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बढ़ गया है विसंगतियों को प्रश्रय का खतरा

उत्तराखंड में नया भूमि कानून
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अब तक गैर-कृषक के लिये जमीनों की खरीद पर बंदिशें थीं, लेकिन अब जिसकी भी उत्तराखंड में अचल सम्पत्तियां हैं उनके लिये भी किसानों की जमीनें खरीदने का रास्ता निकल गया है।

जयसिंह रावत

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उत्तराखंड की धामी सरकार ने नया भूमि कानून पास तो करा दिया है, लेकिन इस कानून से पहाड़वासियों की नाउम्मीदी ज्यादा बढ़ गयी है। सरकारी पक्ष नये कानून को सख्त बताकर प्रचारित कर रहा है, लेकिन गरीब कास्तकारों के पुरखों की जमीनों के भू-खोरों, धन्नासेठों और गैर-कृषकों द्वारा हड़पने के नये रास्ते खुले बताते हैं। हालांकि, किसी देशवासी के लिये बाहरी शब्द का प्रयोग उचित नहीं है फिर भी जिन लोगों को बाहरी माना जा रहा है, उनके लिये उत्तराखंड में जमीनें खरीदने के लिये पिछले दरवाजे खुले हैं। अब तक गैर-कृषक के लिये जमीनों की खरीद पर बंदिशें थीं, लेकिन अब जिसकी भी उत्तराखंड में अचल सम्पत्तियां हैं उनके लिये भी किसानों की जमीनें खरीदने का रास्ता निकल गया है।

दरअसल, ऊपरी तौर पर हरिद्वार और उधमसिंह नगर को छोड़कर सरकार ने शेष 11 पहाड़ी जिलों में जमीनों की खरीद-फरोख्त पर अंकुश तो लगा दिया, मगर नगर निकाय चाहे कहीं की भी हों, उन्हें इस कानून से मुक्त कर दिया। विधि विशेषज्ञ और भू-कानून के लिए आन्दोलन करने वाले इसे प्रदेश की जनता के साथ छलावा बता रहे हैं।

नये कानून की धारा दो में कहा गया है कि ‘नगर निगम, नगर पंचायत, नगरपालिका परिषद, छावनी परिषद क्षेत्रों की सीमा के अन्तर्गत आने वाले और समय-समय पर सम्मिलित किये जा सकने वाले क्षेत्रों को छोड़कर यह कानून सम्पूर्ण उत्तराखंड राज्य में लागू होगा।’ उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण लोग गांव छोड़कर आसपास के कस्बों में बहुत तेजी से बस रहे हैं इन्हीं नगरीय क्षेत्रों में भूमि की सर्वाधिक खरीद-फरोख्त होती है।

शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा, उद्यान, पर्यटन, के लिये निजी न्यास, संस्था, कम्पनी, फर्म, पंजीकृत सहकारी संस्था आदि के लिए भूमि का अन्तरण पर पहले भी प्रतिबंध नहीं था। नयी व्यवस्था में अगर भूमि का अन्तरण जनहित में है तो जमीन चाहने वालों का वास्तविक आंकलन कर भूमि अनिवार्यता प्रमाणपत्र जारी किया जायेगा। साथ ही अन्तरण अनुमति से पूर्व सम्बंधित विभागों द्वारा निवेश की मात्रा, रोजगार सृजन तथा प्लांट और मशीनरी इत्यादि के परिप्रेक्ष्य में प्रस्ताव का आंकलन करते हुए भूमि अनिवार्यता प्रमाणपत्र विभागाध्यक्ष या एक रैंक नीचे के अधिकारी द्वारा जारी किया जायेगा।

कानून में यह भी स्पष्ट किया गया है कि भूमि अन्तरण की अनुमति केवल हरिद्वार और उधमसिंह नगर में दी जायेगी। अगर भूमि की खरीद-फरोख्त की बंदिशें शेष 11 जिलों के लिये हैं तो उन पहाड़ी जिलों के नगर निकाय क्षेत्र इन दो जिलों की तरह कानून से मुक्त क्यों कर दिये गये? सेवानिवृत्त वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एवं उ.प्र रेवेन्यू बोर्ड के पूर्व सदस्य सुरेन्द्र सिंह पांगती का कहना है कि उधमसिंह नगर व हरिद्वार में जमीनों की खरीद-फरोख्त में छूट से जमीनें हड़पने हेतु पिछला दरवाजा खुला है।

