आधे लिखे उपन्यास जैसी ज़िंदगी का क्रेज़
विवाह न रचाने का ट्रेंड आगे बढ़ता गया तो दो-चार दशक बाद सामाजिक ढांचा ऐसा होगा कि देश आगे बढ़ा है पर परिवार पीछे छूट गया है। हमारी संस्कृति में परिवार सिर्फ सामाजिक इकाई नहीं, भावनाओं का आधार रहा है।
आज के दिन ‘वयस्क अविवाह’ एक नई महामारी बन गया है। इन दिनों युवाओं का नया नारा देखने-सुनने में आ रहा है कि शादी से पहले मरेंगे, शादी करके नहीं! जैसे-जैसे नवयुवक-युवतियों में स्वावलंबन बढ़ता जा रहा है, संबंध घटते जा रहे हैं। लगता है कि कुंवारेपन की महामारी से डब्ल्यूएचओ भी चिन्ता में होगा। अगर कुंवारेपन की यही रफ्तार रही तो अगले 20 वर्षों में ‘फैमिली ट्री’ की जगह ‘फैमिली झाड़ी’ रह जाएगी। एक कुंवारे का मानना है कि शादी ही एकमात्र ऐसी दुर्घटना है जिसमें चोट लगने से पहले ही हल्दी लगा दी जाती है।
विकराल समस्या है कि 32-35 की उम्र के लड़के-लड़कियां, जिनके पास बढ़िया करिअर-सैलरी, खुद की गाड़ी, अपना फ्लैट आदि सब कुछ है, सिर्फ परिवार बनाने का मन नहीं है। आज के युवा कहते हैं- शादी बाद में करेंगे, पहले जिंदगी जी लेते हैं! और यह ‘बाद में’ सबसे खतरनाक शब्द है क्योंकि इसका मतलब है कभी नहीं।
मेरे हिसाब से एक नया अभियान चाहिए- स्वावलंबन के बाद विवाह का संकल्प! जब नौकरी लगे, नौकरी का पहला दिन हो तो ‘शादी करूंगा/करूंगी’ का हलफनामा भरवाया जाए!
आज वयस्क विवाह खत्म होने की कगार पर है। समस्या यह नहीं कि लोग शादी देर से कर रहे हैं, समस्या यह है कि शादी को अब हिमालय पर तपस्या जैसा कठिन कर्म समझा जाने लगा है। मां-बाप बनने का आकर्षण भी जैसे खोता जा रहा है। एक बुजुर्ग का कहना है कि लेट शादी होने का सबसे बड़ा नुकसान है कि जब औलाद पर रौब मारने का वक्त आता है, डॉक्टर जोर से बोलने को मना कर देता है।
विवाह न रचाने का ट्रेंड आगे बढ़ता गया तो दो-चार दशक बाद सामाजिक ढांचा ऐसा होगा कि देश आगे बढ़ा है पर परिवार पीछे छूट गया है। हमारी संस्कृति में परिवार सिर्फ सामाजिक इकाई नहीं, भावनाओं का आधार रहा है। युवा वर्ग में अब सोलो ट्रिप का ट्रेंड बढ़ रहा है। और देश में ऐसा मानसिक माहौल बन गया है कि ‘विवाह-विरोध अभियान’ बिना अभियान के चल रहा है।
जो लोग कहते हैं कि हम शादी नहीं करेंगे, आजादी से जिएंगे, उन्हें देखकर कभी-कभी लगता है कि आजादी तो मिल गई पर जीवन साथी के बिना उनकी जिंदगी आधे लिखे उपन्यास जैसी है। अब समाज को विवाह-विरोधी मानसिकता के खिलाफ एक नई जागरूकता चाहिए।
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एक बर की बात है अक चालीस बरस के कंवारे नत्थू तै ताऊ सुरजे नैं बूज्झी- रै के बात तेरा ब्याह नीं हो रह्या, तेरी तो तन्खाह भी साठ लाख रुपिये साल की है। नत्थू दांत काढते होये बोल्या- ताऊ! जाको राखै साइयां मार सकै ना कोय।
