अपराध तो अक्षम्य है फिर स्त्री-पुरुष कैसा
बहुत से विद्वान और विदुषियां कह रही हैं कि ऐसा इसलिए हो रहा है कि महिलाओं को सदियों से दबाकर रखा गया है। अब वे ताकतवर हुई हैं, तो ऐसा कर रही हैं। आंकड़े गिनवाए जा रहे हैं कि महिलाएं तो बस छह प्रतिशत अपराध ही करती हैं। बहुसंख्य अपराध तो पुरुषों द्वारा ही किए जाते हैं।
राजा रघुवंशी हत्याकांड में हर रोज नए खुलासे हो रहे हैं। जिस तरह मेरठ में मुसकान ने अपने पति को मारकर नीले ड्रम में बंद कर दिया था और पुरुष मित्र के साथ घूमने चली गई थी, सोनम तो अपने पति राजा के साथ ही गई थी। हां, पहले से वहां वे तीन लड़के मौजूद थे, जो कथित हत्यारे बताए जा रहे हैं। जिस तरह मुसकान के परिवार वालों ने आकर कहा कि अगर उसने ऐसा किया है, तो उसे कड़ी से कड़ी सजा मिले, सोनम का भाई भी इसी तरह के बयान दे रहा है। बहुत से लोग कह रहे हैं कि इस तरह के बयान पुलिस से बचने के लिए दिए जाते हैं। खैर, जो भी हो एक निरपराध लड़के ने जान गंवाई है। कल इन अपराधियों को सज़ा मिल भी जाए, तो राजा के माता-पिता जीवन भर इस दुःख को लेकर जीएंगे।
कई लोगों ने अखबारों और सोशल मीडिया में लिखा कि लड़कियां ऐसा इसलिए कर रही हैं कि माता-पिता उनकी सुनते नहीं हैं। वे बिना उनकी मर्जी के शादी कर देते हैं। अगर वे उनकी सुन लें, तो ऐसा न हो। जबकि मुसकान ने तो अपनी मर्जी से ही शादी की थी।
इन दिनों ऐसे किस्से आम हैं जब पति ने पत्नी या महिला मित्र अथवा पत्नी ने पति की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी कि उसे किसी और के साथ रहना था। ऐसी खबरें आ रही हैं कि सोनम –राजा रघुवंशी कांड के बाद, लोग शादी के बाद घूमने जाने से बच रहे हैं। टिकट कैंसल करा रहे हैं। यही नहीं विवाह से पूर्व प्राइवेट जासूसों की मदद से होने वाले साथी का बैक ग्राउंड चैक करा रहे हैं। यहां तक कि कथित विज्ञापन दिए जा रहे हैं। एक ऐसा ही विज्ञापन फेसबुक पर देखा। यह एक अखबार में छपवाया गया था। इसमें लिखा था- अमुक तारीख को अमुक लड़की से सगाई हो रही है। किसी को आपत्ति हो तो बताए। ऐसी बातों से कई बार उन ब्लैकमेलर्स की पौ बारह हो सकती है, जो किसी लड़की को या लड़के को परेशान करने के लिए तरह-तरह की जुगत भिड़ाते हैं। मान लीजिए बेवजह ही कोई आकर कह दे कि हां जी इस शादी से मुझे आपत्ति है, क्योंकि इस लड़के या इस लड़की से मेरे सम्बंध हैं। ऐसे में अगर शादी हो भी जाए, तो शंका का एक बीज हमेशा के लिए बोया जा सकता है।
आपसी रिश्तों में इतना अविश्वास, फिर शादी, विवाह, किसी रिश्ते में जाने की जरूरत ही क्या है। जब आपस में विश्वास न रहा तो बचा ही क्या।
एक बात बार-बार कही जा रही है कि लड़कियां भला अपराधी कैसे हो सकती हैं। क्यों नहीं हो सकतीं। लड़कियों की वह बेचारी और बुद्धू तथा कुछ न जानने वाली की छवि कब तक ढोती रहेंगी। लड़कियां या लड़के, अपराधी कोई भी हो सकता है।
एकम् न्याय फाउंडेशन की दीपिका भारद्वाज कहती हैं कि अक्सर पति-पत्नी के रिश्तों में घरेलू हिंसा और क्रूरता को देखा जाता है, लेकिन अब वक्त आ गया है, जब यह भी देखा जाए कि ऐसे रिश्तों में हत्या जैसे जघन्य अपराध कितने हो रहे हैं। दीपिका ने एक अध्ययन में पाया कि 2023 में 306 पतियों को उनकी पत्नियों ने मार दिया। इन घटनाओं को आत्महत्या बताने की कोशिश की गई। वर्ष 2025 के इन छह महीनों में यह संख्या सौ से अधिक पहुंच गई है। दीपिका ने शादी के शहीद (मार्टरस आफ मैरिज) और भारत के बेटे (इंडियाज संस) नामक दो फिल्में भी बनाई हैं।
