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भीड़ ने महाकुंभ प्रबंधन को दिए कई सबक

प्रयागराज हादसा
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निस्संदेह, प्रयागराज महाकुंभ का हादसा राज्य एजेंसियों को एक चेतावनी है कि वे पिछली गलतियों से सबक लें और लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपने कामकाज में सुधार करें। साथ ही श्रद्धालुओं को जागरूक व अनुशासित करने के

भी प्रयास हों।

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के.पी. सिंह

प्रयागराज महाकुम्भ में भगदड़ की दुर्भाग्यपूर्ण घटना चिन्ता का विषय है। ‘मौनी अमावस्या’ के अवसर पर संगम क्षेत्र में अमृत-स्नान करने के लिए आठ करोड़ से अधिक श्रद्धालु एकत्रित हुए। लोगों की आस्था और विश्वास की डोर इतनी मजबूत है कि हर कोई 144 वर्षों के बाद आए इस ऐतिहासिक क्षण पर संगम में पवित्र डुबकी लगाना चाहता था। यह दुर्घटना अखाड़ों के अमृत स्नान से पहले सुबह लगभग 1 बजे हुई, जब कुछ तीर्थयात्री पारम्परिक अमृत स्नान के लिए अखाड़ों के मार्ग को चिह्नित करने वाली रुकावटों को पार करने का प्रयास करने लग गए थे। यह संतोष की बात है कि पुलिस हरकत में आई और तुरन्त सामान्य स्थिति बहाल कर दी गई।

धार्मिक समागमों के दौरान भगदड़ हो जाना एक सामान्य बात हो गई है। प्रशासक शुरुआती झटकों के बाद इन्हें भूल जाते हैं। जनवरी, 2025 में आंध्र प्रदेश के एक प्रमुख मंदिर में मुफ्त दर्शन पास पाने की कोशिश में मची भगदड़ में 6 भक्तों की मौत हो गई। अपने धार्मिक गुरु की करीब से झलक पाने की चाहत में उ.प्र. के हाथरस में 121 लोगों की जान चली गई थी। नवम्बर, 2023 में नवरात्रि समारोह के दौरान मध्य प्रदेश के रतनगढ़ मन्दिर में भगदड़ में 115 तीर्थयात्रियों ने जान गंवाई थी। फरवरी, 2013 में उ.प्र. के कुम्भ मेले में एक और भगदड़ हुई थी, जिसमें 36 भक्तों की जान गई। उ.प्र. में एक मन्दिर में मुफ्त भोजन और कपड़े पाने के लिए धक्का-मुक्की में 63 लोग कुप्रबंधन के कारण मारे गए थे। सितम्बर, 2008 में हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मन्दिर में भू-स्खलन की अफवाह के चलते मची भगदड़ में 145 श्रद्धालु मारे गए थे। जनवरी, 2005 में महाराष्ट्र के मंदारदेवी मन्दिर में फिसलन भरी सीढ़ियों के कारण 265 लोगों की मृत्यु हुई थी। ऐसी सूची अंतहीन है।

ऐसी मानवीय त्रासदियों की पुनरावृत्ति दर्शाती है कि व्यवस्था भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए पर्याप्त सबक नहीं सीखती है। फिर भी तथ्य है कि भीड़ में भगदड़ के मूल में कहीं न कहीं लोगों में व्याप्त अनुशासनहीनता ही होती है। व्यवस्था का कुप्रबंधन त्रासदी को और बढ़ा देता है। विडंबना यही है कि न तो भीड़ अनुशासन का पाठ सीखती है और न ही व्यवस्था पिछली घटनाओं से पर्याप्त सबक लेती है।

