंचरण में परिवर्तन बादलों को प्रभावित कर रहे हैं। पहली बार, अब हमारे पास आंकड़े हैं जो दिखाते है कि ये बदलाव पहले से ही पृथ्वी द्वारा अवशोषित की जाने वाली ऊर्जा में बड़े परिवर्तन ला रहे हैं। इस शोध से हाल के वर्षों में देखी गई गर्मी की विसंगतियों को समझा जा सकता है, जिसमें 2023 की अत्यधिक गर्मी भी शामिल है।

विशेषज्ञों ने अपने अध्ययन में 2001 से 2023 तक के उपग्रह डेटा का उपयोग किया। उन्होंने बादलों के आवरण और सौर विकिरण पर बादलों के प्रभाव को मापा। इस प्रभाव को ‘शॉर्टवेव रेडिएशन इफेक्ट’ कहा जाता है। विज्ञानियों का एक उद्देश्य यह पता लगाना था कि बादल सूर्य की कितनी रोशनी वापस लौटाते हैं। अधिक नकारात्मक संख्या का मतलब है कि अधिक सूर्य की रोशनी परावर्तित हो रही है। लेकिन वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि मजबूत रेडिएशन प्रभाव वाले क्षेत्र सिकुड़ रहे हैं। इन सबका नतीजा अधिक गर्मी के रूप में सामने आ रहा है। प्रति दशक अवशोषित सौर ऊर्जा में कुल वृद्धि में बड़ा हिस्सा सिकुड़ते बादल क्षेत्रों का था। बादल वाले क्षेत्र में छोटी सी कमी भी पृथ्वी के ताप पर बड़ा प्रभाव डालती है।

अध्ययन से पता चलता है कि अधिकांश गर्मी काले बादलों के क्षेत्र में कमी के कारण आई है। बादलों के भीतर के परिवर्तनों के कारण ऐसा नहीं हुआ। काले बादल क्यों सिकुड़ रहे हैं? विज्ञानियों का कहना है कि यह मुख्य रूप से वैश्विक पवन पैटर्न परिवर्तनों के कारण हो रहा है। हैडली सेल (भूमध्य रेखा से उठने वाली हवा) चौड़ी हो रही है तथा जेट स्ट्रीम (वायुमंडल में तेज बहने वाली हवा) ध्रुवों की ओर बढ़ रही है। ये रुझान जलवायु मॉडल द्वारा ग्रह के गर्म होने की भविष्यवाणी से मेल खाते हैं। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जेट स्ट्रीम में गर्मी से प्रेरित बदलाव के कारण ध्रुवीय क्षेत्रों के आसपास के क्षेत्रों में काले बादल पीछे हट रहे हैं। नया अध्ययन हाल में देखी गई असाधारण गर्मी की पहेली को समझने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और तत्काल जलवायु कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर देता है।

लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।

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