सत्तर के दशक में हुआ विद्या जैन हत्याकांड भी याद आता है, जिसने देश को हिलाकर रख दिया था। इसमें विद्या के नामी डाक्टर पति ने अपनी पत्नी की हत्या, प्रेमिका के लिए कराई थी। उस समय एक मशहूर पत्रिका ने इस कांड को धारावाहिक रूप से छापा था। जिस स्त्री के कारण यह हत्या कराई गई थी, वह एक फौजी की पत्नी थी। जब पुलिस इस महिला और उक्त डाक्टर को पकड़कर थाने ले गई, तो वहां एक हीटर जल रहा था। महिला ने गिड़गिड़ाते हुए पुलिस वालों से कहा था कि यहां अग्नि तो है ही। सजा से पहले मेरे सात फेरे करा दीजिए।
अब तक पुरुषों द्वारा ऐसे गम्भीर अपराधों की लम्बी सूची बनती रही है। लेकिन अब पत्नियां भी ऐसा कर रही हैं। बहुत से विद्वान और विदुषियां कह रही हैं कि ऐसा इसलिए हो रहा है कि महिलाओं को सदियों से दबाकर रखा गया है। अब वे ताकतवर हुई हैं, तो ऐसा कर रही हैं। आंकड़े गिनवाए जा रहे हैं कि महिलाएं तो बस छह प्रतिशत अपराध ही करती हैं। बहुसंख्य अपराध तो पुरुषों द्वारा ही किए जाते हैं। इनकी बातें सुनकर वह कहावत याद आती है-जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई। आखिर सदियों का बदला राजा या उसी जैसे किसी निरपराध लड़के से क्यों लिया जाए।
विमर्शों की समस्या ही यह है कि अपने चश्मे से बाहर उन्हें कुछ और नहीं दिखता। वे दुनिया से असहमत होने का अधिकार तो मांगते हैं, मगर असहमति का अधिकार किसी को नहीं देते। बदला लेने की भावना का इस तरह से समर्थन आखिर बदले को ही बढ़ाता है। वैसे भी ज्ञान देने वाले तो ज्ञान देकर निकल लेते हैं, मगर भुगतना उन्हें पड़ता है, जो इस तरह के अपराधों में जाने-अनजाने शामिल हो जाते हैं। एक लड़की ने कहा कि हम अक्सर अपने बॉस या अधिकारियों से नाराज होते हैं, तो क्या उनकी जान ले लेते हैं। फिर यह भी कैसी नाराजगी है कि निरपराध को भुगतनी पड़े।
बहुत से लोग कह रहे हैं कि सोनम के बहाने सभी स्त्रियों को अपराधी नहीं कहा जा सकता। सच बात है। ऐसा होता भी नहीं है। लेकिन यदि स्त्री अपराधियों की संख्या कम है, तो मात्र इसलिए उन्हें छोड़ दिया जाए। कोई सजा न मिले। यह कहां का न्याय है। अपराधी तो चाहे स्त्री हो या पुरुष, उसे कानून को सजा देनी ही चाहिए। अपराध को अपराध के नजरिए से ही देखना चाहिए। इसमें आगे बढ़कर किसी विमर्श का छौंक गैर जरूरी है।
फिर यह भी कि मान लीजिए यह अपराध सोनम के साथ हुआ होता। तो अब तक क्या हुआ होता। पूरे देश में हाहाकार मच जाता। जुलूस निकलते। मोमबत्तियां जलाई जातीं। स्त्रियां अपने देश में कितनी असुरक्षित हैं, यह बताया जाने लगता। यहां तक कि विदेशी मीडिया की भीड़ लग जाती। सोनम को हिरोइन करार दे दिया जाता। किसी पुरुष की हत्या, क्या हत्या नहीं। पुरुषों के कोई मानव अधिकार भी नहीं। ऐसा क्यों। इसीलिए अरसे से महिला कानूनों को भी जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग की जा रही है। पुरुषों के लिए महिला आयोग की तरह पुरुष आयोग बनाने की बातें भी कही जा रही हैं।
बताया जा रहा है कि सोनम ने अपने पुरुष मित्र राज कुशवाहा के लिए ऐसा किया। वह उससे बहुत प्रेम करती थी। कमाल है न। यह भी कैसा प्रेम है जो किसी की हत्या के लिए उकसाता है। इससे ज्यादा दुखद यह भी है कि हत्या जैसे गम्भीर अपराध के बाद कोई पछतावा तक नहीं होता।
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।