नये कानून में व्यवस्था की गयी है कि अगर कोई व्यक्ति जो धारा 129 के तहत उत्तराखंड का खातेदार न हो तो उसे रजिस्ट्रार के सामने शपथपत्र देना होगा कि उसके परिवार के किसी भी सदस्य ने आवासीय उद्देश्य के लिये अपने जीवनकाल में 250 वर्गमीटर जमीन नहीं खरीदी है। सरकार को शिकायतें मिली थीं कि कानून का दुरुपयोग करते हुए कुछ लोगों ने परिवार के अन्य सदस्यों के नाम भी 250 वर्गमीटर जमीनें खरीद ली हैं। जबकि मूल कानून में व्यवस्था थी कि एक परिवार एक ही बार जमीन खरीद सकेगा और जमीन खरीदने के बाद भी वह और उसकी पीढ़ियां उत्तराखंड में भूमिधर नहीं मानी जायेंगी।

मूल अधिनियम में कुछ खास श्रेणियों के अलावा निजी तौर पर गैर-कृषकों द्वारा जमीनों की खरीद पर रोक थी। लेकिन नये कानून के अनुसार जिस व्यक्ति की 2003 या उससे पहले उत्तराखंड में अचल सम्पत्ति थी उसे भूमिधर मान लिया गया है। इसलिये उसे भी जमीनें खरीदने का अधिकार दे दिया गया है। मसूरी जैसे नगरों में अचल सम्पत्ति वाले लोग बड़ी संख्या में मौजूद हैं जो देश के विभिन्न हिस्सों से हैं। ऐसे लोग प्रायः बड़े उद्योगपति, धनाढ्य और बड़े व्यवसायी होते हैं जो कि बड़े पैमाने पर जमीनों का व्यवसाय कर मूल निवासियों को भूमिहीन बना सकते हैं। नये कानून में प्रावधान किया गया है कि अगर धारा 129 के तहत कोई व्यक्ति विशेष श्रेणी का भूमिधर है तो बैंक आदि का ऋण न चुका सकने पर उसकी सम्पत्ति की नीलामी हो जाती है तो उसकी सम्पत्ति को उसी श्रेणी का भूमिधर भी खरीद सकेगा और नीलामी में सम्पत्ति गंवाने वाला व्यक्ति बिना अनुमति के दुबारा उतनी ही जमीन खरीद सकेगा। राज्य सरकार के पूर्व विधि सलाहकार डॉ. एन.के. पन्त के अनुसार इस कानून ने जमीनें हड़पने का एक नया रास्ता खोल दिया है। जिनका खेती से कोई लेना-देना नहीं था वे भी अब खेती की जमीनें खरीद सकेंगे।

उत्तराखंड राज्य द्वारा पूर्ववर्ती राज्य से अंगीकृत जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 157 (ए) में अनुसूचित जातियों की जमीनों के ट्रांसफर या अन्तरण पर रोक है। धारा 157-ए के अनुसार अनुसूचित जाति से संबंधित कोई भी भूमिधर या असामी कलेक्टर की पूर्व स्वीकृति के बिना अपनी भूमि को अनुसूचित जाति से इतर किसी को हस्तांतरित नहीं कर सकता है। लेकिन उत्तराखंड के नये भूमि कानून के अनुसार इन जातियों की जमीनों को 30 साल के लिये कृषि, बागवानी, जड़ी बूटी उत्पादन, पौधारोपण, पशुपालन, मुर्गीपालन, मधुमक्खी पालन, मत्स्य पालन, कृषि, फल प्रसंस्करण, चाय बागान व वैकल्पिक ऊर्जा परियोजनाओं के व्यक्ति, संस्था, समिति, न्यास, फर्म, कम्पनी एवं स्वयं सहायता समूह को पट्टे पर शर्तें निर्धारित करते हुये दी जा सकेगी। जबकि मूल कानून में इनकी जमीनों को पट्टे पर देने की भी मनाही है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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