आयोजन से पहले भीड़ का आकलन और पूरे महाकुंभ के दौरान श्रद्धालुओं के दैनिक आगमन की निगरानी महत्वपूर्ण है। संगम क्षेत्र में तीर्थयात्रियों के प्रवेश को उनके लिए उपलब्ध वास्तविक स्थान को ध्यान में रखते हुए विनियमित किया जाना चाहिए था। श्रद्धालुओं की संख्या में चमत्कारी आंकड़े के लोभ में व्यवस्था ऐसा करने में चूकी। सभी राज्यों की पुलिस एजेंसियों के साथ समन्वय करके एक तंत्र होना चाहिए था, जिससे प्रतिदिन श्रद्धालुओं के आवागमन की संख्या का पूर्वानुमान लग सके। त्रासदी के बाद प्रयागराज में लोगों को ले जाने वाली रेलों और बसों की आवाजाही पर लगाए गए प्रतिबंधों को यदि भीड़ के पूरी क्षमता तक पहुंचने से बहुत पहले ही लगा दिया जाता तो दुर्घटना से बचा जा सकता था। कई श्रद्धालु सबसे पहले स्नान करने की चाह में और कई अन्य पवित्र स्नान करने के बाद भी क्षेत्र में जमे रहे। कुछ लोग तो कई दिनों तक संगम की रेती पर बैठे रहे, जिससे अधिक भीड़भाड़ हो गई। जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को संगम क्षेत्र में प्रवास को सीमित करने और स्थान खाली करने के लिए परामर्श प्रसारित कर इसे रोका जा सकता था। यह सुनिश्चित करने हेतु सुरक्षा बल की तैनाती होनी चाहिए थी कि संगम क्षेत्र में घूमने-स्नान करने वाले क्षेत्रों में भीड़भाड़ न हो।

सभी प्रवेश बिंदुओं पर अस्थाई रूप से भीड़ को रोकने तथा स्नान-घाटों पर उपलब्ध स्थान के अनुसार उन्हें समूहों में छोड़ने के लिए ‘होल्डिंग एरिया’ की योजना बनाना हमेशा उचित होता है। इस प्रकार के ‘होल्डिंग एरिया’ मुख्य आयोजन-स्थल से काफी दूर हों। संगम क्षेत्र से तीर्थयात्रियों के शीघ्र निकास के लिए जलमार्ग की योजना भी बनाई जा सकती थी। यातायात-जाम से बचने के लिए प्रवेश तथा निकास मार्ग अलग-अलग होने चाहिए। बेहतर होता यदि स्नान के लिए क्षेत्रवार दिन तय करके लोगों को सूचित कर दिया जाता। स्नान क्षेत्र की लम्बाई-चौड़ाई बढ़ाई जा सकती है। अन्यथा भी, भगदड़ के बाद, प्रयागराज क्षेत्र में, जहां भी अवसर मिले, पवित्र गंगा में डुबकी लगाने की सलाह देकर ऐसा किया गया। पुलिस जनों की शिफ्टवार ड्यूटी सुनिश्चित कर उन्हें उचित आराम करने का मौका देना जरूरी है। कहा गया है कि जब रात में दुर्घटना हुई तो पर्याप्त पुलिस-बल न था, शायद पुलिस लम्बी ड्यूटी के लिए तैयारी कर रही थी।

जब किसी खास दिन इतनी बड़ी भीड़ होती है, तो अति विशिष्ट व्यक्तियों के लिए विशेष मार्ग बनाना और उसकी सुरक्षा करना बहुत मुश्किल होता है। अति विशिष्ट व्यक्तियों के दौरे की योजना ऐसे दिन बनाना उचित है, जब तुलनात्मक रूप से कम श्रद्धालु हों। अखाड़ों के अमृत स्नान के लिए उपयुक्त क्षेत्र और समय पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। खराब गुणवत्ता वाली बैरिकेडिंग की तुलना में कोई बैरिकेडिंग न होना बेहतर होता है, क्योंकि इससे सुरक्षा का छद्म आभास होता है।

महाकुम्भ में भगदड़ राज्य एजेंसियों को एक और चेतावनी है कि उन्हें अपनी पिछली गलतियों से सबक लेना चाहिए और लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपने कामकाज में सुधार करना चाहिए। कुप्रबंधन के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया ही जाना चाहिए।

लेखक हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक हैं।

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